Sunday, 28 June 2020
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खुशी की चाबी-पूजा कुमारी
खुशी की चाबी
हमेशा खुश और बिंदास रहने वाला राघव कुछ दिनों से काफी बेचैनी महसूस कर रहा था। वो किसी से भी मिलना नहीं चाहता था और हमेशा गुमसुम सा रहता। उसके माता-पिता ने सोचा, डॉक्टर को दिखा लेते हैं। डॉक्टर ने पूरा चेक-अप और सारे टेस्ट्स किये लेकिन सब कुछ नॉर्मल था। फिर उसी डॉक्टर ने सलाह दी कि हो सकता है यह किसी मानसिक दबाव में हो इसलिए एक बार किसी मनोचिकित्सक से मिल लीजिये। जब उसके माता-पिता मनोचिकित्सक के पास गए तो उन्होंने बताया कि राघव किसी गंभीर मानसिक दबाव से गुज़र रहा है और इसलिए इसका हॉर्मोनल संतुलन बिगड़ गया है। कुछ दिनों तक हम इसकी काउंसलिंग करेंगे, कुछ दवाईयाँ देंगे और यह बिल्कुल ठीक हो जाएगा। असल में वो बोर्ड एग्जाम के कारण तनाव में आ गया था। कुछ ही दिनों में राघव पूरी तरह तंदुरुस्त हो गया। अब वो पहले की तरह ही खुश और बिंदास रहने लगा और अपने दोस्तों के साथ घूमने बाहर भी जाने लगा।
जब राघव मनोचिकित्सक के पास अपनी कॉउंसलिंग के लिए जाया करता था तो ये बात उसके दोस्तों में भी फैल गयी थी। अब जब वो एकदम नॉर्मल था तो उसके कुछ दोस्त बहुत खुश थे लेकिन कुछ दोस्त उसे बड़ा चिढ़ाते कि तू तो पागल हो गया था न ? तू तो मेन्टल डॉक्टर के पास जाता था। ये सब सुनकर वो युवक बहुत उदास होता। ऐसे ही एक दिन, दो दिन, तीन दिन बीता। चौथे दिन जब उन बदमाश दोस्तों ने उसे फिर से पागल कहकर चिढ़ाया तो राघव ने अपनी जेब से एक कागज़ का टुकड़ा निकाला और कहा- देखो मेरे पास तो सर्टिफिकेट है कि मैं बिल्कुल स्वस्थ हूँ और बाहर निकल सकता हूँ, क्या तुम्हारे पास सर्टिफिकेट है कि तुमलोग स्वस्थ हो और बाहर निकल सकते हो ? उसके सारे दोस्त सन्न रह गए और उनके पास इसका कोई जवाब नहीं था।
इस कहानी से हमें मुख्यतः दो सीख मिलती है- कभी भी अतिरिक्त तनाव नहीं लेना चाहिए क्योंकि अंततः ये हमें ही नुकसान पहुँचाता है और हर बात में अगर हम प्रश्न चिन्ह लगाते हैं तो हो सकता है कि हमारे खुद के अस्तित्व पर ही ऐसा चिन्ह लग जाए। हर बात में दुसरों की खिंचाई करने से हम खुद को ही अशांत कर रहे होते हैं।
कुछ इसी तरह की चीज़ें हम अभी भी देख रहे हैं कुछ लोग ज़रूरत से ज्यादा तनाव ले रहे हैं जो कि अंततः राघव की तरह उन्हें ही नुकसान पहुँचाएगा। कुछ लोगों को सिर्फ तबाही ही दिख रही है और उन्हें लग रहा कि सब कुछ खत्म हो जाएगा। गौरतलब है कि रतन टाटा जी ने पंद्रह सौ करोड़ दिए हैं देश को इस बीमारी से लड़ने के लिए और वो भी अपनी निजी संपत्ति से न कि CSR ( Corporate Social Responsibility) के तहत। आगे भी उन्होंने कहा है कि अगर ज़रूरत पड़ी तो वो अपनी पूरी संपत्ति दान में दे देंगे। इसी तरह और भी लोगों ने अपनी क्षमतानुसार भरपूर सहयोग किया है। "टीचर्स ऑफ बिहार" परिवार से भी लाखों में सहयोग किया गया है। और भी हम अपने-अपने स्तर पर प्रयास करके विपदा की घड़ी में भरपूर सहयोग प्रदान कर सकते हैं। अपने अगल-बगल के लोगों का सहयोग करें और उनमें जागरूकता पैदा करें। उन्हें खाने-पीने की चीज़ें, मास्क, साबुन इत्यादि दें। लोग खाने के बगैर मर रहे हैं। अगर आपके यहाँ कोई भूखा आता है तो उसे खाना खिलाएँ। कोई आपसे दस-बीस रुपये माँग रहा चाय-नास्ते के लिए तो उसकी मदद करें। कुछ लोग मास्क, सैनिटाइजर, खाना वगैरह बाँट रहे हैं। कुछ लोग भूख से भटक रहे बेज़ुबान जानवरों ( कुत्ते, बिल्ली) को खाना खिला रहे, उनकी हौसला अफज़ाई करें। दूसरों को सपोर्ट करें और हमेशा अपने अगल-बगल सकारात्मक माहौल बनाए रखें। किसी निःसहाय की सहायता का एक छोटा सा प्रयास आपको कितना सुकून देता है, इसे महसूस करके देखें। खुद को रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रखें। यह आपको मानसिक और भावनात्मक ऊर्जा से भर देगा।
तनाव लेने से राघव की तरह हार्मोनल बैलेंस बिगड़ सकता है। हो सके तो सारे सोशल मीडिया अकाउंट्स भी एक दिन के लिए डिएक्टिवेट कर दें और अपने परिवार के सदस्यों की भावनाओं को दिल से महसूस करने की कोशिश करें, उनका आभार व्यक्त करें! घर में रहें, खुश रहें, और एक हैप्पी फैमिली के लिए ईश्वर का शुक्रिया करें। स्वास्थ्य की चाबी आपकी खुशी में है और आभार व्यक्त करने से आपकी खुशी चक्रवृद्धि ब्याज के हिसाब से बढ़ेगी!
अंत में इन पंक्तियों पर गौर करें- " तूफ़ान को शांत करने की कोशिश छोड़ दें। खुद को शांत करें और आप देखेंगे कि आपको तूफ़ान की खूबसूरती महसूस होने लगेगी! तूफ़ान तो गुज़र ही जाता है"।
पूजा कुमारी
मध्य विद्यालय जितवारपुर
अररिया
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Very nice Puja dear
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी लेखनी, पूजा जी।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर एवं प्रेरणादायी लेख। धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत-बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteAti sunder mam
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