Monday, 22 February 2021
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मौन एक साधना है-मनोज कुमार दुबे
मौन एक साधना है
पिछले दिनों मौनी अमावस्या थी। हालांकि इस बार मौनी अमावस्या पर गंगा जी का स्नान तो नही हो पाया लेकिन घर पर रखे गंगा जल और पानी के मिश्रण से माँ गंगा के स्नान जैसा ही बोध हुवा। जो मित्र मौनी अमावस्या के विषय में नहीं जानते उन्हें जरूर जानकारी देना चाहूंगा कि यह लगभग फरवरी महीने में पड़ता है जिसे हिंदी कैलेंडर से माघ माह की अमावस्या को मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। शास्त्रीय मान्यता है कि इस अमावस्या के दिन मौन रहकर व्रत और भगवत भक्ति करने से अनेक प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। मौनी अमावस्या के दिन प्रयागराज में त्रिवेणी संगम में स्नान-दान, हरिद्वार, शिप्रा, नर्मदा, यमुना सहित अन्य पवित्र नदियों में करने का बड़ा महत्व है। इस पूरे दिन मौन रहना चाहिए। चूँकि मेरा गृह जिला बलिया तीन प्रमुख नदियों गंगा, सरयू और तमसा ( टोंस) का प्रवाह मार्ग है जिस कारण स्नान का हर पर्व यहाँ आम जनमानस खासकर स्त्रियों के लिए महत्व का विषय हो जाता है। मौनी अमावस्या के दिन मौन रहा जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके यथाशक्ति दान-पुण्य करना चाहिए। मौनी अमावस्या के दिन नदियों के तट पर निवास करते हुए भगवान का पूजन, चिंतन, धर्म ग्रंथों का पठन-पाठन करना चाहिए। इस दिन संगम तट पर समस्त देवी-देवताओं का वास रहता है, इसलिए दिन अधिक पुण्यदायी होता है।
मौनी अमावस्या पर इस बार मुझे एक महात्मा की याद आ गयी। हालांकि अब वे जीवित नहीं रहे पर उनकी मौन साधना हम सबके लिए आश्चर्य का विषय रहा। पूरे जीवन काल मे उन्होंने लगभग 30 वर्ष मौन धारण कर रखा था।उनकी ऐसी तप साधना को लोग हठयोग कहते थे। उन्हें कुछ कहना होता कागज पर लिख कर देते और अपनी आवश्यकताओं के विषय मे लोगो से बता देते। जीवन मे मुझे एक बार उनसे मिलने का अवसर प्राप्त हुआ था। हलांकि उनका मौन किस संदर्भ में रहा ये तो मुझे नहीं पता पर उन्हें देखकर एक बात जरूर समझ आयी कि बुरे शब्दों से हम मौन के द्वारा ही बच सकते हैं। स्मरण रहे कि सहज मौन ही हमारे ज्ञान की कसौटी है। जानने वाला बोलता नहीं और बोलने वाला जानता नहीं। इस कहावत के अनुसार जब हम सूक्ष्म रहस्यों को जान लेते हैं तो हमारी वाणी बंद हो जाती है। ज्ञान की सर्वोच्च भूमिका में सहज मौन स्वयमेव पैदा हो जाता है।
स्थिर जल बड़ा गहरा होता है। उसी तरह मौन मनुष्य के ज्ञान की गंभीरता का चिह्न है। वाचालता जिसे हम अधिक बोलना कहते है पांडित्य की कसौटी नहीं है, वरन गहन-गंभीर मौन ही मनुष्य के पंडित और ज्ञानी होने का प्रमाण है। मौन ही मनुष्य की विपत्ति का सच्चा साथी है, जो अनेक कठिनाइयों से बचा लेता है।
आत्मा की वाणी सुनने के लिए; जीवन और जगत के रहस्यों को जानने के लिए; लड़ाई-झगड़े, वाद-विवादों को नष्ट करने के लिए; वाचिक-पाप से बचने के लिए; ज्ञान की साधना के लिए; विपत्तियों के दिनों को गुजारने के लिए; वाणी के तप के लिए तथा अन्यान्य हितकर परिणामों के लिए हमें मौन का अवलंबन लेना चाहिए। दैनिक जीवन में मित-भाषण और हित-भाषण की आदत डालकर हम लौकिक और आध्यात्मिक प्रगति का द्वार हम प्रशस्त कर सकते हैं। हलांकि सामान्य मनुष्य को हठ योग के रूप में मौन धारण करने का मैं समर्थन नहीं करता न ही झूठे पाखंड आवरण बनाकर दुनिया के समक्ष मौन धारण का दिखावा करना उचित है बल्कि मौन को जीवन की सामान्य दिनचर्या में शामिल करने की आवश्यकता है। वर्ष में कम से कम एक दिन पूर्ण मौन रहने से संयम में वृद्धि होती है। इस दिन मात्र जुबान को ही नहीं, बल्कि अपने मस्तिष्क को भी नकारात्मक बातों, नकारात्मक विचारों से मौन रखना चाहिए। इससे मस्तिष्क की सफाई हो जाती है। कोशिश कीजिये हर दिन दस मिनट मौन रहिये यह मनुष्य के अहंकार क्रोध और दूसरे से घृणा को नष्ट करने में अचूक दवा है।
मनोज कुमार दुबे ✍️
उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय भादा खुर्द लकड़ी
नबीगंज सिवान
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Very nice 🙏
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