Sunday, 9 August 2020
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प्रकृतिवाद-मो. जाहिद हुसैन
प्रकृतिवाद को इस तरह समझे
एयरपोर्ट से कार में बैठकर एक शिक्षाविद और एक शिक्षक दोनों आपस में बातें करते हुए एक पाँच सितारा होटल में आयोजित सेमिनार में भाग लेने जा रहे थे । शिक्षक ने शिक्षाविद से एक सवाल किया- सर, प्रकृतिवाद(Naturalism) क्या है ? रास्ते में शिक्षाविद ने एक जगह कार को रुकवाया। वहाँ एक बच्चा स्कूल से पढ़कर आ रहा था । शिक्षाविद ने पास के एक पेड़ से दो पत्ते तोड़े और उस बच्चे को देकर कहा- बेटा तुम यह बताओ कि इनमें से कौन बड़ा है ? बच्चे ने तुरंत बता दिया यह बड़ा है। मैं कैसे मान लूँ कि यह बड़ा है? स्कूली बच्चे ने कहा- मुझे लग रहा है कि यह बड़ा है। मगर कैसे? बच्चा जवाब नहीं दे पाया। एक बच्चा जो वहीं पर भैंस चरा रहा था। उसे इन दो पत्तों को देकर शिक्षाविद ने पूछा- बेटा इनमें से कौन पत्ता बड़ा है? उसने बड़े पत्ते के ऊपर छोटे पत्ते को रख दिया और बोला नीचे वाला। शिक्षाविद ने शिक्षक से कहा- यही प्रकृतिवाद है। बच्चा प्रकृति की गोद में सीखता है। बच्चे ज्ञान का सृजन स्वयं करते हैं(NCF-2005)।
मैं( शिक्षाविद) एक सवाल करता हूँ। इसके बारे में आप विचार करेंगे। सवाल इस तरह है- एक बच्चा है जो स्कूल में पढ़ता है, उसे 1 से 20 तक की गिनती नहीं आती है। वह सही से न बोल पाता है और ही लिख पाता लेकिन वही लड़का शाम में एक चौराहे पर अंडा बेचा करता है। उससे जब कोई अंडा लेता है और जितने का भी लेता है, उतने पैसे उससे ले लेता है और ज्यादा पैसे लेने पर पैसे लौटाने भी होते हैं। वह बखूबी पैसे लौटा भी देता है। इतना ही नहीं अगर कोई कम पैसे देता है तो उससे कितने पैसे और लेने चाहिए उतने पैसों की उससे माँग भी करता है। आखिर ऐसा क्यों होता है? वह विद्यालय में 1 से 20 तक की गिनती नहीं लिख पाता।
हाँ मेरी बात अब आगे सुनें। बच्चे की अन्तर्निहित शिक्षा प्रकृति के सानिध्य में प्रस्फुटित होती है। पहाड़ की ऊँचाई से दृढ़ता, पौधों से मन की ताजगी, झरनों से सुख-दुःख की अनुभूति, हवाओं के थपेड़ों से मुश्किलों से लड़ना, सूर्य के किरणों से अपनी आभा बिखेरना, चंदा मामा तथा झिलमिल तारों से ज्ञान का दीप जलाना, कोयल की कूक से मीठी आवाज, कलियों से मुस्कुराना, फूलों से हँसना, डालियों से बलखाना, भौंरों से मंडराना, तितलियों से लुभाना, चिड़ियों से चहचहाना (सुनना, बोलना, कल्पना की दुनियाँ में पहुंच जाना) आदि से बच्चा जाने-अनजाने जीवन पर्यंत सीखता रहता है। बच्चों के लिए प्रकृति पूरी किताब है। इंसान अगर दिल से सुने तो बारिश की बूंदें और झींगुरों की आवाज में भी संगीत सुनाई देगी।
बच्चे की फितरत (स्वभाव) तथा कुदरत (पर्यावरण ) दोनों ही प्रकृति (Nature) है। सीखने-सिखाने में दोनों तरह की प्रकृति मेंअन्योन्याश्रय संबंध है। प्रत्येक बच्चों का प्रकृति के प्रति आकर्षण तथा ग्राह्य क्षमता अलग-अलग होती है इसलिए सीखने की प्रक्रिया भी उस पर निर्भर करती है लेकिन बच्चे की जिज्ञासा, इच्छा तथा मनोवृति के विपरीत जाकर कुछ भी नहीं सिखाया जा सकता। यदि बच्चे सीखना चाहेंगे तभी हम सिखा सकते हैं। इसके लिए एक शिक्षक का दायित्व है कि एक आनंददायक वातावरण का निर्माण करे क्योंकि बच्चा आनंद में सीखता है। बिना आनंद के उसे सिखाना मुश्किल है।
लोग कहते हैं कि नेचर(Nature) और सिग्नेचर (Signature)नहीं बदलता लेकिन परिस्थितिवश दोनों में बदलाव देखा जा सकता है। यदि प्रकृति से छेड़छाड़ या जोर जबरदस्ती किया जाता है तो वह विद्रुप तथा अनिष्टकारी हो जाता है और आपने बैंकों में तो किसी डिप्रेस्ड व्यक्ति को सिग्नेचर मिलाने के लिए बैंकर्स कितना झेलते हैं यह तो देखा ही होगा। बुजुर्गों को पेंशन लेने में हस्ताक्षर मिलान करने में कितनी परेशानी होती है यह भी आप लोगों ने देखा होगा।
शिक्षा में प्रकृतिवाद के जनक फ्रांस के महान विचारक रूसो हैं जिन्होंने प्रकृति की ओर लौटो का नारा दिया। उनकी सर्वोत्तम रचना 'एमिल' है जो प्रकृतिवाद का आधार है। इसी उपन्यास के इर्द-गिर्द उसका प्रकृतिवाद घूमता है। 'एमिल' में दो प्रमुख पात्र हैं- सोफिया और एमिल। एमिल तथा सोफिया प्रकृति की गोद में पलते-बढ़ते हैं तथा पुष्पित-पल्लवित होते हैं। रूसो कुदरत की वादियों के आजाद माहौल में एमिल और सोफिया की परवरिश करता नजर आता है जहाँ उसे शिक्षा मिलती है। प्रकृति सर्वोपरि है, यह साफ झलकता है ।
रूसो के अनुसार शिक्षा में तीन महत्वपूर्ण पक्ष हैं- बच्चों की अंतर्निहित शक्ति, सामाजिक वातावरण तथा भौतिक वातावरण। प्रत्येक बच्चा कुछ सहज क्रियाएँ लेकर पैदा होता है जो बाह्य पर्यावरण के संपर्क में आकर अपने ज्ञान इंद्रियों के द्वारा जीवन में काम आने वाले सहायक क्रियाओं का निर्माण करता है। हरबर्ट स्पेंसर ने रूसो के हसीन वादियों में खिलती रूमानी (Romantic)प्रकृतिवाद को सही रूप में चरम सीमा पर पहुँचाया । शिक्षा प्रकृति, मानव या वस्तुओं से भी ली जा सकती है।
हरबर्ट स्पेंसर के अनुसार प्रकृतिवाद में संपूर्ण पाठ्यचर्या का आधार विज्ञान माना गया है। पाठ्यक्रम के केंद्र में बच्चा है। स्वतंत्र वातावरण में बच्चे की स्वाभाविक क्रिया, योग्यता, मूल प्रवृत्ति, विभिन्नताएँ, अभिरुचि पाठ्यक्रम है तो समस्त विश्व ही बच्चों के लिए पाठ्य-पुस्तक है। यहाँ शिक्षक की भूमिका नगन्य है।शिक्षा का उद्देश्य नवीन परस्थितियों में सामंजस्य स्थापित करना तथा सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों के अनुकूल आचरण करना है। प्रकृतिवाद में स्वअनुशासन का काफी महत्व है क्योंकि शिक्षक की भूमिका गौण है। प्रकृतिवादी बच्चे को अपने आप सीखने की पूरी आजादी देते हैं। उनका कहना है कि बच्चे गलती करके भी सीखते हैं। उदाहरणस्वरूप बच्चे अगर लालटेन के शीशे को उँगलियों से छू ले तो फिर बच्चे उसे नहीं छूते। समस्या का समाधान हमेशा वे निकालते रहते हैं। बच्चे की बारंबार सुखदायी अनुभूति व्यवहार में आने से अक्सर अच्छा ही करते। आजकल प्रकृतिवाद की धूम है क्योंकि इससे जनित सहज विधियाँ एवं प्रणालियाँ काफी उपयोगी हैं। स्वअधिगम, क्रिया-विधि, खेल-विधि, बाल -केंद्रित शिक्षा, भ्रमण- विधि, गतिविधि आधारित शिक्षण विधि, लोकतांत्रिक विधि आदि प्रकृतिवाद का हीं देन है।
मुख्यमंत्री परिभ्रमण योजना प्रकृतिवादी विचारधारा है। बच्चे पर्यटन स्थल को देखकर ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा वैज्ञानिक आदि पहलूओं को जानते हैं। शिक्षण प्रणालियों में मांटेसरी प्रणाली, डाल्टन प्रणाली (प्रयोगशाला विधि), ह्यूरिस्टिक प्रणाली(I discover) बच्चे को परिणाम प्राप्त करने के लिए चुनौती दी जाती है इसलिए इसे "मैं खोज करता हूँ" भी कहा जाता है। जिस तरह आर्किमिडीज को यह चुनौती दी गई थी कि आप किसी भी तरह मुकुट के बारे में बताएँ कि यह असली है या नकली। वह नदी में डुबकी लगाते समय उत्प्लावन का नियम निकाल लिया था और उसने सही-सही बता दिया।गणितज्ञ रामानुजन भी माथा लगाकर इसी तरह गणित की गुत्थियों को सुलझा लेता थे। किंडर गार्टेन (जर्मनी के शिक्षाशास्त्री फोर्बेल के द्वारा दिया गया था। बच्चों की फुलवारी अर्थात मुस्कान की अवधारणा- योजना प्रणाली, निरीक्षण प्रणाली(खोजबीन) आदि है। विरोधी रूसो तथा हरबर्ट स्पेंसर के प्रकृतिवाद की आलोचना करते हैं। मानो कि कोई बच्चा गड्ढे में गिरना चाहता है तो क्या उसे गिरने देना चाहिए ? बिल्कुल नहीं। क्या कोई बच्चा जहर का स्वाद पता करना चाहता है तो क्या उसे जहर चखने देना चाहिए ? बिल्कुल नहीं।
प्रकृतिवाद में बच्चे की आजादी दोष बनकर उभरती है। हम इस बात को जानते हैं कि आदि मानव पेड़-पौधों को खाते थे। इस क्रम में जहरीले पेड़-पौधों को भी खा लेते थे जिससे उसकी जान भी चली जाती थी।मरने वाले तो मर गए, बाद के लोगों को पता चला कि कौन से पौधों के कंद-मूल, फूल, पत्ती खाना चाहिए। प्रकृतिवादी ऐसी चुनौती को स्वीकार करते है। आज कोरोनावायरस के वैक्सीन बनाने में इंसान को तरह-तरह की दवाइयाँ देकर परीक्षण किए जा रहे हैं। जाहिर सी बात है कि जिन लोगों पर परीक्षण किया जाता है उन पर दुष्प्रभाव भी अवश्य पड़ता होगा। यही कारण है कि जिन लोगों पर परीक्षण किया जाता है, उनसे सहमती लेना जरूरी है लेकिन रूसो आगे कहते हैं कि प्रकृति को नजरअंदाज करने पर प्रकृति खुद उसे सजा देती है तथा अच्छा करने पर इनाम देती है। होम्योपैथ के जनक हैनीमैन पेड़-पौधों को खाकर तीन-चार दिनों तक पड़े रहते थे। सिनकोना खाकर बुखार की हालत में तीन-चार दिन पड़े रहे । इस तरह लक्षणों की जानकारी करते थे क्योंकि लक्षणों को जानकर ही होम्योपैथ इलाज किया जाता है। इसका तो सिद्धांत ही है कि जिन चीजों में जो लक्षण मिलते हैं वही लक्षण अगर मरीज में दिखे तो उसका अर्क देने पर वह ठीक हो जाता है। इससे तो प्रकृतिवादियों को बल मिलता है। लेकिन अगर इस प्रयोग को बच्चा करने लगे तो क्या उसे करने देना चाहिए? बिल्कुल नहीं।
लेकिन इस बात को समझना चाहिए कि स्वतंत्रता का मतलब उच्छृंखलता नहीं है। शिक्षक को थोड़ा ही सही सुनियोजित तरीके से शिक्षण-अधिगम में मार्गदर्शन जरूरी है। बेलगाम प्रकृतिवाद पर व्यवहारवाद लगाम लगाता है क्योंकि व्यवहारवाद में शोध की संभावना हमेशा रहती है। प्रकृतिवाद में व्यवहारवाद का घालमेल खामियों को दूर कर देता है। वाद- प्रतिवाद (Thesis-antithesis) तो चलता ही रहता है। यह चक्रीय प्रक्रिया (Cyclic Process) है क्योंकि सत्य (Perfection) कुछ भी नहीं होता। सत्य के ऊपर भी सत्य होता है। कोई भी वाद निर्विवाद नहीं होता। सभी का अपना-अपना महत्व है। प्रकृतिवाद का शिक्षा में एक अलग ही स्थान है। प्रकृतिवाद सृजनवाद (Constructivism) का मूल मंत्र है जिसपर आधुनिक शिक्षा का दर्शन टिका हुआ है।
मो. जाहिद हुसैन
उत्क्रमित मध्य विद्यालय मलह बिगहा
चंडी, नालंदा
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Waah....Bahut achha likha hai Aapne
ReplyDeleteबहुत सुंदर आलेख सर । आपने प्रकृतिवाद कि बहुत ही खूबसूरत ढंग से चित्रण किया है ।कसम से पढ़ कर मज़ा आ गया ।
ReplyDeleteلاجواب تحیر
ReplyDeleteBahut hi sundar.
ReplyDeleteAti sunder. Padhkar kafi samjh aaya sir....
ReplyDeleteAti sunder.. Padhkar Achha laga
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