Saturday, 14 August 2021
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स्वतंत्रता दिवस एक स्वर्णिम इतिहास-देव कांत मिश्र 'दिव्य'
स्वतंत्रता दिवस एक स्वर्णिम इतिहास
बलिदानों की भूमि है, गर्वित है यह देश।
चाह जन्म की फिर यहाँ, यही धरा परिवेश।।
स्वतंत्रता मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है। अधम से अधम व्यक्ति और छोटे से छोटा बालक भी अपने ऊपर किसी का नियंत्रण प्रसन्नता से स्वीकार नहीं करता। यों तो स्वतंत्रता का अर्थ बिना किसी नियंत्रण या बंधन के देश के प्रत्येक व्यक्ति को स्वेच्छानुसार काम करने का अधिकार मिलना और सबको ऊंँच-नीच, जाति-पाति से रहित समानता का दर्जा प्राप्त करना है परन्तु मेरे विचारानुसार अपने अधिकारों और कर्तव्यों की सीमा में रहकर साथ ही स्वदेश हित को ध्यान में रखकर व्यवहार करना ही स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ है। एक तोता भी पिंजरा में रहना पसंद नहीं करता है। वह उससे मुक्त होना चाहता है। खुले वातावरण में चैन की साँस लेना चाहता है। यह हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि उसे बंधन नहीं उन्मुक्त होने दें। सच पूछा जाए तो स्वतंत्रता में दिव्य प्रकाश है और परतंत्रता में गहन अंधकार। स्वतंत्रता में सुख है तो पराधीनता में दुख। आजादी से पहले हमारा देश एक ब्रिटिश उपनिवेश था। अंग्रेजों ने परतंत्रता के पाश में हमें जकड़ लिया था। उसी दिन से उस जाल को काटने के लिए हम भारतवासी चट्टानी एकता के बल उससे मुक्त होने के लिए अनवरत प्रयास करने लगे। इस पुनीत संग्राम का श्रीगणेश झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के कर-कमलों से सन १८५७ में हुआ। तब से लेकर सन १९४७ तक हम स्वतंत्रता की दिव्य ज्योति पाने व मीठा फल चखने हेतु संघर्ष करते रहे। इस दौरान अनंत माताओं की कोख सूनी हो गईं। अनंत पत्नियों के सौभाग्य सिन्दूर तथा अनंत बहनों के भाई स्वतंत्रता की बलि-वेदी पर चढ़कर अमरगति को प्राप्त हुए। यों कहा जाए कि परिवार के परिवार इस अग्निकुंड में भस्मसात हो गए। अंग्रेजों ने अपनी प्रभुता की रक्षा के लिए, जो कुछ कर सकते थे, सबकुछ किया पर भारत माता के वीर सपूतों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा हेतु उनका डटकर सामना किये और हँसते-हँसते फाँसी के फंदे पर झूल गए। अदम्य साहस और हमारी एकता के समक्ष अंग्रेजों को नतमस्तक होना पड़ा।
वर्षों की साधना फलवती हुई और अंग्रेजों ने भारत से जाने का निश्चय कर लिया। १५ अगस्त १९४७ को हमारा देश गुलामी की जंजीरों से मुक्त हुआ और देश के कोने-कोने में झोपड़ी से महल तक स्वतंत्रता की लहर छा गई। हम भारतवासी खुशी और आनंद के सागर में गोता लगाने लगे। सहस्त्रों दीपों की ज्योति जगमगा उठी।
स्वतंत्रता दिवस का महत्व:
* यह हमारे देश के इतिहास का सबसे पावन व स्वर्णिम दिन है।
* यह दिवस हमें आजादी हेतु स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए त्याग और बलिदान की याद दिलाता है।
* यह भारतवासी के अन्दर देशभक्ति की भावना के साथ देश के लिए कुछ कर दिखाने की भावना को भी उजागर करता है।
* यह हमारी सादगी, पुरुषार्थ और यथार्थ से जुड़े रहने की भी याद दिलाता है।
* यह आजादी की प्रेरणा प्रदान करने वाले मनीषियों एवं वीरों के शौर्य, पराक्रम तथा उनके बलिदानों की याद दिलाता है।
एक बात दीगर है कि जब से हमारा देश आजाद हुआ है तभी से आर्थिक व तकनीकी क्षेत्र में यह प्रगति की ऊँचाई तक पहुँचा है। ऐसा समग्र एकता और गहरी सूझ-बूझ से हुआ है। आज हम सुन्दर वातावरण में चैन की साँस वीरों के बलिदान के कारण ही ले पा रहे हैं। अतः देशप्रेम व अपनी मातृभूमि के प्रति अनुराग व निष्ठा प्रत्येक नागरिक में होना अनिवार्य है। देश के भविष्य यानि बच्चों को प्रारंभ से ही स्वतंत्रता के महत्व को बताते हुए भारत के महापुरुषों जैसे- महात्मा गाँधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, स्वामी विवेकानंद, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, रवीन्द्रनाथ टैगोर, सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा वीरों व वीरांगनाओं जैसे- सरदार भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त, रानी लक्ष्मीबाई जैसे असंख्य वीर देशभक्तों के अमूल्य योगदान को
बताया जाना चाहिए। देशभक्ति का भाव हमें सच्चे दिल से रखना चाहिए। हम चाहे सीमा पर हों या कहीं भी अथवा किसी भी कार्य क्षेत्र में ईमानदारी, लगन व तन्मयतापूर्वक कार्य करना चाहिए। स्वतंत्रता का भी यही आशय होना चाहिए। स्वतंत्रता यानि सुख, जाग्रत अवस्था, अभिनव ज्योति तो हमें पुकारती है कि ऐ मानव! जिस उद्देश्य से इस धरा धाम पर आए हो अपने जीवन को सद्कर्मों से सार्थक कर लो। मानव-मानव में प्रेम की जोत जगाओ। अपनी मातृभूमि से प्यार बढ़ाओ। यही तो जीवन की सार्थकता है। हमें अपनी स्वतंत्रता पर गर्व है और सदा रहेगा। बस इसे अक्षुण्ण रखने की आवश्यकता है। इस संबंध में मेरा विचार है:
देशभक्ति का भाव ले, करिए अपना काम।
दुनिया में ऊँचा करें, भारत माँ का नाम।।
देव कांत मिश्र 'दिव्य'
भागलपुर, बिहार
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