बच्चों के संदर्भ में कार्य शिक्षा की भूमिका-राकेश कुमार - Teachers of Bihar

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Wednesday, 5 August 2020

बच्चों के संदर्भ में कार्य शिक्षा की भूमिका-राकेश कुमार

बच्चों के संदर्भ में "कार्य शिक्षा" की भूमिका

           वर्तमान संदर्भित शिक्षा व्यवस्था में आज हम सभी बच्चों में सर्वांगीण विकास अर्थात् मूल शिक्षा के इतर नैतिक मूल्यों एवं सामाजिक उत्तरदायित्वपूर्ण शिक्षा देने हेतु प्रयासरत हैं। उपर्युक्त शीर्षक  के अनुसार अगर  हम कार्य को  विवेचित करें तो अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में हम प्रातःकाल से सायंकाल तक स्वयं को तरह-तरह के गतिविधियों में संलग्न पाते हैं। कुछ गतिविधियों में हम सभी ये महसूस करते हैं कि हमारा मस्तिष्क  भिन्न-भिन्न इंद्रियों के साथ क्रियाशील होता है तो कुछ में हमारे हाथ और पैर अधिक क्रियाशील होते हैं। जब हमारा मस्तिष्क अधिक क्रियाशील होता है तब हम इसे मानसिक कार्य की संज्ञा देते हैं और जब हम पैरों से अधिक काम लेते हैं तो इसे शारीरिक कार्य की संज्ञा देते हैं। इस तरह स्पष्ट होता है की दोनों प्रकार के कार्य हमारे जीवन का अभिन्न अंग है क्योंकि जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति तथा शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए कार्य जरूरी है। यहाँ पर हम वर्तमान संदर्भित यानि वर्ष 2020 अर्थात् कोरोना काल पर गौर करें तो स्पष्ट हो जाता है कि इसनें हमारी स्वास्थ्य, शिक्षा और शिक्षण विधि सभी को एक नई राह तलाशने को विवश किया या अगर ये कहें कि इसने ये भी संदेश दिया कि हमें प्राचीन एवं आधुनिकता के बीच सामंजस्य स्थापित कर आगे बढ़ना होगा। आज के परिस्थितियों में सबसे अधिक बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई इसकी भरपाई हमनें (शिक्षकों ने) कई स्तर से करने का प्रयास किया लेकिन यहाँ एक प्रश्न दृष्टिगोचर होता है कि क्या ये व्यवस्था पूर्णकालिक हो सकती है? तो इसका जबाब शायद नहीं होगा। आज विद्यालयी शिक्षा व्यवस्था ठप है क्योंकि बच्चों में कोरोना संक्रमण का खतरा ज्यादा है। आज हम सभी इसपर मंथन कर रहे हैं कि बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य और सामाजिक गुणों से युक्त शिक्षा कैसे दें ? हमारे यहाँ (भारत में ) इसका जबाब पहले से मौजूद है। यहाँ महात्मा गाँधी द्वारा 18 फरवरी 1939 में प्रशिक्षु अध्यापकों से बातचीत का उल्लेख किया जा रहा है जिसमें  उन्हहने  कहा था कि "हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव लाना है। मस्तिष्क को हाथ के जरिए शिक्षित होना चाहिए। अगर मैं कवि होता तो पाँचों उँगलियों की संभावनाओं पर कविता लिखता। आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि दिमाग हीं सबकुछ है और हाथ-पैर कुछ नहीं ? जो लोग हाथ को प्रशिक्षित नहीं करते और सामान्य ढंग से शिक्षा पाते हैं उनमें जीवन का संगीत नहीं होता। उनके शरीर का हर अंग प्रशिक्षित नहीं होता। सिर्फ किताबी ज्ञान बच्चे के भीतर इतनी जिज्ञाशा नहीं जगा सकता  कि उसका पूरा ध्यान उस पर केंद्रित हो सके। सिर्फ शब्दों की शिक्षा से बच्चे का दिमाग थक जाएगा और भटकने लगेगा"।
           इन तथ्यों पर गौर करें तो स्पष्ट होगा कि गाँधी जी का संकेत किस ओर था या कहें तो हम सभी भी प्रयासरत रहते हैं कि बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ उनमें  नैतिक मूल्यों एवं सामाजिक भावना का भी विकास हो। गाँधी जी भी हाथ से किए गए काम को शिक्षा के अनिवार्य हिस्सा के रूप में देखना चाहते थे। वास्तविकता भी यह है कि जीवन के भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में उत्पादक काम मनुष्य का सबसे बड़ा शिक्षक है जिससे न केवल ज्ञानार्जन होता है बल्कि मनुष्य की क्षमता  और मूल्यों का भी विकास होता है। वर्तमान समय में हम सभी भी देख रहें कि हम सभी आधुनिकता पूर्ण जीवनशैली के आदि होते जा रहे हैं और बच्चों में व्यवहारिक एवं सामाजिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है।  बच्चे भी छोटी-छोटी बातों पर आक्रामक हो जाते हैं जो भविष्य के लिए सुखद संदेश नहीं है। कई  शोधों में भी यह बात सामने आई है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में जहाँ काम का शिक्षा से जुड़ाव नहीं है, स्कूली शिक्षा लेने के बाद भी बड़ी संख्या में छात्र वास्तविक जीवन में असफल साबित हो रहे हैं। 
          कार्य जो भारतीय समाज के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों  में भिन्न-भिन्न रूपों में आज भी विद्यमान है शिक्षा के साथ जुड़कर उसे प्रासंगिक और और सार्थक बनाता है साथ हीं विद्यार्थियों को सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भो से जोड़ता है। शिक्षा का वास्तविक एवं आदर्श दायित्व है कि वह विद्यार्थियों को जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करें। इस तथ्य से भी हम सभी अवगत हैं कि हर देश में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था का विकास करना होता है जो अपने नागरिकों को अपनी प्रतिभा और हूनर के विकास का मौका दे जिसकी जरूरत उसे जीवन भर रहती है। इसके लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि शारीरिक श्रम को शिक्षा से जोड़ा जाए यानी कि कार्य शिक्षा को भौतिक व्यवस्था का अभिन्न अंग बनाया जाए। साथ हीं साथ कार्य शिक्षा के उद्देश्य बच्चों को अपनी, अपने परिवार व समुदाय की आवश्यकताएँ जानने के लिए उत्साहित करते हैं। तो आइये न बच्चों में श्रम के महत्व व श्रमजीवियों के प्रति सम्मान की भावना विकसित कर कार्य शिक्षा के उद्देश्यों को सार्थकता प्रदान करें।



राकेश कुमार
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर पटना

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