Monday, 1 June 2020
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रंग रूप से भेदभाव-अपराजिता कुमारी
रंग रूप से भेदभाव
मैंने अपने विद्यालय में कई बार एक बच्चे को अन्य बच्चों द्वारा चिढ़ाते हुए सुना था, ”अब तेरा क्या होगा कालिया"! ये घोर आपत्तिजनक और रंगभेदी डायलॉग ने करोड़ों भारतियों का उनके रंग के आधार पर मजाक उड़ाया है। अक्सर मैंने देखा है ग्रामीण परिवेश के विद्यालयों में ज्यादातर सुविधा विहीन बच्चे एवं वंचित बच्चों के साथ अक्सर उनके रंग रूप को लेकर कई तरह के भेदभाव, समाज के द्वारा, विद्यालय में शिक्षकों के द्वारा तथा घर में अभिभावकों के द्वारा भी किए जाते हैं।जो बच्चियाँ रंग से थोड़ी गहरी हैं उनके अभिभावक अक्सर कहते सुने जाते हैं "चप्पल घिस जाई एकरा लागी लड़का खोजते खोजते"।अक्सर माँ कोसती है- "लड़की देवे के रहे भगवान त करिया काहे के देनी"!
सांवले या काले रंग का होना कोई ईश्वरीय महत्व नहीं रखता। मुख्य बात तो मन व बुद्धि की पवित्रता, आचरण, व्यवहार, सदाचार-चरित्र आदि की है जो अधिक ज्ञानी, सच्चरित्र व स्वस्थ है, वह काला, सांवला, असुन्दर व कुरूप होकर भी गोरे रंग के अज्ञानी, निर्बल चरित्र, सुन्दर व्यक्ति स्त्री व पुरूष से कहीं अधिक महत्वपूर्ण व सम्माननीय है परन्तु आजकल व्यवहार में ऐसा देखने में आता है कि गुणहीन गोरे रंग वालों को सांवले या काले रंग के व्यक्तियों से अधिक महत्व दिया जाता है और गुणवान सांवले व काले रंग के व्यक्तियों को गोरों से कम महत्व मिलता है। गोरे लोग काले लोगों को पसन्द नहीं करते व कईयों के साथ ऐसा भी होता है कि गोरे लोग काले लोगों से दूरी बना कर रखते हैं और वैवाहिक सम्बन्धों में यह समस्या अधिक आती है। इसी मनोविज्ञान के अनुसार समाज में भी गोरों को पसन्द किया जाता है और काले लोगों की उपेक्षा हो जाती है । यह हमारे समाज की अन्ध-धारणा या कूप-मण्डूक मान्यता है। इसे बदलना होगा और इसके लिए हमें ज्ञान का सहारा लेना होगा।
इसके लिए विद्यालयों व स्कूलों में अध्यापक बच्चों को इस पर विशेष रूप से पढ़ा व समझा सकते हैं कि वह जीवन मे काले व गोरे का भेद न करें क्योंकि शारीरिक सुंदरता से ज्यादा जरूरी मन की सुंदरता होती है और रंग-रूप, कद-काठी श्रेष्ठता या बुद्धिमत्ता का पैमाना नहीं है। यह अच्छी बात है कि हमारे संविधान व कानून में मनुष्यों के गोरे व काले रंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता।
भेदभाव का अन्य कारण मानसिकता से भी जुड़ा है क्योंकि हम लोग अंग्रेजों के गुलाम रहे हैं और अंग्रेजों के गोरे होने के कारण वह हम भारतीय जो काले, सांवले या कम गोरे होते थे, पर अत्याचार करते थे। अतः हमे भी उनसे यह मिथ्या धारणा या अन्ध-परम्परा विरासत में मिली जो हमारी मानसिकता में शामिल हो गयी है जिसे शिक्षा, ज्ञान व विवेक से दूर करना है । काले व गोरे रूप-रंग एवं भिन्न-भिन्न आकृतियाँ जिनमें लम्बा, नाटा, पतला, दुबला, मोटा, सुन्दर, कुरूप आदि होने के पीछे अन्य कई कारण स्पष्ट रूप से दिखाई देते है।
हमारी पृथ्वी के सभी भागों पर लोग रहते हैं। कहीं सर्दी अधिक है तो कहीं गर्मी अधिक होती है। कहीं वर्षा अधिक होती है तो कहीं बिलकुल ही नहीं होती। कहीं उर्वर भूमि है तो कहीं रेगिस्तान। जहाँ घास तक भी नहीं होती वहाँ पशु पालन भी नहीं किया जा सकता। कहीं पहाड़ है तो कहीं मैदान। अतः भौगोलिक कारणों से भी मनुष्य गोरे व काले रंग के होते हैं । अन्य कारणों में लोगों के रहन-सहन, खान-पान, धार्मिक विचार, आचरण, सोच, श्रम, व्यायाम या परिश्रमपूर्ण जीवन भी कारण होता है। अफ्रीका में प्रायः निर्धन लोग जिनके पास अधिक साधन व सुख-सुविधाएँ नहीं है प्रायः काले ही होते हैं। भारत की जलवायु शीतोष्ण होने के कारण यहाँ गोरे व काले तथा सभी कद-काठि व रंग के लोग होते हैं। सन्तानों के गोरे व काले रंग का होने का कारण प्रायः माता-पिता के अनुरूप होना भी है। यदि माता-पिता दोनों काले हैं तो सन्तान का काला होना प्रायः निश्चित होता है। गोरे माता-पिता की सन्तान गोरे हीं होते हैं परन्तु रंग का प्रभाव किसी भी रूप मे व्यक्ति के गुणों, ज्ञान, सदाचार आदि व चारित्रिक विशेषताओं पर नहीं पड़ता है।
अतः शिक्षित लोगों को इन बातों का हमेशा ध्यान रखना चाहिए और यदि प्राथमिक शिक्षा में ही इस विषय को सम्मिलित कर लिया जाय तो इससे भावी पीढ़ियों की मानसिकता बदली जा सकती है। गोरे रंग के व्यक्तियों द्वारा काले रंग के व्यक्तियों से यदा-कदा व यत्र-तत्र जो भेदभाव किया जाता है वह किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। गोरे रंग के लोग स्वयं गोरे नहीं बने और इसी प्रकार काले रंग के व्यक्ति अपनी इच्छा से काले नहीं बने है। जब बच्चे घरों और स्कूलों में रंग का भेदभाव सुनते और देखते हैं तो वे वही बातें सीखकर अपने जीवन, अपने व्यवहार में उतारते हैं। बड़े होते-होते यह उनकी आदत में परिवर्तित हो जाती है और फिर वे भी त्वचा के रंग से लोगों को आंकने लग जाते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि बचपन से ही उन्हें समझाया जाए कि किसी व्यक्ति की सुंदरता में उसकी त्वचा के रंग का कोई हाथ नहीं होता है। साथ ही साथ यह ज़िम्मेदारी स्कूलों और शिक्षकों की भी है कि वे बच्चों का रंग देखकर उनके साथ भेदभाव न करें और बच्चों को भी ऐसा करने से रोकें। इससे बच्चे अपने साथ-साथ पूरे परिवार को यह सीख देंगे। आखिर जो ज्ञान उन्हें घर से नहीं मिलता, वही तो शिक्षक प्रदान करते हैं।
इसके लिए सबसे पहले हमें खुद इस भेदभाव को समझना होगा और उसे अपने अंदर से खत्म करना होगा। याद रखें जो लोग किसी भी प्रकार का भेदभाव करने में हिस्सा लेते हैं, चाहे वो गोरे हों या सांवले, मन की सुंदरता उनसे दूरी बना लेती है। हमारा समाज हमसे अपेक्षा रखता है कि समाज में किसी भी प्रकार के बदलाव की जिम्मेदारी शिक्षकों की होती है। अक्सर सरकार द्वारा भी शिक्षकों पर ही सर्वप्रथम सारी जिम्मेदारियाँ डाल दी जाती है क्योंकि समाज एवं सरकार इस बात से वाकिफ है की शिक्षक वर्ग ही ऐसा सक्षम वर्ग है जो समाज के प्रति अपने दायित्व को बखूबी निभाता है। इसी क्रम में हम शिक्षकों का दायित्व है कि इस रंगभेद को अपने अपने विद्यालयों से खत्म करने की कोशिश करें।
अपराजिता कुमारी
राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय जिगना जगन्नाथ
ब्लॉक-हथुआ, गोपालगंज
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बहुत बढियां विषय चुना है आपने। बधाई
ReplyDelete@rrkofficial
🙏
Deleteबहुत अच्छा आलेख है मैम। बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDelete🙏
Deleteख़ूबसूरती से बड़ी ख़ूबसीरती होती है।
ReplyDelete🙏
Deleteबहुत ही सराहनीय और प्रेरक आलेख है। जितनी खुबसूरती से ग्रामीण इलाकों की बातोंको अपने आलेख मे समाहित की हैं वह काबिले तारीफ़ है।🙏🙏
ReplyDelete🙏
Deleteतन की सुंदरता पर मन की सुंदरता सदैव प्रभावी होती है। तन की सुंदरता भी पृथ्वी के अलग-अलग भागों पर भिन्न कसौटियों पर कसी जाती है। व्यक्ति चाहे पुरुष हो या स्त्री, वह अपने गुणों के कारण समाज में सम्मान प्राप्त करता है। रुप प्रशंसा दिला सकता है, सम्मान नहीं। पीटी ऊषा से लेकर बाराक ओबामा तक दुनिया में हजारों उदाहरण मिल जाएंगे जहां गुण ने इतना प्रभावित किया है कि उसकी वही छवि, जिसे हम काला कहें या कुरुप, अच्छी लगने लगती है और दुनिया उस छवि को लोकप्रियता के शिखर तक पहुंचा देती है। एक शिक्षक के रूप में हमें यही भाव बच्चों के मन में भरने की जरूरत है। अच्छे आलेख हेतु बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं.......
ReplyDelete🙏
Delete🙏
ReplyDeleteहकीकत यही है!
ReplyDeleteएक संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण विषय पर आपके द्वारा लिखित आलेख बहुत हीं उम्दा है बधाई मैम
ReplyDeleteबहुत सुंदर आलेख।
ReplyDeleteअति सुन्दर आलेख
ReplyDeleteरंग भेद के संबंध में सोचने और इस विषय पर विचार कर बच्चों को प्रेरित करने का अच्छा लेख है । बहुत बढिया ।
ReplyDeleteएक अच्छी कहानी
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