Wednesday, 4 November 2020
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लॉकडाउन और शिक्षण प्रतिपूर्ति-चन्द्रशेखर प्रसाद साहु
लॉकडाउन और शिक्षण प्रतिपूर्ति
विश्वव्यापी महामारी कोरोना वायरस के जानलेवा संक्रमण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से देश में घोषित लॉकडाउन ने जहाँ देश की अर्थव्यवस्था को चौपट किया वहीं शिक्षा व्यवस्था को भी तहस-नहस कर दिया। बिहार की शिक्षा भी इस चपेट में आकर ध्वस्त होने के कगार पर आ गई, खासकर प्रारंभिक शिक्षा । बिहार में अप्रैल माह से ही नवीन शैक्षणिक सत्र प्रारंभ होता है। लॉकडाउन की वजह से विद्यालय पूर्णतः बंद कर दिए गए । इससे सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की पढ़ाई बाधित हो गई । बच्चों की पढ़ाई में हो रही क्षति की प्रतिपूर्ति और उन्हें पढ़ाई से जोड़े रखने के लिए प्रारंभिक शिक्षा के विषय-वस्तुओं को ध्यान में रखकर ऑनलाइन कक्षा संचालन का एक बहुत ही सराहनीय कार्य शुभारंभ किया गया। इस दिशा में पहल करते हुए बिहार शिक्षा परियोजना के तत्वावधान में "टीचर्स ऑफ बिहार" के फेसबुक ग्रुप पर विषय विशेषज्ञ शिक्षकों के द्वारा लाइव क्लास चलाया गया जिसे "स्कूल ऑन मोबाइल" (SOM) का नाम दिया गया जो लगातार पचास दिनों तक चला और अंत में ऑनलाइन मूल्यांकन कर हजारों बच्चों को "प्रोत्साहन प्रमाण पत्र" भी दिया गया। इस दिशा में कदम आगे बढ़ाते हुए उन्नयन ऐप के द्वारा "मेरा मोबाइल मेरा विद्यालय" भी संचालित किया गया। दूरदर्शन द्वारा डी. डी. बिहार पर भी बच्चों के लिए शैक्षिक सामग्री प्रस्तुत की गई।
इस ऑनलाइन कक्षा संचालन में शिड्यूल वाइज कक्षा 12 वीं तक के सभी विषयों के पाठ्य-वस्तु प्रस्तुत किए गए। शिक्षायी सोच के इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में दर्जनों अध्यापकों ने विषय वस्तुओं की प्रभावी प्रस्तुति दी। इस कार्यक्रम का प्रिंट मीडिया एवं सोशल मीडिया में व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया। इसे शिक्षकों एवं अभिभावकों की सराहना भी मिली। बच्चे इस कार्यक्रम से जुड़कर लाभान्वित भी हुए। परंतु ऐसे कार्यक्रमों की अपनी कुछ सीमाएँ होती हैं। इससे वैसे स्कूली बच्चे लाभान्वित हुए जिनके घरों में एंड्रवायड मोबाइल या टी. वी. थे और जिनके अभिभावक इस संदर्भ में जागरूक एवं संवेदनशील थे। इस वास्तविकता से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि लॉकडाउन के कारण विद्यालय बंद रहने की स्थिति में बिहार के बहुसंख्यक स्कूली बच्चों की पढ़ाई में भारी क्षति हुई है। इस क्षति की प्रतिपूर्ति करना बिहार के शिक्षकों के लिए एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती से निपटना हम शिक्षकों के लिए सहज नहीं है। ऐसे बच्चे जिनकी शिक्षा का एक माध्यम सरकारी स्कूल है, वैसे स्कूली बच्चों को सभी विषयों का संपूर्ण पाठयक्रम/पाठ्यचर्या के साथ शिक्षण पूर्ण कराना हमारी सुनियोजित एवं सामूहिक योजना का अहम हिस्सा है। शिक्षण क्षति की प्रतिपूर्ति विस्तृत कार्य योजना के बल पर की जा सकती है ।
अगले माह से विद्यालय खुलना संभावित है। साल भर के विषय वस्तुओं को आठ माह में पूरा करना हम शिक्षकों के लिए निस्संदेह ही एक गंभीर वैचारिक पक्ष है । यह वैचारिक होने के साथ-साथ कार्यात्मक भी है। स्कूली बच्चों की पढ़ाई में कम से कम नुकसान हो, शिक्षण में हुई क्षति की प्रतिपूर्ति हो इसके लिए विद्यालय स्तर पर निम्नांकित कार्य-योजना बनाई जा सकती है और इस दिशा में मानसिक रूप से तैयार हुआ जा सकता है-
1) विद्यालय स्तर पर प्रधानाध्यापक एवं सभी शिक्षकों की सामूहिक बैठक कर एक विस्तृत कार्य-योजना बनाई जाए।
2) इस साल में बच्चों को शिक्षण में हुई क्षति की प्रतिपूर्ति पर संवेदनशील होकर प्रभावी रणनीति बनाई जाए।
3) साल भर के लिए निर्धारित सभी विषयों के सिलेबस/विषय वस्तुओं /पाठों को आठ महीनें में संतुलित तरीके से विभक्त किया जाए।
4) प्रत्येक महीने के लिए पाठ्यक्रम /पाठ्यचर्या/ विषय वस्तुओं /पाठों का निर्धारण कर शिक्षकों के द्वारा पूर्णतः जिम्मेवारी से कक्षा का संचालन किया जाए।
5) साल भर के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम/पाठ्यचर्या को आठ महीने में पूरा करने के लिए शिक्षकों को अधिक श्रम करने की जरूरत होगी । इसलिए इस दिशा में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर श्रमशीलता का कौशल विकसित किया जाए ।
6) आवश्यकता महसूस करने पर विद्यालय की समय- तालिका में भी वांछित परिवर्तन किया जाए।
7)अध्यापन कौशल का उपयोग करते हुए शिक्षकों के द्वारा शिक्षण अधिगम सामग्री एवं आई सी टी का प्रभावी उपयोग एवं उपयुक्त शिक्षण विधि का प्रयोग किया जाए ताकि कक्षा संचालन सफल एवं प्रभावोत्पादक हो।
8) स्कूली बच्चों को यह विश्वास दिलाया जाए कि हमलोग मिलकर साल भर का सिलेबस इतने समय में ही आनंददायक माहौल में अवश्य पूरा करेंगे।
9) कक्षा के मेधावी विद्यार्थियों को अपने सहपाठियों को शिक्षण में सहयोग करने के लिए प्रेरित किया जाए।
10) शिक्षकों में एक व्यापक विजन होना जरूरी है। अनेक नवाचारों/प्रोजेक्ट कार्यों को अपनाया जाए और बच्चों को सीखने का भरपूर अवसर प्रदान किया जाए।
11) समावेशी शिक्षा की बारीकियों को समझा जाए और सभी बच्चों को शिक्षण का समान अवसर उपलब्ध कराया जाए क्योंकि कम समय में साल भर का सिलेबस पूरा करने में विभिन्नताओं की स्थितियाँ उत्पन्न होने की अधिक संभावना है।
12) मासिक मूल्यांकन भी आठ महीने में निर्धारित पाठ्यवस्तुओं के आधार पर ही कराया जाए।
उपरोक्त बिंदुओं को ध्यान में रखकर स्कूली बच्चों के शिक्षण में हुई क्षति की प्रतिपूर्ति की जा सकती है। हमें यह सदैव ध्यान रखना चाहिए कि सभी बच्चों को समुचित शिक्षा उपलब्ध कराना ही हमारा एकमात्र लक्ष्य है।
चंद्रशेखर प्रसाद साहु
प्रधानाध्यापक
कन्या मध्य विद्यालय कुटुंबा
प्रखंड- कुटुंबा, औरंगाबाद
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