क्या है परिभाषा-मो. जाहिद हुसैन - Teachers of Bihar

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Thursday 24 December 2020

क्या है परिभाषा-मो. जाहिद हुसैन

क्या है परिभाषा
       
          परिभाषा किसी भी चीज को भाषा में बांधने का प्रयास मात्र है। हम देखते हैं कि विभिन्न विद्वान जब विभिन्न प्रकार से किसी भी चीज की परिभाषा देते हैं तो दी गई परिभाषा का प्रतिबिंब उस चीज में पूरी तरह से नहीं झलकती कारण कि वे उसे समझने और समझाने का प्रयास करते हैं न कि उसे उसका संपूर्ण दर्शन कराते हैं। एक ही चीज की अलग-अलग परिभाषाएं बतलाती हैं कि वास्तव में किसी भी चीज की परिभाषा होती ही नहीं है। अब यह कहना कुछ अजीब-सा लगता होगा लेकिन यह समझें कि यदि प्रत्येक चीजों की परिभाषा होती तो फिर परिभाषा की भी परिभाषा होती। परिभाषा ठीक उसी प्रकार है जैसे लकड़हारे जंगलों से लकड़ियों को बांधकर घर लाते हैं। यदि ऐसा न किया जाए तो वे बिखर जाएँगे। उन लकड़ियों को गट्ठर बांधकर घर लाना अच्छा प्रयास है ठीक उसी प्रकार परिभाषा मंजिल तक पहुँचाने का प्रयास है या कह सकते हैं कि रास्ते हैं और विभिन्न विचारक इसके विभिन्न रास्ते दिखलाते हैं। यदि कोई व्यक्ति वैसी मंजिल तय करना चाहता है जहाँ वह कभी न गया हो तो वहाँ तक पहुँचने के लिए विभिन्न रास्तों से पहुँचा जा सकता है लेकिन उन रास्तों तक पहुँचने के लिए पथप्रदर्शक का होना जरूरी है और वे पूछ कर ही सही अपना मार्ग प्रशस्त कर मंजिल तक पहुँच जाते हैं। परिभाषा ज्ञान-पथिक को मार्ग प्रशस्त करती है लेकिन केवल परिभाषा से सटीक संप्रेषण नहीं हो सकता। जब तक कोई किसी वस्तु को कभी देखा ही नहीं हो तो परिभाषा से समझना और समझाना मुश्किल है। यदि तत्व, यौगिक, परमाणु अणु, संज्ञा, सर्वनाम, शिक्षा, धर्म आदि की परिभाषा दी जा सकती है तो समझा जा सकता है कि दुनियाँ की सारी चीजों की परिभाषा दी सकती है लेकिन ऐसा है क्या? अमूर्त और मूर्त को अलग-अलग तरीके से समझाया जा सकता है। मूर्त चीजों को समझाना तो आसान है लेकिन अमूर्त को परिभाषित ही नहीं किया जा सकता। जब तक कि कोई किसी चीज को देखा ही नहीं हो तो वहाँ परिभाषा क्या करेगी? उसका महत्व क्या है? उसका महत्व ही क्या जो स्वयं में ही पूर्ण न हो।
          बिंदु क्या है? बिंदु एक सूक्ष्म चिह्न है। इसमें न लंबाई और न चौड़ाई होती है। कलम के पेंसिल की नोंक का कागज पर दबाने से जो निशान प्राप्त होता है, उसे बिंदु कहते हैं या फिर कहें, जीरो त्रिज्या वाले वृत्त को बिंदु कहते हैं। बिंदु की विमाएँ शून्य (Zero Dimension) है लेकिन प्रश्न यह उठता है कि यदि बिंदु की विमाएँ नहीं होती तो वे सरल रेखा  का निर्माण कैसे करता है? आखिर रेखा बिंदुपथ कैसै है? को-ऑर्डिनेट ज्योमेट्री में बिंदु का स्थान निर्धारण (Locate) किया जाता है। जब लोकेशन है, मतलब कि उसका वजूद (Existence)भी है, डायमेंशन भी है। यदि ऐसा नहीं है तो परिभाषा ही गलत है, फिर कोई दूसरी परिभाषा गढ़ने की जरूरत है या यह बात समझ में आने वाली नहीं। परिभाषा के ऊपर परिभाषा। परिभाषा कभी भी सर्वमान्य नहीं होती। तत्व अविभाज्य शुद्ध पदार्थ है लेकिन विखंडन (Fission) के फलस्वरूप यूरेनियम kr तथा Ba में टूट जाता है। फिर स्पष्ट करने के लिए तो कुछ जोड़ना ही पड़ेगा।
          कुर्सी की परिभाषा क्या है? या यूँ कहें कि कुर्सी किसे कहते हैं? तो मन में विभिन्न विचार आते हैं जैसे- जिस पर बैठा जाता है यानी कि पापा की पीठ, नहीं... नहीं। जिसके चार पैर होते हैं, मतलब कि गाय, नहीं... नहीं। हालांकि ऐसा भी तो है कि कुर्सियाँ तीन पैर, दो पैर या बिना पैर के भी होते हैं। तब कुछ लोग यह कहेंगे कि जिसे सिर्फ बैठने में ही इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि कुर्सी का इस्तेमाल तो तस्वीरों और पंखों को टांगने में भी किया जाता है। अच्छा तो  कलम किसे कहते हैं? जिससे लिखा जाता है, मतलब कि खल्ली? जो लंबा होता है, मतलब कि बेलन? जो लेखन सामग्री है। तो क्या मार्कर या फिर श्यामपट्ट, कॉपी तथा पेंसिल आदि। परिभाषा ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार की अंधों ने हाथी के विभिन्न अंगों को छूकर अनुभव किया था और अपने अनुभव से विभिन्न चीजें बतलाया था। यथा-सूंड को पेड़ की डाली, पीठ को दीवार, पैर को खंभा तो पूँछ को झाड़ू आदि। 
          समझा जा सकता है कि सिर्फ रटना सीखना नहीं है। अक्सर  परिभाषा को रटवा दिया जाता है लेकिन जब उसका मूल्यांकन किया जाता है तो अपेक्षित जवाब नहीं मिलते क्योंकि वह सिर्फ रटकर अवधारणा को समझ नहीं पाता। यह ठीक उसी तरह है जैसा कि एक तोता पालने वाला तोते को रोज रटाया करता था कि शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा, जाल में मत फंसना लेकिन देखा गया कि वह तोता जाल में फंसने के बाद भी यही रट लगा रहा था। मतलब कि रट्टू- मल तोता को यह पता ही नहीं था कि शिकारी क्या होता है? जाल क्या होता है और दाना क्या होता है? इसी प्रकार सीखना रटना नहीं; बल्कि समझना है।
          यदि बच्चा 'आम' को देखा ही नहीं हो तो उसे चाहे जितना भी समझाने का प्रयास किया जाए, वह 'आम' को समझ नहीं पाएगा, क्यों न वह 'आम' के पेड़ के नीचे से ही गुजर जाए। वह उसे पहचान ही नहीं पाएगा लेकिन जब उसे 'आम' को दिखा दिया जाए, तब 'आम' के बारे में उसकी सोच स्पष्ट हो जाएगी। अब जब कभी वे पुस्तकों में चित्र देखते हैं या उस चित्र को शिक्षक श्यामपट्ट पर बनाते हैं तो वे तुरंत उसे 'आम' कह देते हैं और जिसके द्वारा इ एल पी एस (E L P S) से गणित की धारणाओं को स्पष्ट करने में भी सहायता मिल जाती है क्योंकि बच्चा पहले किसी चीज को देखता है, तब उसे भाषा देता है। ठोस (Concrete) संदर्भ के अनुभव से उसके मस्तिष्क में छवि जो बनती है, उससे चित्र को पहचान लेता है। उसे बना भी सकता है। तब उसे संकेत के रूप में समझाया जा सकता है। इस प्रकार मूर्तता से अमूर्तता की ओर ले जाया जा सकता है और इसका इस्तेमाल कर भाषा, गणित आदि की अवधारणाओं को अच्छी तरह समझा जा सकता है। बच्चा ठोस संदर्भ से किसी बात को अच्छी तरह से समझता है। यही वजह है कि आजकल शिक्षण अधिगम सामग्री( TLM) का इस्तेमाल पर अधिक जोर दिया जाता है।
          भारतीय दर्शन सत्यम शिवम सुंदरम तक ले जाता है। इस रहस्य को परिभाषा से तो और नहीं समझा जा सकता। कुछ और उदाहरण-धर्म किसे कहते हैं? जो जिंदगी हम जी रहे हैं, उससे और अच्छी जिंदगी जीने का रास्ता। धर्म संस्कृत के 'धृ' धातु से बना है, इसका अर्थ होता है-धारण करना। एक व्यक्ति ने इसका परिभाषा दिया "शराब पीना मेरा धर्म है," क्योंकि वह शराब पीता था। वह अपने जीवन में इसे धारण कर चुका था। कोई अपने वस्त्र से तथा प्रतिक से अपने धर्म  की पहचान कराता है तो कोई शांति के लिए मानवता को धर्म बताता है और कोई ईश्वर के प्रति संपूर्ण समर्पण का नाम देता है। बहुत सारी परिभाषाएं भी मिलकर धर्म को परिभाषित नहीं कर पाते। अब कार्ल मार्क्स को ही ले लीजिए जो धर्म ( दया, करूणा, प्रेम ) को ही अफीम कह देता है। कार्ल मार्क्स 'जियो और जीने दो' (Live and be live) धर्म को ही उलट कर रख देता है। जो जैसा देखता है, वैसा ही परिभाषा दे देता है। इसका कोई पैमाना नहीं है।
          दो महत्वपूर्ण शिक्षण विधियाँ हैं- आगमन    (Inductive) और निगमन विधि (Deductive)।निगमन विधि में परिभाषा से उदाहरण की तरफ अवधारणा (Concept) को पक्कीकरण के लिए ले जाया जाता है और आगमन विधि में उदाहरण से परिभाषा की ओर, उदाहरण से ही किसी चीज को परिभाषित कर लिया जाता है या यूँ कहें कि अवधारणा पक्कीकरण हो जाती है। गणित में इस प्रकार समझा जा सकता है। सूत्र के द्वारा हल तक पहुँचना निगमन विधि है तो आगमन विधि प्रक्रिया से होकर अवधारणा तक पहुँचती है और फिर उसे सूत्रित (Formulate) कर ली जाती है। सूत्र एक खाके के समान है जिस पर संख्याओं को फिट कर हल निकाल लिए जाते हैं। दोनों ही तरीके हैं लेकिन बच्चों के लिए आगमन विधि ज्यादा महत्व रखता है क्योंकि बच्चे उदाहरण तथा ठोस संदर्भ से ज्यादा समझते हैं। किसी व्यक्ति, वस्तु या जगह आदि के नाम को संज्ञा (Noun) कहा जाता है। बच्चों को याद करवाया जाता है। जैसे-आम, दूध, कुत्ता, राम आदि। यदि हम बच्चों को यह कहें कि विद्यालय में जितनी भी चीजें हैं, उसकी सूची (List) बनाइए और फिर उसे वर्गीकरण (Classification) करवाया जाए और उन सभी सूचीबद्ध चीजों के बारे में पता किया जाए। कौन किसी का खास नाम है? घोड़ा या गाय से क्या किसी जाति का बोध  होता है? दूध और पानी क्या तौला नहीं जाता? अच्छाई, बुराई क्या भाव नहीं हैं? सेना, मेला  में क्या कोई एक आदमी होता है या समूह होता है आदि आदि? फिर यही वर्गीकरण बच्चे के दिमाग में विभिन्न प्रकार की संज्ञा का बोध कराता है जिसे  वे कभी नहीं भूलते। ठीक उसी प्रकार गणित में यदि यह कहा जाए कि गुणा क्या है? हालांकि उच्च शिक्षा प्राप्त गणित के विद्यार्थी भी परिभाषा नहीं बतला पाते हैं। वह उदाहरण ही देकर समझा देते हैं, तो भला किसी चीज को केवल परिभाषा से बच्चे को समझाना आसान कैसे हो सकता है? किसी संख्या के बारंबार योग (Repeated Addition) गुणा कहा जाता है। इसे पाठ्य-पुस्तकों में इएलपीएस के द्वारा आसानी से समझाया जाता है। E- Experience, L-Language, P-Picture, S-Symbol 🌹🌹+🌹🌹+🌹🌹+🌹+🌹=🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹   
2+2+2+2=8
2×4=8
         और आगे चलें तो आयत का क्षेत्रफल हम बच्चों को बतला देते हैं कि आयत का परिमाप= 2(a+b) जहाँ a लंबाई और b चौड़ाई है। बच्चे लंबाई और चौड़ाई को इस खाके में डालकर क्षेत्रफल निकाल लेते हैं लेकिन यदि उसे यह कहा जाए कि आयत की आकृति की लंबाई तथा चौड़ाई की माप करें। उसमें आमने-सामने 2 लंबाई और 2 चौड़ाई आएगी। मतलब कि 2a और 2b जिसे इस प्रकार लिखा जा सकता है_
          =2a+2b
          =2(a+b)
         ‌ बच्चे चारों भुजाओं को जोड़ कर इस प्रक्रिया को करते-करते इस हल पर पहुँच जाते हैं और आयत को परिभाषित कर लेते हैं।
          परिभाषा न संपूर्ण हल है, न साक्षात्कार। न स्पष्ट अवधारणा और न ही सटीक मार्ग। लक्ष्य या उद्देश्य तक पहुँचने का एक मोटा-मोटी आईडिया है। शोध की भाषा में परिकल्पना (Hypothesis) कही जा सकती है जो समाधान (fact-finding) तक पहुँचाने में मदद करती है या फिर बीच में ही परिकल्पना को भी चेंज की जा सकती है और फिर अलग फार्मूले बनाए जा सकते हैं और समस्या का समाधान निकाला जाता है जो सही भी हो सकता है और नहीं भी।
          स्कूल तथा बाहरी परिवेश के वस्तुओं की सूचीकरण करवाएँ। फिर श्यामपट्ट पर बीच में एक लकीर खींचकर एक तरफ काउंटेबल (Countable) तथा  दूसरे तरफ अनकाउंटेबल (Uncountable) लिख दिया जाए। फिर काउंटेबल को काउंटेबल में तथा अनकाउंटेबल को अनकाउंटेबल के वर्ग में बच्चों के द्वारा ही डलवाया जाए। देखेंगे कि बच्चे ही एक दूसरे की गलती को सही भी करेंगे। सीखने की प्रक्रिया काफी आनंददायक होगी और फिर हम आसानी से संज्ञा के प्रकार तक पहुँच जाएँगे। आगमन विधि पूरी तरह बाल-केंद्रित होती है। यहां संज्ञा के प्रकारों को बताने के लिए परिभाषा की कोई आवश्यकता नहीं पड़ी और शिक्षक की भूमिका भी सिर्फ सुगमकर्ता (Facilitator) की रही। आगमन विधि परिभाषा के महत्व को कम नहीं आंकती बल्कि इसे निष्पादन तक पहुँचाती है। परिभाषा लक्ष्य तक ले जाने का बेशक प्रयास करती है लेकिन एक ही चीज की कई परिभाषाएँ इसे उलझा देती है और फिर उदाहरण की प्रक्रिया लक्ष्य को ही परिभाषा से सहज साक्षात्कार करा देती है और मामला सुलझा देती है। यह कला शिक्षकों के पास होनी चाहिए।
         यदि हमें यातायात के साधनों के बारे में बच्चों को जानकारी देनी है। बच्चों के बीच वर्ग-कक्ष में यह प्रश्न उछाल सकते हैं कि अच्छा यह बताइए कि आप लोग जब अपने ननिहाल जाते हैं तो किन-किन वाहनों का प्रयोग करते हैं या यूं समझें कि किन-किन वाहनों का प्रयोग कर अपने ननिहाल जा सकते हैं। इसे अपनी कॉपी पर सूचीबद्ध करिए। फिर बच्चों को 3 कॉलम की सारणी कॉपी पर बनाने के लिए कहा जा सकता है। वाहनों को जमीन पर चलने वाले, पानी पर चलने वाले,  आसमान में उड़ने वाले के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। जमीन पर चलने वाले वाहन में बैलगाड़ी,  साइकिल, टैंपू, बस, रेलगाड़ी आदि, पानी में चलने वाले वाहन- स्टीमर, जहाजरानी आदि, आसमान में उड़ने वाले वाहन- हवाई जहाज, हेलीकॉप्टर आदि। इस प्रकार हम सहज ढंग से यातायात के साधनों तथा मार्ग तक पहुँच जाएँगे। स्थल मार्ग, वायु मार्ग तथा जल मार्ग। सूचीकरण से वर्गीकरण तक की सारी प्रक्रिया बच्चों के द्वारा ही करवाई जाए।
          परिभाषा हमेशा प्रसांगिक रहा है और रहेगा। परिभाषा के द्वारा  अवधारणाओं का निर्माण बेशक होता है, लेकिन टिकाऊ नहीं होता है। शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में नवाचार, गतिविधि, शिक्षण अधिगम सामग्री, आनंददायी शिक्षण आदि समय की मांग है। इस क्रम में परियोजना विधि, ह्यूरिस्टिक विधि वाद-विवाद, सेमिनार, लोकतांत्रिक शिक्षण विधि आदि बच्चों की धारणाओं को सहज ही स्पष्ट कर देते हैं। आज ऐसा माहौल रचने की आवश्यकता है कि बच्चे ही निदान क्रिया (Diagnosis) तक पहुँचे और बच्चे ही उसका उपचार (Remedy)  करें। NCF-2005 में बच्चों को केंद्र में रखकर उन्हें उचित वातावरण देने की जरूरत बतायी गयी है।सृजनवाद में कहा गया है कि बच्चे ज्ञान का सृजन स्वयं करते हैं। इस तरह समय के अनुसार विधियाँ भी जुड़ती रहती हैं लेकिन परिभाषा के द्वारा अवधारणाओं तक पहुँचने की प्रक्रिया को नकारा नहीं जा सकता। परिभाषा काफी उपयोगी है और सदा इसकी उपयोगिता बनी रहेगी। परिभाषा एक अमोघ अस्त्र है।


मो. जाहिद हुसैन    
उत्क्रमित मध्य विद्यालय मलह विगहा 
चंडी नालंदा

1 comment:

  1. बहुत ही सारगर्भित लेख।हमें इसे पढ़ने का अवसर देने के लिए आपका आभार!💐

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