गेंद तो आप के पाले में है-मो. जाहिद हुसैन - Teachers of Bihar

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Saturday 30 January 2021

गेंद तो आप के पाले में है-मो. जाहिद हुसैन

गेंद तो आप के पाले में है
     
          लक्ष्य-निर्धारण (Goal Set) के लिए आकांक्षी को स्व-मूल्यांकन करना जरूरी है। लक्ष्य चुनने के लिए पहले आप को अपने-आप में झांकना होगा। यह अस्वाभाविक (Innatural) तो नहीं है। उसमें रुचि भी है कि नहीं। लक्ष्य के बारे में आधार ज्ञान (Basic knowledge ) कुछ है कि नहीं।उसके प्रति जुनून (Passion) है कि नहीं। जिस चीज में जुनून होगा, उसे दिलो जान से पूरा करने में इंसान लग जाता है। चाहे उसमें लाभ हो या न हो। बिना जुनून के लाभ वाला लक्ष्य भी चुनना अंधेरे में तीर मारने के समान है। उसमें एकाग्रता ही नहीं होगी तो शब्दभेदी बाण कैसे चला पाएंगे ? जुनून लक्ष्य की ओर स्वतः स्फूर्त ले जाता है। इसलिए लक्ष्य तसल्लीबख्स तो होना ही चाहिए। लक्ष्य-निर्धारण सही है तो समझें कि एक-चौथाई सफलता मिल गई। नाप-तौल कर लक्ष्य-निर्धारण नहीं हो तो जिजीविषा ही नहीं जगती। ऐसा करने पर विश्वास पैदा होता है। मैं इसे कर सकता हूँ। (I can do it) माना कि यदि कोई सिविल सर्विस को लक्ष्य करता है तो उसे पी टी, मेंस और इंटरव्यू से गुजरना होता है। उसमें संभाव्य आधारभूत जानकारी (potential basic funda) होना जरूरी है। लक्ष्य को छोटे-छोटे लैंड मार्क में बांटना होगा-मिनटों में, घंटों में, महीनों में, वर्षों में, चैप्टर में आदि।
जो भी प्रतिज्ञा (Commitment) करें, उसे पूरा करें, चाहे वचनबद्धता छोटा हो या बड़ा। छोटी-छोटी वचनबद्धता लक्ष्य पाने के लिए तैयार करता है। 
          दुनिया की चमक-दमक से दूर, सात्विक खानपान, व्यायाम, टहलना जरूरी है और स्फूर्ति एवं ज्ञान को आत्मसात करने के लिए पूरी नींद। रात-रात भर जाग कर पढ़ना और दिन में सोना कहीं से भी अक्लमंदी नहीं है। आलस्य इंसान का दुश्मन है, ऐसी आदत अस्वाभाविक है। आप को बदलना होगा। अपनी जिंदगी की कार्य-शैली (Work culture) बदलनी होगी और यह सिर्फ सोचने से नहीं होगा। आपके पास इच्छा शक्ति (Will Power) होनी चाहिए और यह  स्पष्टता (Clarity ) से आती है। स्वामी विवेकानंद का प्रेरक कथन कि उठो, जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक उद्यम करते रहो। अधिकाधिक अध्ययन विद्यार्थियों को ब्रह्म-बेला में ही करना चाहिए, इससे दिमाग तरोताजा रहता है और इच्छाशक्ति बढ़ती है। इसके लिए एक बहुत अच्छा नुस्खा भी है "आज का दिन मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। (Today is very important day for me") प्रत्येक दिन को इस तरह जियो जैसे लक्ष्य भेदने के लिए कल मौका ही नहीं मिलेगा। फिर कल के लिए भी यही ब्रह्म वाक्य "आज का दिन मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है" होगा। अचेतन में लिख लेने के लिए इसे ऐसी जगह पर साट दें, जहां प्रायः आपकी नजर जाती हो। इसका मतलब यह नहीं कि इसे अध्ययन करने वाली जगह पर ही साट दिया जाए। बेहतर होगा कि इसे शर्ट, पैंट या तौलिया आदि जैसे प्रतिदिन इस्तेमाल करने वाली जगह पर ही लिखकर साट दें। जैसे ही आप कपड़े हटाएंगे या टांगेंगे, उस पर नजर पड़ जाएगी। यह हमेशा याद रहेगी कि आपको प्रत्येक दिन को आखिरी पल की तरह जीना है। यह मस्तिष्क पटल पर जब छप जाए तो फिर इसे पढ़ने की जरूरत ही नहीं होगी। अब इसे मिटा दें तो भी आप का जमीर याद दिलाता रहेगा।
          मौत और जिंदगी में पल भर का भी फासला नहीं होता। उसी तरह निशाना लगने और चुकने में एक सेकंड के महापद्मुम का भी अंतर नहीं होता। दिन क्या? रात क्या? हर पल महत्वपूर्ण है। पल-पल स्वप्न को जीना जीने को अर्थपूर्ण बनाता है। आपकी जिज्ञासा असफलता में भी जोश भरेगी और खुद-ब-खुद आपकी प्रतिज्ञा मंजिल तक पहुंचा देगी। फिर तो आपकी स्वानुभूति ही मार्गदर्शक होगी फिर दूसरे मार्गदर्शक की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। आपको, आप से ज्यादा बेहतर कौन जानता है? आप स्वयं को पहचानिए। मैं कौन हूं? मैं मेहनतकश हूं। मैं ऊर्जावान हूं। " मैंने लक्ष्य पा लिया है।" आप अपने-आप को वैसा ही महसूस करिए जैसा कि आप बनना चाहते हैं। जैसा आप सोचेंगे, वैसा बन जाएंगें। महाबली ज्ञानगुण सागर हनुमान जी को भी उनकी असीम उर्जा का बोध कराना पड़ता था। अचेतन मन अब आपको, अपनी उर्जा से साक्षात्कार कराएगा, तब फिर संजीविनी आपके हाथों में होगी। चीजों से प्यार करिए। जिंदगी से प्यार करिए। यह सोचिए कि मैं जो करने जा रहा हूं उससे औरों का भला होगा या नहीं। यदि एक भी व्यक्ति का भला आपके लक्ष्य-प्राप्ति से होता दिखे तो आपकी सफलता सार्थक होगी। 
          समय-प्रबंधन बड़ी चीज है। कहा जाता  है "गया वक्त फिर हाथ आता नहीं।" समय और ज्वार भाटा किसी का इंतजार नहीं करता। इसीलिए तो समय को धन कहा जाता है। समय ही ऐसा है जिसे पकड़ा नहीं जा सकता, लेकिन हम अपनी रफ्तार तो तेज कर ही सकते हैं। परिस्थितियां कभी-कभी बाधक होती हैं। उससे डरना नहीं है, उससे लड़ना है और आगे बढ़ना है। सरिता को देखिये। चाहे कितने भी विध्न रास्ते में क्यों न आ जाए, वह मंजिल (सागर) तक पहुंच ही जाती है। सरिता चट्टानों से टकराकर रास्ता बदल कर भी मंजिल पा लेती है। सरिता की तरह आकांक्षी को भी परिस्थितियों के अनुसार योजना की योजना भी बनानी होगी। कार्यान्वयन (Action Plan) के लिए क्रियात्मक शोध (Action Research) करना भी जरूरी है, ताकि समस्या का हल आप स्वयं निकाल सकें। इसी तरह की रणनीति एक शिक्षक को भी बनानी होगी ताकि वे बच्चों को प्रेरित कर उसका उत्साह वर्धन कर सकें। वे बच्चों की बाधाओं को दूर कर अधिगम की प्रक्रिया को आसान बनाएंगें। 
          आप को हवाई किले बनाने वाले विचारों को डस्टबिन में डालना होगा। मस्तिष्क को सकारात्मक विचारों से लबरेज करना होगा। आप अपने को व्यस्त रखिए। कहा जाता है" खाली मन शैतान का।" प्रतिदिन कुछ न कुछ (primary daily action) करते रहिए। मैं कितना पाया? अब मैं क्या बन पाया? मान लें कि आपको 24 घंटे में 8 घंटे अध्ययन करना जरूरी है तो आप 1 घंटे ही निर्धारित करें, लेकिन उसे पूरा करें। फिर 2 घंटे निर्धारित करें और उसे पूरा करें। दो से तीन, तीन से चार और फिर---- 8 घंटे तो फिर हो ही जाएगा। कंफर्ट जोन (comfort zone) से अब बाहर निकलकर मेहनत करें। अब आपकी आंखें नील गगन (blue sky) को देख रही हैं, लेकिन अभी धुंध छ्टनी वाकी है। अवधारणाओं की स्पष्टता (clarity) जरूरी है। अवधारणाओं को सशक्त करने के लिए आपकी रणनीति (strategy) में भी कुछ बदलाव लाना होगा। करत-करत अभ्यास से कंसेप्ट (concept) को स्पष्ट करें। अभ्यास से विश्वास पैदा होता है। अब आपकी जिज्ञासा एवं तन्मयता, स्वयं डॉट क्लियर (doubt clear) करने की कला दे दी होगी। प्रश्नावली (question set) को एग्जाम में निर्धारित समय से पहले ही करना अब सीख लिए होंगे। पाठ के कंसेप्ट को अब इस तरह समझ लिए होंगे कि उससे जितने भी प्रश्न पूछे जाएं, सभी का उत्तर देने में सक्षम होंगे। चुनौतीपूर्ण लक्ष्य-प्राप्ति के लिए कोई शॉर्टकट (short-cut) रास्ता तो है नहीं। ज्यों ही आपका कंसेप्ट क्लियर होता है, आत्मविश्वास बढ़ जाता है। ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार गेम में जीतने पर हौसला बढ़ जाता है। आत्मविश्वास पैदा होते ही नील गगन बिल्कुल साफ दिखाई देने लगता है, फिर उसे छू लेने से कोई रोक नहीं सकता। गेंद अब आत्मविश्वास से लबरेज आकांक्षी/ विद्यार्थी के पाले में चला आता है और उसे अब गोल मारने के लिए गोल-पोस्ट (goal post) के पास भी जाना नहीं पड़ता, बल्कि गोल-पोस्ट ही उसके पास चला आता है।

मो. जाहिद हुसैन           
उत्क्रमित मध्य विद्यालय मलहबिगहा
चंडी, नालंदा

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