विभिन्न धर्मों के त्योहारों का वैज्ञानिक एवं शैक्षिक महत्व- कुमार गौरव - Teachers of Bihar

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Wednesday 13 November 2019

विभिन्न धर्मों के त्योहारों का वैज्ञानिक एवं शैक्षिक महत्व- कुमार गौरव

विभिन्न धर्मों के त्योहारों का वैज्ञानिक एवं शैक्षिक महत्व
कोई धर्म बुरा नहीं है जब तक उसमे कही लिखी बातों का गलत मतलब निकालकर लोगों को भरमाया जाए।       "मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना"
विभिन्न धर्मों से जुड़े हुए मेरे कुछ विचार हैं आप भी इसमें कुछ जोड़ना चाहे तो जरूर कमेंट बॉक्स में लिखें ताकि उन्हें जोड़कर इसे और महत्वपूर्ण बनाया जा सके

हिंदू धर्म के त्योहार
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(1) मकर सक्रांति- यह त्यौहार जनवरी के महीने में मनाया जाता है जनवरी का महीना ठंड का महीना होता है इस त्यौहार में  लोग तिल से बनी चीजें खाते हैं तिल को बहुत ही महत्वपूर्ण खाद्य वस्तु माना गया है। इसका तासीर काफी गर्म होता है जो ठंड में शरीर के तापमान को बनाए रखने में सहायक है।  तिल मे कॉपर ,मैग्नीशियम ,आयरन फास्फोरस, जिंक, प्रोटीन ,कैल्शियम ,बी कांपलेक्स कार्बोहाइड्रेट ,जैसे महत्वपूर्ण तत्व मिलते हैं।  तिल में एंटी ऑक्सीडेंट भी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं जोकि विभिन्न प्रकार के रोगों में सहायक होते हैं। 
          बच्चों को ठंड के समय में  तिल से होने वाले फायदे के विषय में समझाया जा सकता है। साथ ही ठंड के समय में  खाए जाने वाले  गर्म पदार्थ कौन-कौन से होते हैं  उनकी सूची बनवा कर इनसे होने वाले लाभों पर चर्चा की जा सकती है।

(2) होली- होली का त्यौहार ऐसे समय मैं आता है जब मौसम में हो रहे परिवर्तन के कारण लोग आलस,थकान और सुस्ती महसूस करते हैं। शरीर की इस सुस्ती को दूर करने के लिए लोग संगीत का आनंद लेते हैं। साथ ही शरीर पर डाले जाने वाला रंग स्फूर्ति और ताजगी   प्रदान करता है।
     शरद ऋतु की समाप्ति तथा बसंत ऋतु के आगमन से पर्यावरण तथा शरीर में बैक्टीरिया के वृद्धि होती है लेकिन जब हम होलिका दहन मनाते हैं तो उसमें निकलने वाला ताप लगभग 145 डिग्री फारेनहाइट हो जाता है और जब हम  होलिका दहन में परिक्रमा करते हैं तो शरीर तथा पर्यावरण के बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं इस प्रकार यह शरीर तथा पर्यावरण को स्वच्छ करता है।
     इस त्यौहार मैं लोग अपने घरों तथा आसपास की सफाई करते हैं जिससे धूल मच्छरों तथा कीटाणुओं का सफाया हो जाता है। साफ वातावरण हम सभी में सकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है।
   बच्चों को हम लोग साफ सफाई तथा विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक रंगों का दैनिक जीवन में महत्व समझा सकते हैं।प्राकृतिक रंगों को बनाने में फूल फल तथा सब्जियों का इस्तेमाल किया जा सकता है इन रंगों का त्वचा पर कोई गंभीर परिणाम नहीं होते हैं साथ ही हमारे त्वचा को बहुत अधिक लाभ पहुंचाते हैं। साथ ही बच्चों को विभिन्न प्रकार के रंग कैसे बनाए जाते हैं इसके बारे में समझ उत्पन्न की जा सकती है।
जैसे- चकुंदर के फल से जामुनी रंग , पलाश के फूलों से केसरिया रंग , हल्दी और चकुंदर को मिलाने से लाल रंग, हल्दी से  पीला रंग, पालक से हरा  रंग  प्राप्त किया जा सकता है।

(3) रक्षाबंधन- यह त्यौहार सिर्फ भाई बहन के पवित्र रिश्ते का ही त्यौहार नहीं बल्कि गुरु शिष्य परंपरा का प्रतीक त्योहार भी है। यह त्यौहार समाज में आपसी संबंधों, प्रेम, भाईचारा बढ़ाने में सहायक है।
    आयुर्वेद के अनुसार रक्षा सूत्र बांधने से बात ,पित्त और कफ का तालमेल शरीर में बना रहता है। यह पर्व वर्षा ऋतु में मनाया जाता है, इस समय वर्षा के कारण हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है हाथों पर रक्षा सूत्र बांधने से नसों पर दबाव पड़ता है जिस कारण से बात, पित्त और कफ नियंत्रित रहते हैं।
    बच्चों के बीच इस भ्रांति को दूर की जा सकती है कि यह त्यौहार सिर्फ इसी धर्म के लोग मना सकते हैं बल्कि इस त्यौहार में आपस में जिन बच्चों के बीच रिश्ते खराब हो उनको आपस में रक्षा सूत्र बांधकर संबंधों को अच्छा किया जा सकता है ऐसा मेरा मानना है। आजकल इसे फ्रेंडशिप बैंड के नाम से बच्चे एक दूसरे को फ्रेंडशिप डे के रूप में मनाते नजर आते हैं। साथी ही विभिन्न प्रकार के संबंधों का हमारे दैनिक जीवन में क्या महत्व है यह चर्चा बच्चों के बीच की जा सकती है। यह भी चर्चा हो सकती है की संबंधों को कायम रखने में कर्तव्यों का क्या योगदान है ।
   संबंधों का अर्थ सिर्फ भाई बहन ही नहीं है बल्कि एक शिक्षक और विद्यार्थी के बीच अच्छे संबंधों को किस प्रकार से निर्वहन किया जा सकता है यह भी आज के परिपेक्ष में शिक्षक आपसी चर्चा कर सकते हैं ।
  प्रत्येक विद्यार्थी को पर्यावरण को जीवित रखने के लिए एक पेड़ लगाने की आवश्यकता है ।साथ ही सिर्फ लगाना ही काफी नहीं है, बल्कि उस पेड़ को रक्षा सूत्र बांधकर बचाए रखने का संकल्प भी प्रतिदिन दोहराना होगा। उस पेड़ को जीवित रखने के लिए  कर्तव्यों का निर्वहन भी उतना ही आवश्यक होगा ,यह बच्चों को बताया जा सकता है।
 मेरे अनुसार इस प्रकार की गतिविधियां बच्चों में त्योहारों के सही अर्थ को समझने में काफी कारगर होगी तथा बच्चे इसे सहज ही अपने दैनिक जीवन में स्वीकार कर लेंगे ऐसा मेरा मानना है।

(4) नवरात्रि- नवरात्रि में लोग आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों को संचित करने के लिए विभिन्न प्रकार व्रत, संयम ,नियम, भजन , पूजन तथा योग साधना आदि 9 दिनों तक करते हैं। दिन की अपेक्षा रात्रि को अधिक महत्व दिया जाता है इसलिए 9 दिनों तक करने से इसे नवरात्र कहा जाता है। साल भर में दो बार( मार्च , सितंबर) यह त्यौहार मनाया जाता है। इन 2 महीनों में    रोगाणु आक्रमण की सबसे अधिक आशंका होती है। नवरात्र में पूरे नौ दिन तक मिश्री, नीम की पत्ती और काली मिर्च खाने की परम्परा है। क्योंकि इनके सेवन से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। योग और सीमित भोजन( व्रत या फल फूल का सेवन )करके तनमन को निर्मल और स्वस्थ बनाए रख सकते हैं। शरीर के भीतरी सफाई के लिए छे छे महीनों पर उपवास करने से शरीर की आंतरिक शुद्धि होती है। पद्मासन में रहने से पाचन तंत्र मजबूत बनता है।
  बच्चे अगर विभिन्न प्रकार की योग मुद्राएं गतिविधि के रूप में करते हैं तो शरीर स्वस्थ एवं निरोगी रहता है । साथ ही व्रत या उपवास को जीवन में अपनाने से शरीर की आंतरिक शुद्धि होती है। बच्चों को मन एकाग्रचित्त करने वाले योग मुद्राओं के विषय में बताया जा सकता है।

(5) दशहरा- नवरात्रि रामलीला का समापन भी इसी दिन होता है। नो दिन के उपवास के बाद लोग अन्न ग्रहण करते हैं जिसके कारण उनकी पाचन की प्रकिया प्रभावित होती है। पान का पत्ता पाचन की प्रक्रिया को सामान्य बनाए रखता है। इसलिए दशहरे के दिन शारीरिक प्रक्रियाओं को सामान्य बनाए रखने के लिए पान खाने की परम्परा है।  श्रीराम ने रावण को मारकर अपनी जीत का परचम लहराया था ।यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई या  अधर्म  पर  धर्म के जीत के रूप में मनाया जाता है।
  बच्चों के बीच इस पर्व के माध्यम से यह बताया जा सकता है की गलत रास्तों को चयन करके कभी भी जीवन में सफलता हासिल नहीं की जा सकती है और अगर हासिल कर भी ली जाए तो लंबे समय तक उसे बरकरार नहीं रखा जा सकता है। भगवान श्री राम के द्वारा जो कार्य किए गए हैं वह कहीं ना कहीं आज भी हमारे अंदर सात्विकता और प्रेम को बढ़ाते हैं ।
उदाहरण स्वरूप - शबरी के जूठे बेर खाना श्री राम जी के द्वारा उच्च और निम्न जाति के अंतर को मिटाता है बल्कि मानवता से ऊपर कोई जाति नहीं होती यह भी बताता है।

(6) दीपावली-श्रीराम अपनी पत्नी सीता व छोटे भाई लक्ष्मण सहित आयोध्या में वापिस लौटे थे तो नगरवासियों ने घर-घर दीप जलाकर खुशियां मनाईं थीं। इसी पौराणिक मान्यतानुसार प्रतिवर्ष घर-घर घी के दीये जलाए जाते हैं और खुशियां मनाई जाती हैं।
दीपावली पर्व ऐसे समय पर आता है, जब मौसम वर्षा ऋतु से निकलकर शरद ऋतु में प्रवेश करता है। इस समय वातावरण में वर्षा ऋतु में पैदा हुए विषाणु एवं कीटाणु सक्रिय रहते हैं और घर में दुर्गन्ध व गन्दगी भर जाती है।दीपावली पर घरों व दफ्तरों की साफ-सफाई व रंगाई-पुताई तो इस आस्था एवं विश्वास के साथ की जाती है, ताकि श्री लक्ष्मी जी यहां वास करें। लेकिन,  इस आस्था व विश्वास के चलते वर्षा ऋतु से उत्पन्न गन्दगी समाप्त हो जाती है। दीपावली पर दीपों की माला जलाई जाती है। घी व वनस्पति तेल से जलने वाल दीप न केवल वातावरण की दुर्गन्ध को समाप्त सुगन्धित बनाते हैं, बल्कि वातावरण में सक्रिय कीटाणुओं व विषाणुओं को समाप्त करके एकदम स्वच्छ वातावरण का निर्माण करते हैं। कहना न होगा कि दीपावली के दीपों का स्थान बिजली से जलने वाली रंग-बिरंगे बल्बों की लड़ियां कभी नहीं ले सकतीं। इसलिए हमें इस ‘प्रकाश-पर्व’ को पारंपरिक रूप मे ही मनाना चाहिए।
  बच्चों को साफ सफाई का दैनिक जीवन में महत्व को समझाया जा सकता है ।साथ ही स्वदेशी चीजों के प्रति बच्चों में जागरूकता पैदा की जा सकती है। दिए की तरह अन्य प्रकार के विभिन्न खिलौनों को मिट्टी से तैयार किया जा सकता है ।बच्चों को इन्हें बनाने के लिए प्रेरित किया जाए। साथ ही विभिन्न प्रकार के टीचिंग एड भी बच्चों के लिए मिट्टी से बनाए जा सकते हैं उदाहरण के लिए विभिन्न आकृतियां जैसे गोलाकार अंडाकार त्रिभुजाकार आदि। इन प्रकार की आकृतियां बच्चों की गणितीय समझ को मजबूत बना सकती हैं।

(7) छठ पर्व- इस पर मैं सूर्य देव की उपासना की जाती है। यह पर्व कार्तिक मास कि षष्ठी तिथि (छठ) को मनाया जाता है. षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर होता है. इस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं. उसके संभावित कुप्रभावों से रक्षा करने का सामर्थ्य इस परंपरा में रहा है.
इस पर्व में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. कहते हैं कि इन दोनों समय सूर्य को अर्घ्य देने के दौरान इसकी रोशनी के प्रभाव में आने से, कोई भी चर्म रोग नहीं होता और इंसान निरोगी रहता है. साथ ही इससे नेत्रों कि ज्योति भी बढती है. इस प्रकार धार्मिक और वैज्ञानिक आधार होने से छठ पर्व का महत्व और बढ़ जाता है.
   बच्चों को सूर्य की किरणों से मिलने वाली ऊर्जा के विषय में बताया जाए ।साथ ही विटामिन डी को एक्टिवेट करने का कार्य भी सूर्य करते हैं इसे भी समझाया जाए। बच्चों को सूर्य की किरणों से प्राप्त होने वाले ऊर्जा को संरक्षित करने के तरीकों को भी समझाया जा सकता है । बच्चों को नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय स्रोतों के विषय में अंतर समझाया जाए।

इस्लाम धर्म के त्योहार
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(1) रमजान-रमजान का महीना हर मुसलमान कि जिंदगी में बहुत मायने रखता है। रमजान में रोजा रखने से शरीर को विकारों से दूर करने में मदद मिलती है। शरीर का तंत्र और अपनी दिनचर्या व्यवस्थित हो जाती है। दूसरा, इस दौरान पता चलता है कि समय का क्या महत्व है। कितने बजे उठना है और कितने बजे सोना है। कितने बजे खाना है। सारे काम समय से किए जाते हैं।रमजान के महीने में रोजा नमाज के साथ खजूर का भी बहुत महत्व है। इस्लाम धर्म के लोगों की मान्यता है कि पैगंबर मोहम्मद अपना रोजा खजूर से ही खोला करते थे।खजूर खाने से सेहत को भी कई फायदे होते हैं।खजूर में पर्याप्त मात्रा में ग्लूकोज, फ्रक्टोज और सुक्रोज पाया जाता है।इफ्तार और सहरी में दो से चार खजूर खाने से भी शरीर को तुरंत ही एनर्जी मिलती है।खजूर में भरपूर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। इसके सेवन से डाइजेशन बेहतर होता है।साथ ही एसिडिटी की समस्या भी दूर होती है।खजूर में कैल्शयिम, मैगनीज और कॉपर की भी भरपूर मात्रा होती है. इसके सेवन से हड्डियों को मजबूती मिलती है।खजूर में मौजूद मैग्नीशियम और पोटैशियम ब्लड प्रेशर को बड़ने से रोकते हैं।
बच्चों को  व्रत करने के फायदों के विषय में बताया  जा सकता है ।बच्चों को विभिन्न प्रकार के ड्राई फ्रूट्स से होने वाले लाभो की सूची बनवाई जा सकती है । साथ ही विभिन्न प्रकार के रोगों में इनका सेवन किस प्रकार से फायदेमंद हो सकता है उसे भी बच्चों को बताया जा सकता है।
जैसे -अखरोट और बादाम मस्तिष्क के लिए लाभकारी हैं। काजू का सेवन हृदय संबंधी रोगों में लाभकारी है। पिस्ता और किसमिस खाने से कोलस्ट्रोल का लेवल शरीर में मेंटेन रहता है।इसके एंटीऑक्‍सीडेंट कैंसर, दिल की बीमारियों, मधुमेह, ऑक्‍सीडेटिव तनाव और मस्तिष्‍क से संबंधित समस्‍याओं को दूर करने में सहायक होते हैं।  नियमित रूप से ड्राई फ्रूट का सेवन करने पर कब्‍ज, पेट की गैस और पाचन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने में सहायक होते हैं।लगभग सभी ड्राई फ्रूट में आयरन की अच्‍छी मात्रा होती है।एनीमिया पीड़ित लोगों को इसलिए ड्राई फ्रूट का सेवन करने की सलाह दी जाती है। इन सभी लाभों को देखते हुए ड्राई फ्रूट का सेवन करना लाभकारी हो सकते हैं।

(2) बकरीद-हज भली-भांति सम्पन्न होने की खुशी में बकरीद मनाया जाता है। इस्लाम में त्याग की बहुत महत्ता है।बकरीद में गरीब और दुखी लोगों का खास ख्याल रखा जाता है। इस्लाम व्यक्ति को समाज के प्रति अपने कर्तव्यों के निर्वहन के लिए प्रेरित करता है। बकरीद के दिन सभी मुसलमान सजधज कर नए कपड़े पहन कर मस्जिद में नमाज पढ़ते हैं। लेकिन महिलाएं घर में ही नमाज पढ़ती है।रमजान के दौरान पढ़ी जाने वाली विशेष नमाज तरावीह भी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हैं। नमाज से हमारे शरीर की मांसपेशियों की कसरत हो जाती है। कुछ मांसपेशियां लंबाई में खिंचती है जिससे दूसरी मांसपेशियों पर दबाव बनता है। इस प्रकार मांसपेशियों को ऊर्जा हासिल होती है।कसरत डायबिटीज,सांस की बीमारियों,ब्लड प्रेशर में भी फायदेमंद होती है।
 बच्चों को नवाज के माध्यम से योग करने के प्रति प्रेरित किया जा सकता है जिससे बच्चे सेहतमंद रहेंगे। साथ ही त्याग और प्रेम की भावना को समझाने में मदद मिल सकती है। अमीरी गरीबी के भेदभाव से परे बच्चों में सौहार्द और आपसी भाईचारा बनाने में सहायक हो सकती है। बच्चों को साफ-सुथरे कपड़े पहनने की भी प्रेरणा दी जा सकती है जिससे सेहतमंद रहने की बात को बढ़ावा दिया जा सकता है।

(3)शब-ए-बारात -दो शब्दों, शब और बारात से मिलकर बना है, जहाँ शब का अर्थ रात होता है वहीं बारात का मतलब बरी होना होता है। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार यह रात साल में एक बार शाबान महीने की 14 तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरू होती है। मुसलमानों के लिए यह रात बेहद फज़ीलत (महिमा) की रात मानीजाती है, इस दिन विश्व के सारे मुसलमान अल्लाह की इबादत करते हैं। वे दुआएं मांगते हैं और अपने गुनाहों की तौबा करते हैं।
    बच्चों को भी उनकी होने वाली गलतियों को स्वीकारने  और  उसमें सुधार कर सही दिशा में चलने के लिए समझाया जा सकता है। जब तक बच्चे अपनी गलती को गलती मानते नहीं हैं तब तक उसमें सुधार की गुंजाइश ना के बराबर है। साथ ही गलतियों पर पर्दा डालना कभी भी उचित मार्ग नहीं हो सकता बल्कि उसे स्वीकार कर माफी हृदय से मांग लेना एक उचित मार्ग हो सकता है।

 सिख धर्म  के त्यौहार
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सिख धर्म अपने आप में ‘सीखने’ का ही नाम है। आप लोगों की सेवा करना सीखते हैं, समाज से जुड़ना सीखते हैं, सम्मान देना सीखते हैं, जमीन से जुड़े रहना सीखते हैं। 
सिख धर्म के ग्यारहवें स्वरूप ‘गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में ना केवल सिख गुरुओं की, वरन् हिन्दू तथा मुस्लिम संत-कवियों के उपदेश भी शामिल हैं। 

(1) लोहडी- यह त्यौहार मकर सक्रांति से 1 दिन पहले मनाया जाता है।प्रसाद में मुख्य रूप से तिल, गजक, गुड़, मूंगफली और मक्के की धानी (पॉपकार्न) बांटी जाती हैं। ढोल की थाप के साथ गिद्दा और भांगड़ा नृत्य इस अवसर पर विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं। 
 बच्चों को तिल और गुड़ से जुड़े हुए लाभकारी स्वास्थ संबंधित परिणामों को समझाया जा सकता है। साथ ही कोई भी नित्य बच्चों में नई ऊर्जा का संचार करता है साथ ही यह एक योग भी है।

(2) गुरु गोविंद सिंह जयंती-खालसा पंथ के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है।इस शुभ अवसर पर गुरुद्वारों में भव्य कार्यक्रम सहित गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है। अंत: सामूहिक भोज (लंगर) का आयोजन किया जाता है।
  सामूहिक रूप से किए गए लंगर समाज में विभिन्न समुदायों को एक साथ पाटने का काम करते हैं साथ ही आपसी प्रेम को और अधिक मजबूत करते हैं।
  बच्चों को भी आपस में एक साथ बैठकर भोजन करने की प्रेरणा दी जा सकती है जिनसे उनके बीच प्रेम बढ़ेगा और  सहयोगात्मक व्यवहार की आशाएं बढ़ेंगी।

(3) गुरु पर्व -गुरु नानक देव जी के जन्मोत्सव की खुशी में गुरु पर्व मनाया जाता है। इसे गुरु नानक जयंती या गुरु नानक प्रकाशोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। गुरु नानक देव जन्म से ही ज्ञानशील थे होने के कारण जनता की सेवा कर सदाचार अपनाने के लिए प्रेरित किया। साथ ही अंधविश्वास, कुरीतियों  का विरोध कर एकेश्वर का संदेश दिया।
बच्चों को सामाजिक अंधविश्वासों को दूर करने की प्रेरणा दी जा सकती है जैसे बिल्ली के रास्ता काटने पर आगे ना जाना, किसी के छींक मारने को अपशगुन मानना आदि। साथ ही बचपन से ही उन्हें गरीबों  ,जरूरतमंदों की सेवा करने के प्रति प्रोत्साहित किया जा सकता है। क्योंकि आज के समय में देखा जा रहा है की मोरल वैल्यू बिल्कुल घटते चले जा रहे हैं समाज को अगर स्वस्थ रखना है तो बच्चों के अंदर शुरू से ही मोरल वैल्यू की जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है जिससे वह समाज के ही नहीं बल्कि पूरे देश के हित का सोचे।

ईसाई धर्म के त्यौहार
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(1) क्रिसमस या बड़ा दिन-ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में मनाया जाने वाला त्यौहार है।क्रिसमस के दौरान उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता है साथ ही घर के साथ साथ आसपास को साफ सुथरा और रंगीन लाइटो से सजाया जाता है।
 बच्चों को इस त्यौहार के माध्यम से गरीब और जरूरतमंद बच्चों को उनकी शिक्षा संबंधित उपहार दिए जा सकते हैं। जैसे -किताबें ,पेंसिल ,रबड़, कलम ,कॉपी आदि।

(2) ईस्टर -महाप्रभु ईसा मसीह मृत्यु के तीन दिनों बाद इसी दिन फिर जी उठे थे, जिससे लोग हर्षोल्लास से झूम उठे। इसी की स्मृति में यह पर्व संपूर्ण ईसाई-जगत्‌ में प्रतिवर्ष बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।गॉड यीशु ने बहुत कठिन उपवास किये, त्याग व आत्म बलिदान किया. आज लोग उसी का अनुसरण करते हुए उनके इस बलिदान को याद करते है , और उनके लिये उपवास रखते है।
          बच्चों को यह समझाया जा सकता है कि जीवन में स्वार्थी बन के रहना हमेशा हितकर नहीं होता है समाज में उन्हीं लोगों का नाम होता है जिन्होंने समाज की भलाई के लिए अपने जीवन को त्याग और बलिदान से भर दिया। सार्वजनिक संपत्ति अर्थात सरकारी संपत्ति को अपने निजी हित के लिए इस्तेमाल ना करके समाज के हितों की पूर्ति करने के लिए किया जा सकता है।









कुमार गौरव
राजकीयकृत प्लस टू उच्च विद्यालय बिंद,
नालंदा

1 comment:

  1. आपका आलेख अत्यंत उपयोगी एवं सारगर्भित है जिसमें लगभग सभी धर्मों के वैज्ञानिक एवं सामाजिक सरोकारों को तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया गया है। यह बात प्रभावी तरीके से हमें बच्चों तक पहुंचाने की जरूरत है कि हमारे सभी धर्मों के त्यौहारों का प्रकृति से सीधा संबंध है।यदि हम ऐसा कर सके तो पर्यावरण संबंधी चिंताओं को कम करने में मदद मिलेगी। अच्छी प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद एवं बधाई।

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