Friday, 2 April 2021
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हमारा घर-भोला प्रसाद शर्मा
हमारा घर
एक आशा होती है सपने होते हैं। हर मनुष्य के अंतरात्मा में। जीवन में कितनी वीरान, कितने आँधी, कितने सकारात्मक भाव, कितनी जिम्मेदारियाँ पर मनुष्य व्यर्थ की
चिन्ता, निंदा असम्भव को सम्भव के पीछे सहमा सा होकर, उनके परछाई की तलाश में सदियों गुजार देते हैं परन्तु इन्हें प्राथमिकता तब मिलती है जब उनका क्रियाकलाप एक सच्ची
आत्मा के पदार्पण से होता हो। इनका निवास एक स्थान पर होता है जहाँ सिर्फ शान्ति, अमन और स्थिरता होती है। जिसमें लाखों गरिमा छुपे हो, उनमें दीनता भले ही कूट-कूटकर भरा हो
पर इच्छाएं अनन्त होती है। उनमें सँवारने की जिज्ञासा जो अपनी भावुक शक्ति से उनके मन में स्थान परिवर्तन
कर एक दीप प्रज्वलित कर सके। कहा जाता है- जहाँ शान्ति होती है वहीं सत्य का वास होता है।
अगर नदी अपनी धारा परिवर्तित कर ले तो वह अपना रूप नहीं बदल सकती। जिद्दी अपना जिद छोड़ दे तो वह बदल सकता है। अपने भाव को, अपने विचार को, अपनी भाषा को, हाँ! पर उसपर एक साया होना चाहिए। एक छाँव होनी चाहिए। उनके हृदय को द्रवित करने के लिए, उन्हें परिवर्तित करने के लिए, उनमें बदलाव के लिए एक अच्छी भाव को उत्पन्न करवाने के लिए। यह एक ऐसी कला नहीं है जो जब चाहे, जिधर चाहे या जिस रूप में चाहे उनपर
अपना रंग चढ़ाकर बदल दे। हाँ! वह कुछ तो है जिसे याद
दिलाती है। अपनों की, अपने पन की, जिसमें चाह बढ़ती है।कुछ आशा की दीपक जलाने की और समरसता की प्रधानता उसमें पनपने पर आतुर सा प्रतीत होता है। इसमें राग-अनुराग, प्रेम-विच्छेद, जीवन-मरण इन सबकी गहरा सम्बंध है। चाहे वह
वैराग्य जीवन ही क्यों न व्यतीत करे अपितु जन्म-स्थल का सम्बंध इनसें है। चाहे वह राजा हो या रंक, देव हो या
दानव। भले ही निशाचर की पहेली क्यों ना गढ़े। फिर भी इनका रिश्ता कहीं ना कहीं, कभी न कभी जुड़ा हुआ है। किसी जन्म में भले ही शायद।
एक अच्छे जीवन की शुरुआत सत्य के बीज और त्याग की सिंचाई से होती है। इस अंकुर को विशाल
वृक्ष बनने जैसी आशा रखने वालों को कठिन प्रयासों से गुजरना होता है। उनपर भी एक अच्छी आत्माओं की कृपा
दृष्टी होती है। उनका संस्कार अच्छा होता है। उनको सुडौल बनाने में एक कुशल व्यक्तित्व का धारण करना, उनकी इच्छा को परखना, इन सब गुणों का उपयोग करके ही चित को शांत
किया जा सकता है। रामायण में भी इनका एक नाम दिया गया है। जबकि राम, लक्ष्मण और सीता चौदह वर्ष वन निवास को निकले थे। तब लक्ष्मण जी ने अपनी सीता माता के लिए अपने बल-बुद्धि का प्रयोग कर उनके देहा-विश्राम और अपनी सेवा-सुश्रुसा के लिए निर्माण किया था। इसी जगह से माता सीते का हरण लंकापति रावण द्वारा मामा मरीच की छल-बुद्धि से
किया गया था।
यह वह स्थान है जिनमें देवी-देवता वास करने के लिए ललायित रहते हैं।वह अलग-अलग रूपों में आकर भ्रमित
मानव में अपने साम्राज्य स्थापित करना चाहते हैं। वह अपना अधिकार जमाकर ही प्रफुल्लित होते हैं। इनमें ऐसी शक्तियाँ है। कहा जाता है कि अगर शान्ति की आवश्यकता है तो इन्हें निर्माण करो प्यारे। इसी में तुम्हें जन्नत महसूस होगा। जब एक असहाय मजदूर बेचारा थका-हारा शाम को वापस आता है तो बच्चों की गूँज, खिलखिलाते ममता की आँचल में ढेर सारा प्यार इन्हें समाहित नजर आने लगता है। वह सारे दु:ख दर्द को क्षण भर में लुप्त कराने का यह एहसास दिलाता है। ऐसा लगता है मानों शबनम की वह बूँन्दों में सूरज की किरणों का प्रवेश हो गया।
इनमें छिपा है हमारा बीता कल, आज और अनन्त तक। इसका वर्णन कितने भी रूपों में किया जाय कम ही होगा। यह सागर है, योजक है, अविनाशी, अजर-अमर
है इनके नाम। संकट को हरने वाले, खुशियाँ लुटाने वाले, जीवन को अंजाम देने वाले। धूप को पीकर, हवाओं से टकराकर, नमी को खाकर, अँधेरों को डरा कर जीवन में दीप जलाने के लिए आगाज़ है। सत्य-असत्य, वीर-भद्र, आशाएँ और इच्छा की पनाह है "हमारा घर"। यह प्रतीक है शान्ति की, चैन का और सम्मान की। आसमान भी इन्हें झुककर
सलाम करता है।
भोला प्रसाद शर्मा
पूर्णिया (बिहार)
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प्रेम
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प्रेरक कहानी। बहुत सुन्दर।
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