सृजनशीलता है दिमाग की उपज-मो.जाहिद हुसैन - Teachers of Bihar

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Monday 8 November 2021

सृजनशीलता है दिमाग की उपज-मो.जाहिद हुसैन

सृजनशीलता है दिमाग की उपज

          महान सूफ़ी शायर, साहित्यकार एवं इतिहासकार अमीर खुसरो जब इधर-उधर भटक रहे थे तो उन्हें प्यास लगी। वे एक कुंए के पास गए जहां पांच औरतें पानी भर रहीं थीं। अमीर खुशरो ने अपना परिचय दिया," मैं अमीर खुशरो हूं, मुझे पानी पीना है। "इस बात को किसी ने नहीं माना। "उन्होने उनका मजाक उड़ाया, "कहाँ अमीर खुसरू और कहाँ आप। आप अमीर खुसरू नहीं हो सकते।" तो उन्होंने कहा आपलोग कैसे मानेंगे कि वह अमीर खुसरो है। औरतों ने परीक्षा ली। हम लोग एक-एक चीज का नाम लेते हैं। यदि आप इन्हें मिलाकर कोई शेर (छंद) बना देंगे, तो हम लोग मान लेंगे कि आप अमीर खुसरो हैं। एक औरत ने कुत्ते को देखकर 'कुत्ता' का नाम लिया। दूसरे ने 'चरखा' तीसरे ने 'खीर' और चौथे ने 'ढोल'। अमीर खुसरो अनायास बोल पड़े।
खीर पकाई जतन से, चरखा दिया चला,
कुत्ता आया खा गया, तू बैठी ढोल बजा।
यह बोलते ही अंत में उन्होंने कहा, "ला पानी पिला।" चारों औरतें घड़े में पानी लेकर उन्हें पिलाने के लिए दौड़ पड़ीं। चारों औरतों ने उनसे क्षमा मांगी। यह छंद सृजनशीलता का अच्छा उदाहरण है। शायरी में दो तरह की रचना होती है- आमद और आबुरद। फारसी में आमद आमदन मसदर (क्रिया) से बना है, जिसका अर्थ होता है-आया। और आबुरद आबुरदन मसदर (क्रिया) से बना है, जिसका अर्थ होता है- लाया गया। जो बातें अचानक दिमाग में आ जाती है और मुखरित होती है, यह आमद की शायरी कहलाती है। अक्सर यह होता है कि कलमकारों के द्वारा विचारों को जबरदस्ती लाया जाता है जिसमें समय भी ज्यादा लगता है; वह आबुरद की शायरी या रचना कहलाती है। कभी-कभी चलते-फिरते आसानी से तुकबंदी लोग कर लेते हैं। कवित के नियम तथा व्याकरण पर भी फिट बैठ जाता है। ऐसा किसी से भी हो सकता है, यही आमद की शायरी है। एक वाक्या (घटना) है। एक अच्छे घराने का बच्चा गली में घरौंदा बना रहा था। उससे किसी ने पूछा," बेटा, तुम क्या बना रहे हो।" बच्चा बोला- 
"कु-ए- जाना से ख़ाक लाता हूंं     
अपना काबा अलग बनाता हूं।"
(अर्थात मैं अपनी प्रेमिका की गली से मिट्टी लाता हूँ और मैं अपना पवित्र स्थल बनाता हूँ।) तो यह शायरी स्वाभाविक है जिसे वह अनायास बोल उठा। कुछ माहौल का असर भी होता है। इंसान के व्यक्तित्व पर वंश और वातावरण, दोनों का असर पड़ता है। जिसकी शिक्षा-दीक्षा जैसी होगी उसका असर किसी व्यक्ति पर पड़ना स्वाभाविक है। चिंतक, लेखक, कलाकार, कवि तथा वैज्ञानिक नया सृजन करते हैं। उन्हें अंतर्दृष्टि होती है। हालांकि यह तो सत्य है कि उनके दिमाग में कुछ न कुछ पहले से छ:पांच चलते रहता है जो अंतर्दृष्टि के रूप में प्रस्फुटित होती है। शायराना मिजाज ही शायरी को प्रस्फुटित करता है। मालूम हो कि शायरी परिस्थितिजन्य होती है। इंसान सोता जरूर है लेकिन उसका दिमाग नहीं सोता। वह अपना काम करते रहता है। प्रत्येक चिंतक का दृष्टिकोण चीजों को देखने का अलग-अलग होता है। आखिर! पेड़ से फल गिरते हुए तो न्यूटन से पहले सबने देखा होगा लेकिन न्यूटन ने ही गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत क्यों दिया? सवाल तो बनता है। वैज्ञानिक केकुले वाॅन ने एक सपना देखा कि एक साँप अपनी पूंछ को वृत बनाकर अपने मुंह में ले लेता है तो उससे उसे सूझ मिलती है और वह बेंजीन का संरचना सूत्र निकाल लेता है। उसके दिमाग में कई दिनों से इसके लिए छ:-पांच चल रहा था। ऐसा ही गणितज्ञ रामानुजन के साथ भी होता था। सपने में उसे गणित का हल मिल जाता था और वह उठ बैठता था तथा फिर उसे काॅपी पर लिखने लगता था।
          कहा जाता है कि लिखा कलम से जाता है। दरअसल लिखा कलम से नहीं, दिमाग से लिखा जाता है। कोई  बात कल्पना के रूप में पहले दिमाग में आती है और यही कल्पना नए विचारों का सृजन करती है। जब व्यक्ति अपनी ओर से किसी नए विचार की रचना करता है तो इस तरह की कल्पना को सर्जनात्मक कहा जाता है। कल्पना में कोई खास लक्ष्य नहीं होता लेकिन यदि वही कल्पना लक्ष्य निर्देशित हो जाती है तो वह कल्पना, कल्पना नहीं रहती बल्कि चिंतन में बदल जाती है। चिंतन के लिए पहले कल्पना की दुनिया में जाना पड़ता है फिर उसे समेटकर चिंतन की जाती है जो सृजन के रूप में आकार लेती है। चिंतन में प्रयत्न तथा त्रुटि की प्रक्रिया होती है जिसके सहारे कोई व्यक्ति समस्या का समाधान निकालता है। विद्यालय में बच्चों के लिए कल्पना शक्ति के 
विकास के लिए माहौल का निर्माण किया जाना चाहिए। मनोवैज्ञानिकों का मत है की कल्पना द्वारा मस्तिष्क के स्मृति चिह्न उत्तेजित रहते हैं। फलस्वरूप, बालकों की स्मरण शक्ति अच्छी बनी रहती है। कल्पना खोज की तरफ ले जाती है। कल्पना छात्रों के जीवन में एक नया मोड़ उत्पन्न करने में सहायक होती है जिसका शैक्षिक जीवन में सर्वाधिक महत्व है। कल्पना में सौंदर्य बोध (Aesthetic sense) भी होता है जो एक अलग तरह का आनंद की अनुभूति कराता है। यह बोध स्वतंत्र कल्पना के फलस्वरुप प्रस्फुटित होता है जो अलग-अलग व्यक्ति के कल्पना और तद्नुसार सोच तथा अनुभव के आधार पर अलग-अलग प्रस्फुटित होता है।

             
मो.जाहिद हुसैन 
उत्क्रमित मध्य विद्यालय मलहविगहा
चण्डी (नालंदा)

1 comment:

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