विद्यालय की आबोहवा-अभिषेक कुमार सिंह - Teachers of Bihar

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Friday 24 July 2020

विद्यालय की आबोहवा-अभिषेक कुमार सिंह

विद्यालय की आबोहवा

          प्राचीन काल में जब भी शिक्षा की बात होती है तो उस समय केवल और केवल गुरुकुल की व्यवस्थाएँ बरबस याद आने लगती हैं जब समाज के बहुतेरे लोग शिक्षा से वंचित रह जाते थे लेकिन आहिस्ता आहिस्ता ही सही समय ने जब करवट बदला या यूं कहें एक दिवास्वप्न साकार होते दिखा जिसे विद्यालय के नाम से जाना जाने लगा जिसने हम सभी के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन कर एक नई उड़ान भरने की आजादी व शुभ अवसर प्रदान किया। जो हम सभी वर्गों, धर्मों के लोग इस विद्या रूपी मंदिर में अपने संस्कारों, आदर्शों एवं अनुभव के साथ उपस्थित होकर उन सभी आयामों का अवलोकन, आत्ममंथन तथा आत्मचिंतन के साथ एक स्वच्छंद वातावरण में आत्मसात करने का एक पवित्र स्थान बन गया। जहाँ  छात्र और समाज दोनों गुरु को आदर्श या यूं कह लीजिए उन्हें ईश्वर से भी अधिक दर्जा दिया करते थे। विद्यालय में उनकी पूरी आस्था व विश्वास प्रदर्शित होती  थी जो एक सुखद अहसास की अनुभूति कराता था। जहाँ सभी लोगों में प्रेम, आपसी भाईचारा, नैतिकता एक दूसरे की मदद, आपसी संबंध, सामाजिक ताना-बाना, संस्कृति एवं संस्कार का अद्भुत संगम दिखाई देता था। जिसके परिणाम स्वरूप हमारे समाज ने अनेक विभूतियों की परवरीश अपने विद्यालयों में किया जिन्होंने देश या यूं कहें विदेश में भी आमूलचूल परिवर्तन लाते हुए विश्व के मानस पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ी । जिन्हें आज की दुनियाँ बड़े गर्व और अदब के साथ याद करती है। उनका सूर्योदय भी गुरु चरण से प्रारंभ होता था और सूर्यास्त भी। लेकिन वह दौर और था।
          आज के बदलते परिवेश में जहाँ शिक्षा व्यवसायिक व अर्थोपार्जन का रूप ले चुकी है। जहाँ शिक्षा का तात्पर्य या उद्देश्य केवल और केवल अर्थ कमाना ही रह गया है। जो पूरी शिक्षा व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है। हालांकि सभी राज्य सरकारें  यह बात कहने में कोई गुरेज नहीं करती है कि शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है। जी माना लेकिन समाज एवं समुदाय के हालात कुछ और ही बयां कर रहे हैं जो हम सभी को एक बार सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि आखिर ऐसी विकट स्थिति समाज में क्यों उत्पन्न हो रही है जहाँ सभी लोग शिक्षित होने के बावजूद मानवीय कुकृतियों के  कारण मानवता शर्मसार हो रही है। तब मैं बहुत बेबाकी  से कहना चाहता हूँ कि मुझे ऐसा महसूस हुआ कि हम अपने समाज को केवल और केवल शिक्षित करने की होड़ में हैं। 
          क्या हमने उन्हें शिक्षा देकर उनके व्यवहार में आमूलचूल परिवर्तन लाया ? अगर हाँ तो हमने वास्तविक रूप से शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति कर ली।जिसके उपरांत समाज पर इसके दूरगामी परिणाम परिलक्षित होंगे तब आने वाला कल या नहीं पीढ़ी एक शिक्षित समाज की होगी जहाँ शांति, समृद्धि, सुखचैन, आपसी भाईचारा, प्यार, सौहार्द, आदर सम्मान, व भारतीय संस्कार से लबरेज एक संगठित समाज की मजबूत आधारशिला रखी जा सकती है।


अभिषेक कुमार सिंह
मध्य विद्यालय जहानाबाद 
कुदरा कैमूर भभुआ

8 comments:

  1. बहुत-बहुत सुन्दर!

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  2. Well done.we are proud of you

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  3. बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित अभिव्यक्ति।समकालीन शैक्षणिक दशा और दिशाका यथार्थ चित्रण।अभिषेक सर को हार्दिक शुभकामनाएं एवम कोटि कोटि बधाई । परमा नन्द सिंह ums GOLAUDIH kudra.

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