क्या पर्सनैलिटी है-मो. जाहिद हुसैन - Teachers of Bihar

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Sunday 17 October 2021

क्या पर्सनैलिटी है-मो. जाहिद हुसैन

क्या पर्सनैलिटी है
    
           प्रायः लोग किसी को देखकर बोलते हैं- गजब यार! क्या पर्सनैलिटी है? लोग बाहरी दिखावे को देखकर ऐसा बोलते हैं लेकिन वास्तव में व्यक्तित्व आंतरिक और वाह्य दोनों का सम्मिश्रण है। वाह्य गुण आंतरिक गुणों को उद्घाटित करते हैं। यदि कोई वैसा बनता है जैसा वह नहीं है तो यह उसके व्यक्तित्व के प्रतिकूल है। इन्टरव्यू में ज्ञान-मनोविज्ञान, व्यवहार एवं कौशल से परखा जाता है कि इन्टरव्यू का व्यक्तित्व उस पद को डिजर्व करता है या नहीं। फारसी के महान शायर एवं विद्वान शेख सादी ने अपनी पुस्तक गुलिस्तां में लिखा है- "ता मर्द सुखन न गुफ्ता बाशद, ऐबो हुनरस नहुफ्ता बाशद।" अर्थ है: जब तक कोई शख्स किसी से बात न की हो तो उसके ऐब और  हुनर के बारे में पता नहीं चलता। 
          व्यक्तित्व का अंग्रेजी अनुवाद पर्सनैलिटी है जो लैटिन शब्द परसोना से बना है जिसका अर्थ नकाब होता है जिसको नायक नाटक करते समय पहनते हैं। इस आधार पर लोगों ने  बाहरी वेश-भूषा तथा दिखावे को ही व्यक्तित्व समझ बैठा है-भड़कीले पहनावे वाले व्यक्ति को अच्छा और साधारण पहनावे वाले व्यक्ति को खराब। ऐसा है क्या ? हरगिज नहीं। महान व्यक्तित्त्व वालों का जीवन  सादा होता है। 'घर में भुंजी भांग न, सराय में डेरा' और 'अक्ल से पैदल' ही भड़कीले पहनावे, अजब-गजब हेयर स्टाइल और नायकों की सी अदाओं का नकल करते हैं जिसे हम भूलवश गुड पर्सनैलिटी समझ बैठते हैं। अमेरिका के महान मुक्तिदाता राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने जब दाढ़ी बढ़ा ली तो उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली प्रतीत होने लगा, किंतु व्यक्तित्व केवल शारीरिक सौंदर्य पर निर्भर नहीं होता। हम लिंकन को महान उसके शारीरिक व्यक्तित्व के कारण नहीं वरन उनके विचार, व्यवहार एवं कार्यों के कारण मानते हैं। अतः दिखावे की परिभाषा  अवैज्ञानिक है। अधिकतर विद्वानों के मन्तव्य के सार में जाएं तो व्यक्तित्व एक ऐसा तंत्र है जिसके मानसिक तथा शारीरिक, दोनों ही पक्ष होते हैं। इस तंत्र में ऐसे तत्वों का गठन होता है जो आपस में अंतः क्रिया करते हैं। इस तंत्र के मुख्य तत्व शीलगुण, संवेग, आदत, ज्ञानशक्ति, चित्तप्रकृति, चरित्र, अभिप्रेरक आदि हैं जो सभी मानसिक गुण हैं परंतु इन सबका आधार शारीरिक अर्थात व्यक्ति की ग्रंथीय क्रियाएं एवं तांत्रिकीय प्रक्रियाएं हैं। इसका स्पष्ट मतलब यह हुआ कि व्यक्तित्व न तो पूर्णतः मानसिक है और न पूर्णतः शारीरिक ही। मानो- शारीरिक तंत्र के भिन्न-भिन्न तत्व जैसे शीलगुण, आदत आदि एक दूसरे से इस तरह संबंधित होकर संगठित हैं कि उन्हें एक दूसरे से पूर्णतः अलग नहीं किया जा सकता। इस संगठन में परिवर्तन संभव है, जिस कारण इसे एक गत्यात्मक संगठन कहा जा सकता है।
          आजकल तो कॉर्पोरेट जगत में यदि नौकरी करनी है तो भीषण गर्मी में भी कोर्ट-टाई पहनना होगा और जूते को चमकाते रहना होगा। विदित हो कि वे लोग एक पॉकेट में रुमाल तो दूसरे पाॅकेट में नैपकिन पेपर रखते हैं। रुमाल से चेहरा पोछते हैं तो पेपर से वे जूते चमकाते हैं। यहां तो ग्लैमर का ही महत्व है। जहां भी देखें, अधिकांश रिसेपशनिस्ट सुंदर एवं आकर्षक काया वाले रखे जाते हैं। व्यक्तित्व में दैहिक साक्षात्कार भी एक बड़ी सच्चाई बन गई है। इसे पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता है। लेकिन होना तो यह चाहिए कि व्यक्ति के भीतरी गुणों पर तुलनात्मक रूप से अधिक बल डाला जाए। कॉर्पोरेट जगत में हर्टलेस क्यों न बनना पड़े लेकिन मुनाफे के लिए टारगेट तो पूरा करना ही होगा। आखिर पैकेज पर साइन जो किया है। नैतिकता जाय तेल लेने। नैतिकता का लगाव तो हर्ट से है, जज्बात से हैं और यहां जज्बाती होना, कामयाबी के शिखर पर चढ़ने के लिए जुर्म है। व्यक्तित्व का मतलब वे लोग ज्यादा समझते हैं जो किसी के करीब होते हैं जैसे दोस्त-यार, पति-पत्नी एक-दूसरे के मनोदशा और अंदरुनी हाल को बखूबी समझते हैं। अब देखिए ना! कोई अपने दोस्त को जिस किसी नाम से पुकारते हैं तो वे उनके व्यक्तित्व को समझते हैं। वे सेठ जी, नेताजी, प्रोफेसर साहब, फिलाॅस्फर, बोकरात, शब्दवीर और लाट साहब आदि बोलते हैं। कॉलेज में स्टूडेंट्स साथियों को अभिनेताओं के नाम से पुकारते हैं। बायो वाले किसी को बटरफ्लाई तो किसी को माईमोसा प्यूडिका (छुईमुई) कहते हैं। आर्ट्स वाले किसी को अरस्तु तो किसी को रूसो के नाम से पुकारते हैं। क्रिकेट खेलने वालों की भी अपनी भाषा होती है- रावलपिंडी एक्सप्रेस, वंडरब्वॉय, लिटिल मास्टर आदि। होम्योपैथ कॉलेज में स्टूडेंट नाकाम आशिक को इग्नेशिया, तो झुकनी लेने वाले को जेलसिमियम कहते हैं। ये सभी बातें उनके व्यक्तित्व को उद्घाटित करते हैं। 
          व्यक्तित्व को बचाएं न कि नया व्यक्तित्व बनाएं जो आपके अंदर है, वही बाहर हो। कोई बनावटीपन न हो। नेचुरल हो। सभी के लिए यही सही है। नेचुरल होने का मतलब यह भी नहीं है कि परिस्थित से वे सामंजस्य स्थापित न करें। व्यक्तित्व मानवीय व्यवहार का प्रतिमान है जो परिस्थित के अनुसार समायोजन हेतु परिवर्तित होते रहते हैं तथा जिसका उस परिस्थिति-विशेष से अलग कोई अस्तित्व नहीं होता। अनुभव से समायोजन संभव है। प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने तरीके से वातावरण के साथ एडजस्ट करता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का व्यवहार, विचार तथा होने वाला संवेग आदि अपूर्व होता है। 
 

मो. जाहिद हुसैन     
उत्क्रमित मध्य विद्यालय मलहविगहा
चंडी (नालंदा)

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