हिंद हैं हम हिन्दी हमारी भाषा है - Teachers of Bihar

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Tuesday, 13 September 2022

हिंद हैं हम हिन्दी हमारी भाषा है

 मातृभाषा अर्थात मां के द्वारा बोली जाने वाली भाषा । हम जब बोलने की शुरुआत करते हैं तो जो भाषा हमारे घर में बोली जाती है उससे हम बोलने की शुरुआत करते हैं । अर्थात्‌ हमारी भाषा स्थान, सभ्यता और संस्कृति की पहचान होती हैं यानि कि हर व्यक्ति [ परिवेश ] की अपनी एक भाषा होती है । अपनी भाषा का एक महत्वपूर्ण गुण होता है कि इसमें अपनत्व का बोध होता है । हम अपने जीवन की कई पहलुओं की चर्चा करते हैं तो ये बात जरूर चर्चा करते हैं कि हम जीवन में कितना भी आगे बढ़ जायें लेकिन अपनी जड़ें को नहीं भूलना चाहिए l  यही बात हमारी मातृभाषा पर भी लागू होती है चाहे हम कितनी भी भाषा के ज्ञाता हो जायें लेकिन अपनी मातृभाषा को नहीं भूलना चाहिए । अक्सर बच्चे ये सवाल करते हैं कि हम दिवस क्यों मनाते हैं? हम [ शिक्षक ] ये ज़वाब देते हैं कि उस विषयवस्तु के प्रचार-प्रसार हेतु हम दिवस मनाते हैं, लेकिन यहां पर एक प्रश्न दृष्टिगोचर होता है कि हम अपने देश की आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं और आज भी भारत की राजभाषा हिन्दी को प्रचार-प्रसार की आवश्यकता क्यों पड़ रही है ? आज हमें आवश्यकता हिन्दी की प्रचार–प्रसार की नहीं बल्कि दिल से अपनाने की है। 

आलेख का उपर्युक्त भाग नैतिकता के दृष्टिकोण पर आधारित है। अब हम हिन्दी ( राजभाषा ) के तथ्यात्मक पहलू पर चर्चा करेंगे।

देशभर में 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. य‍ह दिन हिंदी भाषा की महत्‍वता और उसकी नितांत आवश्‍यकता को याद दिलाता है. सन 1949 में 14 सितंबर के दिन ही हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला था जिसके बाद से अब तक हर साल यह दिन 'हिंदी दिवस' के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन को महत्‍व के साथ याद करना इसलिए जरूरी है, क्‍योंकि परतंत्रता से मुक्त [ आजाद ]होने के बाद यह हम देशवासियों की स्‍वाधीनता की एक निशानी भी है.

साल 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो देश के सामने एक राजभाषा के चुनाव को लेकर सबसे बड़ा सवाल था. भारत हमेशा से विविधताओं का देश रहा है, यहां सैकड़ों भाषाएं और बोलियां बोली जाती है. राष्ट्रभाषा के रूप में किस भाषा को चुना जाए ये बड़ा प्रश्‍न था. काफी विचार के बाद हिंदी और अंग्रेजी को नए राष्ट्र की भाषा चुन लिया गया. संविधान सभा ने देवनागरी लिपी में लिखी हिन्दी को अंग्रजों के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया. 

14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया था कि हिंदी भारत की राजभाषा होगी. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस दिन के महत्व देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाए जाने का ऐलान किया. पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था ।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर, हजारीप्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्ददास आदि साहित्यकारों को साथ लेकर व्यौहार राजेन्द्र सिंह ने अथक प्रयास किये । यहां पर हम एक तथ्य को उल्लिखित करना चाहते हैं कि व्यौहार राजेन्द्र सिंह हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार थे जिन्होने हिन्दी को भारत की राजभाषा बनाने की दिशा में अतिमहत्वपूर्ण योगदान दिया। फलस्वरूप उनके 50वें जन्मदिन के दिन ही, अर्थात 14 सितम्बर 1949 को, हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया।

और अंत में हिन्दी साहित्य जगत के पितामह भारतेन्दु हरिश्चंद्र की प्रसिद्ध दोहा जिसमें कवि मातृभाषा का उपयोग सभी प्रकार के शिक्षा के लिए  करने पर जोर देते हैं -

" निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।

विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।

सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार। "

भावार्थ 

***

निज यानी अपनी भाषा से ही उन्नति संभव है, क्योंकि यही सारी उन्नतियों का मूलाधार है।मातृभाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा का निवारण संभव नहीं है। विभिन्न प्रकार की कलाएँ, असीमित शिक्षा तथा अनेक प्रकार का ज्ञान सभी देशों से जरूर लेने चाहिये, परन्तु उनका प्रचार मातृभाषा के द्वारा ही करना चाहिये। तभी ही  हिंद हैं हम हिन्दी हमारी भाषा है को सार्थकता प्रदान करेंगे ।

 हिन्दी दिवस की शुभकामना के साथ



राकेश कुमार , मध्य विद्यालय बलुआ 

मनेर [ पटना  ]

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