संवेदनशीलता एक विशिष्ट प्राकृतिक गुण-शुकदेव पाठक - Teachers of Bihar

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Saturday, 8 August 2020

संवेदनशीलता एक विशिष्ट प्राकृतिक गुण-शुकदेव पाठक


     संवेदनशीलता एक विशिष्ट प्राकृतिक गुण 


          मानव जाति कई प्राकृतिक गुणों से भरपूर एक ऐसी ईश्वर की अनुपम-अनोखी रचना है जिसमें ब्रह्मांड के समस्त गुण-धर्म विद्यमान हैं। मानवीय स्वाभाविक गुणों में पहला प्रेम है। प्रेम ही मालिक है। प्रेम ही अगुवा है। प्रेम को पूर्णता प्रदान करने हेतु ईश्वर ने करुणा, दया, ममता, सौहार्द, समरसता, एकरूपता, विश्वसनीयता, धैर्य, संतोष, बोध आदि गुणों को बड़े ही ‘संवेदनशीलता’ से पिरोया है।
          आखिर मानव इन प्राकृतिक गुणों को सजगता के साथ क्यों नहीं जागृत कर रहा है। यह सभी गुण हमारे अंदर यदि हैं तो क्या हमें इसका सही उपयोग नहीं करना चाहिए। जो परमात्मा ने हमें इन सभी गुणों से भरपूर एक ऐसी फुलवारी की तरह सजाया है जिसमें तरह-तरह के सुगंधित फूल हैं। जिसकी जरूरत ईश्वर के अलग-अलग रूपों में भिन्नता के साथ अर्पण करने में किया जाता है। सभी को यदि हम एक रूप में देखें तो वही फुलवारी नजर आता है जैसे कि ‘संवेदनशीलता’।
          हम यूँ कहें कि मानवीय संवेदनशीलता हमारी ऐसी चिंता है जो मानव को मानवता से जोड़ती है, जिसके फलस्वरूप हम अपनी स्वयं की सीमा को लांघ कर अपने पास-पड़ोस, समुदाय-समाज, प्रदेश तथा राष्ट्रहित का चिंतन करते हैं। इससे हम यह भी स्पष्ट कर पाते हैं कि मानवीय संवेदना हमें अच्छे-बुरे की पहचान कराती है जिससे हम यह तय करते हैं कि हमें कहाँ खड़ा होना है किसका साथ देना है और किन सामाजिक बुराइयों का विरोध करना है।
          संवेदनशीलता को मानव जीवन के चरित्र की व्यापक गहराइयों से देखा जा सकता है। हमें यह नहीं लगता कि हम अपने स्वभाविक स्वरूपों पर एक ऐसा दबाव डाल रहे हैं जो हमें ही नहीं वरन इस प्रकृति को उद्वेलित कर रही है। यह हमारे अंदरूनी भावों की अनुभूति कराती है। यदि हमारे भाव सही हैं तो हमारी संवेदना सुखात्मक होगी और यदि 'सं' भाव नहीं है तो हमारी संवेदना यानि वेदना, यूँ कहें कि दुखात्मक। 
          इसे हम एक कहानी के माध्यम से समझ सकते हैं- एक राजकुमार था। राजकुमार काफी होनहार, बुद्धिमान तथा पराक्रमी भी था। उसमें राजा होने के सभी गुण विद्यमान थे। एक दिन राजा ने अपने बेटे का परिचय अपने गुरुजी से कराया। गुरुजी बोले- राजन ! राजकुमार को गुरुकुल भेजो। राजा ने पूछा- क्यों गुरुदेव मेरे बेटे में तो सभी गुण विद्यमान हैं। गुरु जी ने कहा- राजन! इसमें मानवता का विकास बांकी है। जब तक ह्रदय की संवेदना विकसित नहीं होगी तो यह सर्वनाश कर सकता है। राजा पूरी तरह दिग्भ्रमित था। उसने गुरुजी की बात नहीं मानी।  एक दिन राजकुमार अपने राज्य में भ्रमण पर निकला। उसको देखने के लिए नवयुवकों की भीड़ इकट्ठा हो गई। इसी भीड़ का एक युवक राजकुमार के घोड़े की पूँछ को  छुआ। घोड़ा ने लात मारी और वह युवक घायल हो गया। यह देख राजकुमार हँसते हुए चल गया। इस घटना को कुछ बुजुर्ग देख रहे थे। वे काफी चिंतित हुए तथा वे राज दरबार में राजा से जाकर बोले- राजन! आपका बेटा सभी गुणों से संपन्न तो है परंतु संवेदनशील बुद्धि नहीं है इसे हमलोग राजा स्वीकार नहीं करेंगे और न ही आपको राजा बनाने देंगे। राजा सब कुछ समझ चुका था। मेरा लड़का जो भी निर्णय लेगा वह प्रजा पर उल्टा पड़ेगा। राजा ने तुरंत राजकुमार को गुरुजी के पास भेज दिया तथा गुरुजी से  उसमें संवेदनशीलता, मानवता जैसे गुणों को जागृत करने का आग्रह भी किया। इसी प्रकार हमें बच्चों में सभी प्राकृतिक गुणों को विकसित होने को प्रेरित करना चाहिए ताकि बच्चों में समभाव, प्रेम, संवेदना जैसे आत्मीय गुणों का विकास हो सके। इसको उभारने में हमलोग तथा हमारी विद्यालयी गतिविधि जैसे- खेल प्रतियोगिता, निबंध लेखन, चित्रांकन तथा अंत्याक्षरी सहायक हो सकते हैं।
इसीलिए कबीरदास जी ने लिखा-


           

शुकदेव पाठक
म. वि. कर्मा बसंतपुर
कुटुंबा, औरंगाबाद

3 comments:

  1. बहुत सुंदर आलेख, धीरे समाज में मानवता खत्म हो रही हैं।

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  2. बहुत सुंदर आलेख, समाज में मानवता खत्म हो रही हैं।

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