चक्रवर्ती सम्राट अशोक-डॉ पूनम कुमारी - Teachers of Bihar

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Saturday 9 April 2022

चक्रवर्ती सम्राट अशोक-डॉ पूनम कुमारी

 क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि जिस बच्चे को जन्म के समय ही उसकी कुरूपता को देखकर उसके पिता ने उससे मुंह फेर लिया था वही बच्चा आगे बड़ा होकर एक दिन चक्रवर्ती सम्राट बनेगा? नहीं न! कितने आश्चर्य की


बात है कि अशोक के जन्म के समय से ही नफरत करने वाले पिता अपने अंतिम समय तक भी उससे नफ़रत ही करते रहे, फिर भी अशोक राजा भी बना और फिर चक्रवर्ती सम्राट भी।आप कह सकते हैं कि वह राजा का बेटा था , राजा बनना उसके किस्मत में था। लेकिन क्या सिर्फ किस्मत के भरोसे चक्रवर्ती सम्राट बना जा सकता है? जी नहीं, बिल्कुल नहीं। अशोक के चक्रवर्ती सम्राट बनने के पीछे उसकी मेहनत..उसकी सुझबूझ थी।उसकी प्रशासनिक व्यवस्था तो अद्भुत थी , जिसके बल पर उसने अखंड भारत साम्राज्य की स्थापना की। अशोक के समय में भारत का साम्राज्य आज के सम्पूर्ण भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बंगलादेश तथा भूटान एवं म्यानमार के कुछ भू-भाग तक फैला हुआ था। अशोक को एक कुशल प्रशासक के साथ -साथ बौद्ध धर्म के प्रसारक के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने संपूर्ण एशिया में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया।


सम्राट अशोक का जन्म 304 ईसा पूर्व पाटलिपुत्र पटना में हुआ था उनके पिता का नाम बिंदुसार था एवं माता का शुभद्रांगी था। कहते हैं कि तब के चंपानगर (जो वर्तमान में चंपारण के नाम से जाना जाता है) रहने वाले शुभद्रांगी के पिता को किसी ज्योतिषी ने कहा था कि इसके दोनों बेटों में से एक बेटा चक्रवर्ती सम्राट बनेगा,सुभद्रांगी के पिता उन्हें लेकर पाटलिपुत्र आ गए और बिंदुसार से सुभद्रांगी का विवाह हो गया। जन्म के समय अशोक की कुरूपता को देखकर राजा बिंदुसार ने अशोक को अपने से दूर कर दिया , वह उससे नफरत करने लगे। समय बीतता गया, पिता के स्नेह से वंचित अशोक धीरे- धीरे बड़ा होने लगा। शायद यही कारण है कि आगे चलकर अशोक अति महत्वकांक्षी हुआ। अक्सर यह देखा जाता है कि जिस बच्चे का पालन- पोषण प्रेम और स्नेह से होता है उसका स्वभाव नम्र होता है जबकि उपेक्षित बच्चों के स्वभाव में बचपन से ही कुछ उग्रता दिखाई देती है। अशोक के साथ भी यही हुआ, वह उग्र तो हुआ लेकिन उसने कभी भी राजा बनने के अपने सपने को नहीं छोड़ा। ऐसी स्थिति में बच्चे अक्सर गलत रास्ता पकड़ लेते हैं लेकिन अशोक ने जो किया वह एक होने वाला राजा ही कर सकता है।  उसने अथक परिश्रम किया और अपने आपको एक राजा की तरह तैयार किया ।इतना ही नहीं अपनी सूझबूझ से अशोक ने राजमहल में राजा के आसपास रहने वाले सभी मंत्रियों को अपने विश्वास में ले लिया।


राजा बिंदुसार के अलग-अलग रानियों से 101 बेटे थे और वे इनमें से सबसे बड़े बेटे सुशील को मगध का राजा बनाना चाहते थे। उसी समय एक ऐसी घटना घटी जिसने अशोक के सूझ बूझ और कुशल प्रशासनिक व्यवस्था को दर्शाती है। तक्षशिला (वर्तमान समय में तक्षशिला पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के रावलपिंडी जिले की एक तहसील है जो इस्लामाबाद और रावलपिंडी से लगभग 32 किलोमीटर उत्तर पूर्व में स्थित है)में विद्रोह हो गया। राजा बिंदुसार ने अशोक को बुलाया और तक्षशिला जाकर वहां स्थिति संभालने का आदेश दिया। लेकिन अशोक को यह जल्द ही पता चल गया कि उसके साथ छल हुआ है। उसको घोड़े, हाथी, घुड़सवार ,पैदल सैनिक सब दिए गए थे लेकिन उनमें से किसी के पास भी अस्त्र-शस्त्र नहीं थे। जब सेनापति ने अशोक हो यह बातें बताई तो अशोक थोड़ा भी विचलित नहीं हुआ और उसकी जो प्रतिक्रिया थी ,वह कोई महान व्यक्ति ही कर सकता है। 'अशोक वदान' के अनुसार , अशोक ने कहा कि यदि बिंदुसार पुत्र राजकुमार अशोक में बल है तो यह धरती फटेगी और वहां से अस्त्र-शस्त्र प्रकट होंगे। तो क्या सचमुच धरती फटी ?अस्त्र शास्त्र प्रकट हुए? जी हां! कहां जाता है कि अशोक जब तक्षशिला पहुंचा तो बिना किसी युद्ध किये, बिना किसी लड़ाई के तक्षशिला के लोगों ने अशोक के रास्ते पर पुष्प बिखरा दिए। यहां अशोक की राजनीतिक सूझबूझ दिखाई देती है जिसने बिना रक्त बहाए तक्षशिला जैसे विद्रोही राज्य पर विजय प्राप्त कर लिया। तक्षशिला पर विजय प्राप्त करने के पश्चात राजमहल के सारे मंत्री- अधिकारी यह मानते थे कि अशोक ही राजा बिंदुसार का उत्तराधिकारी बनने लायक है, लेकिन किसी और के चाहने से क्या होता है ,असली परीक्षा तो अभी अशोक के लिए बाकी थी। राजमहल के अधिकारियों के सहयोग से राजा बिंदुसार के इच्छा के विरुद्ध अशोक राजा बन बैठा, और यहीं से राजा अशोक के जीवन में  परिवर्तन दिखाई देता है। राज्यों  पर विजय पाने की अशोक की अति महत्वाकांक्षा ने उसे एक क्रूर शासक बना दिया। कहा जाता है कि राज महल में आगे चलकर कोई विद्रोह ना हो इसके लिए उसने अपने 99 भाइयों की हत्या कर दी।अपने उत्कृष्ट युद्ध कौशल ,कुशल नेतृत्व के बदौलत अशोक ने कई राज्यों पर विजय प्राप्त कर लिया, लेकिन अपने शासन के आठवें वर्ष में हुए कलिंग युद्ध में हुए रक्तपात ने अशोक को बहुत विचलित किया। कलिंग(उड़िसा) युद्ध में 100000 से अधिक लोग मारे गए थे,इससे अधिक लोग बर्बाद हो गये, कलिंग युद्ध में हुए भीषण -रक्तपात ने अशोक को विचलित कर दिया और यहीं से अशोक का हृदय- परिवर्तन हो गया। अशोक सत्य, अहिंसा और सदाचार की बातें करने लगे। शिलालेखों में लिखा है कि अशोक ने युद्ध में मारे गए या बर्बाद हो गए परिवारों से माफी मांगी और साथ में यह भी कहा कि अब कोई युद्ध नहीं होगा ।उन्होंने बौद्ध धर्म को अपना लिया और 'धम्म- विजय' चलाया। यहां से राजा अशोक का एक नया अवतार शुरू होता है। जिस कलिंग को लाखों लोगों के रक्त बहाकर भी अशोक जीत नहीं सका, उस कलिंग पर उसने धम्म (धर्म)के आधार पर विजय प्राप्त कर ली। अशोक की धर्म नीति सभी के लिए कल्याणकारी थी। अशोक ने अपने एक शिलालेख में लिखवाया-"देवताओं के प्रिय दान या सम्मान को इतना महत्वपूर्ण नहीं मानते जितना इस बात को कि सभी संप्रदायों की मूल भावना का प्रचार प्रसार हो। इसके लिए बोलचाल में संयम बहुत जरूरी है। लोग मौके -बेमौके अपने संप्रदाय की प्रशंसा और दूसरे संप्रदायों की निंदा ना करें या कभी निंदा हो भी तो संयम के साथ...। हर अवसर पर दूसरे संप्रदायों का आदर करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से व्यक्ति अपने संप्रदाय की उन्नति और दूसरे संप्रदायों का उपकार करता है।"(12वां दीर्घ शिलालेख का अंश)


बौद्ध धर्म ग्रहण करने के पश्चात ही राजा  अशोक  दयालु और न्याय प्रिय सम्राट अशोक बने। सम्राट अशोक ने जगह-जगह कुआं खुदवाए, सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगाया ताकि मनुष्य के साथ-साथ पशु और पक्षियों को भी छाया मिल सके। प्रत्येक जीव के प्रति सम्राट अशोक में दया और करुणा दिखाई देती है। शिलालेखों एवं अभिलेखों से अशोक के बारे में पता चलता है कि वे प्रेम ,सहिष्णुता, सत्य ,अहिंसा एवं शाकाहारी जीवन प्रणाली के सच्चे समर्थक थे इसलिए इतिहास में उनका नाम एक महान परोपकारी सम्राट के रूप में दर्ज हो चुका है।

Dr Poonam

डॉ पूनम कुमारी

उ० मा०वि० बालबंगरा

अंचल-दारौंदा 

जिला-सिवान

बिहार

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