Thursday, 6 August 2020
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रोहित-एम. एस. हुसैन
रोहित
बात उन दिनों की है जब मैं एक विद्यालय में उर्दू शिक्षक हुआ करता था जहाँ मुझे केवल उर्दू पढ़ाना होता था। जब कभी कोई शिक्षक नहीं होते तो वैसी स्थिति में मुझे दूसरे विषय को देखने का मौका मिल जाता था। मैं एक दिन कक्षा 10 में उर्दू का क्लास ले रहा था तो मैंने नोटिस किया कि एक लड़का जिसका नाम रोहित था मेरी तरफ टकटकी लगाए देख रहा था। क्लास खत्म होने के बाद मैंने रोहित को अपने पास बुलाया और पूछा कि क्या बात है? सबकुछ ठीक-ठाक तो है। तब उसने मुझे बताया कि सर मुझे भी उर्दू सीखना है। फिर क्या था मुझे भी ऐसे लड़के की तलाश थी जो उर्दू में कुछ भी न जानता हो उसे सिखाने का अवसर मिले। मैंने भी उसे सिखाने के लिए हाँ कह दिया।
सीखने सिखाने की प्रक्रिया जारी हो गई। कुछ हीं दिनों में उसके घर वाले एतराज जताने लगे। अगले दिन जब वह विद्यालय आया तो बहुत ही उदास था। मैंने उससे उदासी का कारण जानना चाहा तो उसने मुझे बताया कि "मेरे घरवाले उर्दू पढ़ने से मना कर रहे हैं "। तब मेरे द्वारा उसे समझाने की कोशिश की गई। आप उदास मत हों मैं आपको उर्दू सिखाऊँगा। आप मुझे अपने घर ले चलो मैं आपके लिए आपके घर वालों से बात करुँगा। अगले दिन मैं उसके घर गया और उसके पिताजी से मिला। मैंने उन्हें बताया कि रोहित की इच्छा है कि वह उर्दू सीख ले और आप उसे मना न करें, तो मैं उसकी इच्छा पूरी कर सकता हूँ। उसके पिताजी बोले यह उर्दू सीख कर करेगा क्या? उर्दू तो केवल मुस्लिम बच्चों के लिए है। जब उर्दू पढ़ेगा तो लोग क्या कहेंगे? मैंने उन्हें समझाने की कोशिश करते हुए कहा कि आप जैसा सोच रहे हैं वैसा कुछ नहीं है। उर्दू किसी धर्म विशेष की भाषा नहीं है जो केवल उन्हीं के लिए बनाया गया है। यह तो सारी भाषाओं की तरह है जैसे हिंदी, इंग्लिश, संस्कृत आदि। जिसे कोई भी व्यक्ति सीख सकता है, बोल सकता है किसी के ऊपर कोई बंदिश नहीं है। वैसे भी उर्दू हमारे देश की द्वितीय राष्ट्रभाषा है तो आप ही बताइए यह धर्म विशेष की भाषा कहाँ से हुई। मेरे बहुत प्रयासों के बाद उन्होंने अपनी सहमति जताई और उसे उर्दू सीखने की अनुमति दे दी। पुनः रोहित सीखने लगा।मैंने भी उसे सिखाने के लिए अपना निरंतर प्रयास जारी रखा। धीरे-धीरे वह उर्दू पढ़ने लगा तब मैंने उसे लिखने सिखाने की कोशिश करने लगा। धीरे-धीरे छः महीने गुजर जाने के बाद वह उर्दू पढ़ने और लिखने लगा। फिर मैं उस विद्यालय से अन्यत्र पदस्थापित हो गया। अब मेरा उससे संपर्क टूट गया।
एक दिन की बात है कि बिहार सरकार द्वारा आयोजित जिला स्तरीय उर्दू सेमिनार हो रहा था। एक शिक्षक होने के नाते मैं भी वहांँ आमंत्रित था। उसी सेमिनार के दौरान एक लड़का स्टेज़ पर आया जो स्नातक स्तर के प्रतिभागियों में बहुत ही अच्छी प्रस्तुति पेश कर रहा था। सेमिनार समापन के उपरांत जब पुरस्कार वितरण के समय उसे भी पुरस्कृत किया गया तो स्टेज पर उसे अपने बारे में कुछ बताने के लिए कहा गया। तब उसने बताया कि आज मैं जिनकी मदद से इस मुकाम तक पहुँचा हूँ वे मेरे शिक्षक हैं जिनका बहुत बड़ा योगदान रहा है। वो इस समय स्टेज पर उपस्थित हैं। इतना कहते ही मै चकित हुआ। 6 वर्षों में उसका चेहरा बदल गया था। उसके परिचय के उपरांत मैं अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहा था और स्टेज से मेरा नाम पुकारा जाने लगा। मैं स्टेज पर गया तो मुझे भी बोलने का अवसर प्रदान किया गया । मैंने भी उर्दू से संबंधित कुछ बातें की। मैंने रोहित को सराहा भी और अपने आप पर मन ही मन गर्व किया कि मेरी मेहनत ने रंग लाई और सदन में बैठे अधिकारियों के द्वारा मेरे कार्य को सराहा गया और भविष्य में ऐसे करते रहने की उम्मीद की गई। मैंने भी उनका आभार प्रकट करते हुए उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने का भरोसा दिया ।
एम० एस० हुसैन
उत्क्रमित मध्य विद्यालय
छोटका कटरा मोहनियां कैमूर
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बहुत-बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय
DeleteHeart touching .......
ReplyDeleteसादर आभार
DeleteHeart touching .......
ReplyDeleteअति सुंदर
ReplyDeleteसहृदय धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा। उर्दू किसी धर्म या मजहब विशेष की भाषा नहीं। यह बहुत ही उम्दा, उन्नत और समृद्ध भाषा है। वह उर्दू भाषा ही है, जिसे हिंदी के साथ साझा कर कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद के साहित्य में चार चांद लगा।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा। उर्दू किसी धर्म या मजहब विशेष की भाषा नहीं। यह बहुत ही उम्दा, उन्नत और समृद्ध भाषा है। वह उर्दू भाषा ही है, जिसे हिंदी के साथ साझा कर कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद के साहित्य में चार चांद लगा।
ReplyDeleteसादर आभार
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