Friday, 26 June 2020
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जागरुकता-नीभा सिंह
जागरुकता
मादक पदार्थ कहे खाने वालों से
अरे तू क्या खाता है मुझको
एक दिन ऐसा आएगा
मैं भी तो खाऊँगा तुझको।
इंसान की सबसे बड़ी पूंजी है उसका अच्छा स्वास्थ्य क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन और स्वस्थ आत्मा बसती है लेकिन कुछ लोग अपने शरीर को जाने अनजाने में खुद ही बर्बाद कर देते हैं। शराब, बीड़ी, सिगरेट, गुटका, चरस, गांजा, अफीम, हेरोइन इत्यादि जैसे कई नशीली पदार्थों का सेवन करके असमय काल के मुँह में समा जाते हैं। लोग समझते हैं कि वह नशीली पदार्थों का सेवन कर रहे हैं। उन्हें यह नहीं पता कि कुछ दिनों के बाद नशीले पदार्थ उन्हें मौत के मुँह में धकेल देगा। कुछ बच्चे फेविकोल, पेट्रोल का गंध और स्वाद से भी आकर्षित होते हैं। मादक पदार्थ का दुरुपयोग विशेषकर युवा पीढ़ी एवं स्कूल जाने वाले छात्रों में बहुत ज्यादा बढ़ रही है। कई बार ऐसा देखा गया है सड़कों पर, प्लेटफार्म पर, बस्तियों में तथा अन्य कई जगहों पर छोटे बच्चे भी नशा में धुत पाए जाते है। और तो और महिलाएँ भी इससे अछूती नहीं रहीं। इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज या अन्य कॉलेजों में भी युवा इसे फैशन के रूप में सेवन कर रहे हैं। जिस तरह से आज हमारे देश में बच्चों एवं युवाओं का नशा के तरफ रुझान बढ़ रहा है, वह वाकई बहुत चिंता का विषय है। वह युवा जिसे हम देश की शक्ति मानते हैं एवं वे बच्चे जिसे देश का भविष्य मानते हैं, उन्हें आज नशे के कीड़े ने ऐसा जकड़ लिया है जैसे शिकारी अपने शिकार को जकड़ता है। मादक पदार्थों के प्रभाव से इंसान सही- गलत सोचने के काबिल नहीं रहता और विभिन्न प्रकार की गलतियाँ कर बैठते हैं। हिंसा, बलात्कार, चोरी, अनुशासन हीनता, आत्महत्या इत्यादि अनेक अपराधों के पीछे नशा एक बहुत बड़ी वजह है। मुँह, गले, फेफड़े का कैंसर, ब्लड प्रेशर, अवसाद एवं अन्य रोगों का मुख्य कारण विभिन्न प्रकार का नशा ही है। नशा एक ऐसा अभिशाप है जिससे इंसान का जीवन मौत के आगोश में चला जाता है एवं उसका परिवार बिखर जाता है। व्यक्ति में नशे का लत लगने के कई कारण हो सकते हैं जिसमें एक कारण है मानसिक परेशानी।
घर में या आसपास में नशा करते लोगों को देखकर, पुरानी एवं दुःखद घटनाओं को भूलने के लिए, रोमांच एवं पाश्चात देशों की नकल, बेरोजगारी, बुरी संगत, पारिवारिक कलह इत्यादि नशे का लती होना हो सकते हैं। इसके अलावे आजकल भागदौड़ के दुनियाँ में माता-पिता का अत्यधिक व्यस्तता बच्चे को अकेला कर देती है। माता-पिता के प्यार से वंचित होने के कारण वह नशे के आदि हो जाते हैं। जिस युवा पीढ़ी के बल पर भारत विकास के पथ पर प्रगतिशील होने का दंभ भर रही है उसी युवा पीढ़ी में नशे का सेंध लग रहा है। जो दिन प्रतिदिन बढ़ता ही चला जा रहा है।
राष्ट्रीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट की मानें तो भारत की आबादी का एक करोड़ सात लाख से भी ज्यादा लोग नशीली दवाइयों का सेवन ही नहीं करते बल्कि उसका पूर्णतया आदि भी हो गए हैं। हमारे देश में नशे का कारोबार भी विकराल रूप धारण करते जा रहे हैं। जहाँ एक और नशा दीमक की तरह युवाओं की जवानी को चाट रहा है वहीं दूसरी ओर यह सामाजिक सुरक्षा एवं विकास के लिए भी बहुत बड़ा खतरा है। इससे आतंकवाद को भी बढ़ावा मिल रहा है। इस प्रकार नशा देश को कई तरह से नुकसान पहुँचा रहा है।
मादक पदार्थों के समस्याओं को जागरूकता, बचाव और जरूरी मदद के माध्यम से रोका जा सकता है। इसके अलावा नशीली पदार्थों का सेवन करने वालों के प्रति सहयोग, सहानुभूति का भाव भी कारगर साबित होता है। अभिभावकों, अध्यापकों, चिकित्सकों, स्वयंसेवी संगठनों को चिकित्सा एवं पुनर्वास कार्यों से जोड़ा जाना चाहिए। अभिभावकों को बच्चों के साथ अधिक समय बिताना, मित्रता पूर्ण व्यवहार करना एवं उनके सुख-दुःख के बारे में जानना अत्यंत आवश्यक है।नशीली दवाओं एवं पदार्थों का सेवन करने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ते देख संयुक्त राष्ट्र ने 7 दिसंबर 1987 को एक प्रस्ताव पारित किया जिसके अंतर्गत हर वर्ष 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय नशा व मादक पदार्थ निषेध दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। इसका उद्देश्य एक तरफ लोगों में नशीली दवाओं एवं पदार्थों का दुरुपयोग एवं अवैध व्यापार के प्रति जागरूक किया जाना है वहीं दूसरी तरफ नशे की लती लोगों के उपचार की दिशा में भी महत्वपूर्ण कार्य करना है। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता में बालक को नशे की लत से छुड़ाने हेतु एक राष्ट्रीय स्तर की टोल फ्री नंबर भी दिया है। इस हेल्पलाइन सेवा से मादक पदार्थों के शिकार एवं उसके परिवार तथा समाज को मदद प्रदान की जाती है।
इन सब के बावजूद भी हमारे देश में नशीली वस्तुओं का सेवन करने वाले लोगों की संख्या काफी तेजी से बढ़ती जा रही है जो अत्यंत चिंतनीय है। इसकी जागरूकता के लिए सिर्फ एक दिन काफी नहीं है ।
हम शिक्षकों को राष्ट्र निर्माता कहा गया है। अतः एक शिक्षक होने के नाते बच्चों को सही दिशा और दशा प्रदान करना हमारा कर्तव्य है। हम जानते हैं कि बच्चे एक गीली मिट्टी के समान है और उसे सही आकार देना हम सबों का काम है। हमें समय-समय पर नशीली चीजों के नुकसान के बारे में बच्चों को बचपन से ही बताना आवश्यक है। उनके साथ दोस्ताना व्यवहार कर हम उनके जीवन से संबंधित सभी चीजों की जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करें। नशीली पदार्थों के सेवन से होने वाले नुकसान की चर्चा हम किसी प्रेरणादायक कहानी, किसी प्रत्यक्ष उदाहरण, नुक्कड़ नाटक इत्यादि के माध्यम से कर सकते हैं जिससे बच्चे इसके नुकसान के बारे में भली-भाँति जान सके और इन नशीली एवं खतरनाक पदार्थों का सेवन करने से बच सके।
नशीली पदार्थों से रहें दूर
जीवन सुख पाएँ भरपूर।
नीभा सिंह
मध्य विद्यालय जोगबनी
फारबिसगंज, अररिया
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बेहतरीन आलेख। बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत-बहुत सुन्दर!
ReplyDeletevery nice🙏
ReplyDeleteGreat👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼
ReplyDeleteआज की युवा पीढ़ी के लिए नशापान से खुद को बचा पाना सबसे बड़ी चुनौती है जो न केवल उन्हें शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमजोर कर रही है बल्कि यह उनके भविष्य निर्माण के मार्ग में भी सबसे बड़ी बाधा है। एक बार नशे का आदी हो जाने के बाद वह समाज एवं देश के लिए एक उपयोगी नागरिक बनने की बजाय बोझस्वरूप हो जाता है। परंतु इसकी शुरुआत तो किशोरावस्था में ही हो जाती है। अतः एक शिक्षक के रूप में हमारा कर्तव्य एवं दायित्व है कि हम अपने आचरण एवं व्यवहार से अपने छात्रों को नशे से दूर रहने में उनकी मदद करें। एक महत्वपूर्ण विषय पर सारगर्भित आलेख हेतु बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं......
ReplyDeleteVery nice 👌
ReplyDeleteवास्तव में धूम्रपान समाज तथा राष्ट्र के विकास में बाधक है। बहुत प्रसांगिक आलेख।
ReplyDeleteनशापान एक सामाजिक कुरीति भी है जिसका प्रसार आज के युवाओं में तेजी से हो रहा है जिसका दुष्प्रभाव नशापान करने वाले व्यक्तियों के साथ-साथ परिवार,समाज एवं देश पर पड़ता है! सारगर्भित लेख से यदि युवा पीढ़ी को हम नशापान से बचा सके तो समाज का बहुत बड़ा कल्याण होगा ! प्रस्तुत लेख के लिए निभा मैम को हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteआज के युवा पीढ़ी जो देश के कर्णधार हैं उन्हें अपने अच्छे बुरे का खुद ख्याल होना चाहिए। मैं तो कहूंगी बच्चों का पहला पाठशाला घर होता है।बचपन में हीं बच्चों को अपने आप में control करने की आदत डालनी चाहिए।आजकल के अभिभावक बच्चों की हरेक इच्छा पूरी कर देते हैं जिससे बच्चों में controlling power खत्म हो जाती है जो आगे जाकर बुरी लत से अपने आप को नहीं बचा पाते हैं। वो नशीली पदार्थों से नुकसान को समझते हुए भी बस आज भर के लिए सोचते हैं।परन्तु वह आज भर कभी ख़तम नहीं होता उसके बाद रोज का एक दिनचर्या बन कर रह जाता है।आजकल अभिभावक समय ना रहने के कारण बच्चों को अपनी संस्कृति से अवगत नहीं कर पाते हैं या खुद भी फैशन की दुनिया में बह रहे हैं जब कभी राह चलते लड़के/लड़कियां को नशा करते देखती हूं तो सचमुच ये हमारा संस्कृति के लिए विख्यात देश किस ओर जा रहा है समझ में नहीं आता है जो खुद नशा करेंगे वो बच्चों को क्या शिक्षा देंगे।
ReplyDeleteआपने नीभा जी बिल्कुल सही कहा है कि बचपन से ही बच्चों को नशीली पदार्थों के नुकसान के बारे में बताना चाहिए और अपने आस पड़ोस की सच्ची घटना से अवगत कराना चाहिए।
अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि अभिभावक को अपने बच्चों पर बचपन से ही विशेष ध्यान देना होगा और उसकी संगत पर ख्याल रखना होगा।
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