Friday 8 November 2019
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बदलाव की बयार- संजय कुमार सिंह
बिहार के सरकारी विद्यालयों में इन दिनों एक नई बयार चल रही है जो अपनी खुशबू से न केवल शिक्षा जगत को सुवासित कर रही है बल्कि गैर शैक्षणिक समाज भी इसपर मोहित हो रहा है। कुछ वर्ष पहले की हम बात करें तो सरकारी विद्यालय का मतलब था - भूमिहीन, भवनहीन , शिक्षकों की कमी तथा समुदाय का असहयोग जैसी अनेक समस्याओं से ग्रस्त एक शैक्षणिक केन्द्र जहां समाज के वैसे मजबूर बच्चे पढ़ने आते हैं जिनके अभिभावक आर्थिक अथवा अन्य कारणों से प्राइवेट स्कूलों में नहीं पढ़ा सकते। कुल मिलाकर सरकारी विद्यालयों की एक नकारात्मक छवि बन गई थी जिसे बीच-बीच में मीडिया के दुष्प्रचार से भी आक्सीजन मिलता रहा। परंतु आज हमें प्राथमिक से लेकर माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर तक एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है। सरकारी विद्यालय के बच्चे बड़ी संख्या में न केवल पोशाक में विद्यालय आते हैं बल्कि पढ़ाई-लिखाई के साथ- साथ चेतना सत्र में पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी सांस्कृतिक प्रस्तुति भी माइक पर देते हैं। दीपावली के अवसर पर छुट्टियां तो पहले भी होती थीं, पर छुट्टियों के पहले विद्यालय को सुंदर रंगोलियों से सजाना और सरकारी छुट्टी के बावजूद दीवाली की रात शाम में छात्रों एवं शिक्षकों का एकसाथ मिलकर विद्यालय भवन को मिट्टी के दीए से सजाकर दीवाली मनाना कितना अद्भुत और सुखद है। गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती तो हमेशा से मनाए जाते रहे हैं परंतु इस आयोजन में महज औपचारिकता भर ही होती थी परन्तु इन्हीं आयोजनों में आकर्षक झांकियों की प्रस्तुति तथा समुदाय की बढ़ती सहभागिता ने सरकारी विद्यालय के आयोजनों में चार चांद लगाने का कार्य किया है। और तो और कृष्णाष्टमी जैसे तुलनात्मक दृष्टि से अनौपचारिक त्यौहारों के अवसर पर फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता तथा राधा- कृष्ण झांकी की प्रस्तुति यह संकेत देती है कि यह बयार थमने वाली नहीं बल्कि आनेवाले दिनों में यह बिहार के सरकारी विद्यालयों की तस्वीर बदल कर रख देगी।
आइए मित्रों, जरा सोचें कि यह बदलाव आया कैसे! किसने किया यह कमाल ? शिक्षक भी वही और छात्र भी वही या कहें उसी परिवेश के। यह सही है कि हाल के वर्षों में सरकार द्वारा विद्यालयों को अनेक प्रकार के संसाधन मुहैया कराए गए हैं। शिक्षक नियुक्ति, भवन निर्माण तथा विद्यालय अनुदान की राशि में वृद्धि आदि सरकार ने विद्यालयों को पहले की अपेक्षा साधन संपन्न अवश्य किया है, पर यह सब इस बदलाव में सहायक है, कारण बिल्कुल नहीं। संसाधनों की उपलब्धता मात्र, कभी शैक्षणिक सफलता का कारण हो भी नहीं सकती। उसकी अपनी सीमाएं हैं। तो फिर यह परिवर्तन आखिर आया कैसे ?
मेरी दृष्टि में इस बदलाव का सारा श्रेय जाता है बिहार के उन तमाम समर्पित सरकारी शिक्षकों की लगनशीलता को और उनके द्वारा अपनाए जा रहे नवाचार को। कहा जाता है कि एक शिक्षक अपने छात्रों को न केवल विषय का ज्ञान कराता है बल्कि उनमें अच्छे संस्कार भी भरता है। अपने नवाचारी प्रयोगों द्वारा बिहार के सरकारी विद्यालयों के शिक्षक आज न केवल नये - नये एवं आकर्षक तरीकों से छात्रों को विषय का ज्ञान करा रहे हैं बल्कि विभिन्न सांस्कृतिक आयोजनों के बहाने उनमें अच्छे संस्कार भी भर रहे हैं। दूसरी ओर यह भी सही है कि यह कार्य शत् प्रतिशत सरकारी विद्यालयों में या अधिकांश विद्यालयों में अभी पूरी तरह से नहीं हो रहा है पर इसकी शुरुआत तो हो ही चुकी है। हमें इस परिवर्तन का स्वागत करना चाहिए और समर्पित शिक्षकों तथा उनके द्वारा अपनाए गए नवाचार को प्रोत्साहित करना चाहिए। आइए, बिहार के हम सभी सरकारी शिक्षक यह प्रण लें कि हम बदलाव के इस बयार को थमने न देंगे और बिहार के सरकारी विद्यालयों के शैक्षणिक माहौल को बदलने में पूरी ईमानदारी से अपने दायित्वों का निर्वहन कर एक नया बिहार बनाएं...........।
संजय कुमार सिंह
प्रधानाध्यापक
मध्य विद्यालय लक्ष्मीपुर,
प्रखंड - रानीगंज
जिला- अररिया ( बिहार )
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बहुत ही सटीक बदलाव की वयार का विश्लेषण किया हैं। संजय जी को बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteआपक यह पंक्ति... "शिक्षक नियुक्ति, भवन निर्माण तथा विद्यालय अनुदान की राशि में वृद्धि आदि सरकार ने विद्यालयों को पहले की अपेक्षा साधन संपन्न अवश्य किया है, पर यह सब इस बदलाव में सहायक है, कारण बिल्कुल नहीं। संसाधनों की उपलब्धता मात्र, कभी शैक्षणिक सफलता का कारण हो भी नहीं सकती। उसकी अपनी सीमाएं हैं। तो फिर यह परिवर्तन आखिर आया कैसे ? मेरी दृष्टि में इस बदलाव का सारा श्रेय जाता है बिहार के उन तमाम समर्पित सरकारी शिक्षकों की लगनशीलता को और उनके द्वारा अपनाए जा रहे नवाचार को"
ReplyDeleteवाकई सरकारी विद्यलयों के शिक्षकों के तन - मन में नया ओज उत्पन्न कर रहा है।
जय हो......
ReplyDeleteवीर हम बढ़े चलें.....
तमाम नकारात्मकताओं के बीच सकारात्मकता ही हमें आगे ले जाएगी....
Nice
ReplyDeleteबहुत सुंदर ,वास्तव मे इस बदलाव में हमारे युवा पीढ़ी के शिक्षक भाईयों की नवाचारी सोच,आप जैसे सकारात्मक सोच वाले प्रधान, सोशल मिडिया एवं आज के बच्चों के वजह से हो रहा है।आशा है कि इस तरह से बहुत जल्द ही इस मिथक को तोडने मे सफल हो पाएंगे कि सरकारी स्कूल में
ReplyDeleteबिल्कुल सही!
ReplyDeleteविजय सिंह
Sanjay sir you are a absolutely right, I am strongly satisfied with your analysis about educational changes in Bihar within couple of years.
ReplyDeleteWith your permission I add some more points behind of these changes such as,
1 First of all now most of the students are not the first generation who gets education. It means parental awareness works as driving force here.
2 You might be heard "खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग पकड़ता है" It is not only a phrase it is philosophy also. Children are motivated by seeing others and they are too enrolled in school.
3 Incentives (poshak, scholarship, book, mid day meal) absolutely cought their attention towards school.
4 PTA, SMS whatever nomenclature is being used worked very effectively.
With regards
Your younger brother
Md Asad Ali
Lifetime Student
SMC
ReplyDeleteRespected Sanjay sir, your analysis towards education in government school is praise worthy.I salute to all those teachers of Bihar who took pain to rejuvenate the education system and glorified our past ancient education system of Bihar.It gives the positive message to citizen of Bihar that in adverse condition A Teacher Is always Teacher.....
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