ज्ञानवान कैसे बनें-विजय सिंह नीलकण्ठ - Teachers of Bihar

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Tuesday 16 February 2021

ज्ञानवान कैसे बनें-विजय सिंह नीलकण्ठ

ज्ञानवान कैसे बनें

          सभी जानते हैं कि सीखने-सिखाने से ही ज्ञान की वृद्धि होती है लेकिन फिर भी हर मानव प्राणी के अंदर दूसरों से श्रेष्ठ दिखने-दिखाने की प्रवृत्ति होती है। कोई भी अपने आप को सामने वाले से कम विद्वान नहीं समझते जबकि हकीकत कुछ और ही होती है। यहाँ तक कि अनपढ़ लोग भी पढ़े-लिखों के सामने ऐसा दिखाने की कोशिश करते हैं कि मैं आप से अधिक ज्ञानी हूंँ लेकिन स्वयं अंदर ही अंदर महसूस अवश्य करते हैं कि मुझमें कुछ भी नहीं है। ऐसा अनेक उदाहरणों से स्पष्ट किया जा सकता है
         एक बार कुछ पढ़े-लिखे लोगों के सामने एक अशिक्षित व्यक्ति आया जो काफी कंजूस था। पढ़े-लिखे लोग जो भी बोलते सोच समझकर ही बोलते लेकिन वह अनपढ़ लगातार अपनी काबिलियत दिखाने की कोशिश में लगे थे कि मैं सबसे अधिक तेज हूंँ, जानकार हूंँ। तभी उनमें से एक ने पूछा कि आजकल दुबले-पतले दिख रहे हो लगता है खाने-पीने पर ध्यान नहीं दे रहे हो क्यों? तो उस अनपढ़ का जवाब था यदि माँ दुर्गा की कृपा होगी तो नमक-रोटी खाकर भी हम स्वस्थ रह सकते हैं। अब जरा सोचिए कि वह अनपढ़ इस बात को जानना नहीं चाहता था कि हमारा शरीर स्वस्थ कैसे रह सकता है। तब उस व्यक्ति ने उसे बताया कि हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पॉंच पौष्टिक तत्व उचित मात्रा में चाहिए जो कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन, वसा और खनिज लवण है। इसके बाद उसे भी इस बात का ज्ञान हुआ कि स्वस्थ कैसे रहा जा सकता है और पॉंचों पौष्टिक तत्व विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों से ही प्राप्त की जा सकती है न कि नमक-रोटी से। 
          उपरोक्त उदाहरण से पता चलता है कि जब-तक हम दूसरों की बातें नहीं सुनेंगे तब-तक हमें नई-नई बातों का ज्ञान नहीं होगा। हमें हमेशा सीखने की भावना को जागृत करना होगा और जो हम जानते हैं अगर वह सामने वालों को पता नहीं हो तो उसे अवश्य बताना चाहिए। यह कभी भी नहीं सोचना चाहिए कि यदि मैं अपने ज्ञान को दूसरों तक बॉंटेंगे तो दूसरा मुझसे अधिक ज्ञानी बन जाएगा। यह बिलकुल असत्य है। 
          किसी भी राष्ट्र की भावी पीढ़ी का निर्माण शिक्षकों द्वारा की जाती है जो काफी ज्ञानवान होते हैं क्योंकि वह हमेशा ज्ञान प्राप्त कर बच्चों में बॉंटने की कोशिश करते हैं लेकिन प्राय: देखा जाता है कि शिक्षकगण अधिक ज्ञानी बनना नहीं चाहते। ये इतने से ही संतुष्ट हैं जितना इनके अंदर है। इन्हें यह भी पता है कि ज्ञान ऐसा सागर है जिसका कोई अंत नहीं है लेकिन फिर भी नए ज्ञान को प्राप्त करने की कोशिश नहीं करते। उन्हें इस बात का डर लगा रहता है कि यदि किसी से कुछ पूछा जाएगा तो सामने वाले हंसेंगे जबकि ऐसा कुछ नहीं होता। ज्ञान बॉंटने वाले इस बात से खुश होते हैं और स्वयं पर गर्व करते हैं कि दूसरों को भी उस ज्ञान की प्राप्ति हुई जिससे वे अनभिज्ञ थे। 
          विद्यालय में प्रायः देखा जाता है कि हमारे शिक्षक किसी एक विषय की जानकारी रखकर ही संतुष्ट दिखते हैं जो बिल्कुल सही नहीं है। हम शिक्षकों को हर विषय की बुनियादी जानकारी होनी चाहिए जिससे यदि विषय विशेष के शिक्षक किसी कारणवश विद्यालय से अनुपस्थित रहे तो उनकी कक्षा में जाकर कोई भी शिक्षक उसी विषय पर नई जानकारी बच्चों को दे सके जिस विषय की जानकारी  अनुपस्थित शिक्षक देते हैं। ऐसा होने से हर शिक्षक बच्चों के सामने एक समान ज्ञानी दिखेंगे और सबों का सम्मान भी एक समान होगा। इसके लिए अलग-अलग विषय के शिक्षकों को अपने-अपने विषय की जानकारी एक दूसरे में बॉंटना चाहिए और सबों के अंदर एक-दूसरे से ज्ञान प्राप्त करने की भावना भी उत्पन्न होनी चाहिए। यदि ऐसा होगा तभी हम शिक्षक परिवार ज्ञानवान अवश्य बन जाएंगे। इसके अलावा तरह-तरह की पुस्तकें भी पढ़ने की आदत डालनी होगी। 
          अंत में यह कहना चाहता हूंँ कि शायद इस आलेख को पढ़कर शिक्षकों के अंदर अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करने की भावना जगेगी क्योंकि इस क्षेत्र में प्रवेश कराने हेतु पहल तो करनी ही पड़ती है। 
          तो चलिये आज सरस्वती पूजा के दिन संकल्प लें कि हम हमेशा अपने ज्ञान की वृद्धि करते रहें और अपने शिष्यों को भी अधिक से अधिक ज्ञानवान बनने में सहयोग करते रहें। 



विजय सिंह नीलकण्ठ
सदस्य टीओबी टीम

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