संस्मरण : एक सज्जन की सज्जनता -अमरनाथ त्रिवेदी - Teachers of Bihar

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Saturday, 19 October 2024

संस्मरण : एक सज्जन की सज्जनता -अमरनाथ त्रिवेदी


संसार में ऐसे लोग विरले ही मिलते हैं, जिन्हें दूसरों के कष्ट देखकर स्वयं भी कष्ट की अनुभूति होती है परंतु वे लोग अंतःकरण से साधारण किस्म के इंसान नही होते। इसके लिए उच्च चेतना की नितांत आवश्यकता होती है। मुझे वह दिन याद है जब अचानक बाढ़ के कारण मेरे घर जाने का रास्ता अवरुद्ध हो चुका था। मैं किसी कार्यवश दो दिनों के लिए बाहर गया था परंतु लौटते समय जिस रास्ते से मैं घर से बाहर गया था वह रास्ता बूढ़ी गंडक के तटबंध टूटने से पूरी तरह से बाढ़ के कारण अवरुद्ध हो चुका था। लोग अपना घर छोड़ अन्यत्र शरण ले रहे थे।

मैं जब बाहर से घर के लिए प्रस्थान किया तभी मेरी नज़र अखबार के मुख्य पृष्ठ के मुख्य समाचार पर पड़ा। उसमे बूढ़ी गंडक के तटबंध टूटने की खबर प्रमुखता से छपी थी। यह देख मुझे काफी चिंता हुई। जिस रास्ते से घर जाने के लिए निश्चिंत था वही अब मेरे लिए विकट चुनौती बन चुकी थी।

मैं उस रास्ते की गाड़ी को छोड़ दूसरे तरफ जानेवाली सवारी गाड़ी पर बैठ गया। जब आगे बढ़ा तो N H 28 के दोनों ओर समुद्र जैसा अभूतपूर्व दृश्य नज़र आ रहा था। आम तौर पर मैं वहांँ से उतरकर भी कई बार घर पहुँचा था पर इस भयंकर दृश्य को देखकर उस रास्ते से घर जाने का कोई सवाल ही न था।

 इस कारण मैं अगले बस स्टैंड के पास उतरने का मन बनाया। कुछ देर के पश्चात वह स्थान आया जहाँ मैं उतर गया। वहाँ से मेरा घर लगभग 10 किलोमीटर था। नज़र दौड़ाया पर कोई सवारी गाड़ी दिखाई नहीं दिया। अंत में यह फैसला किया कि अब मुझे इतनी दूर पैदल ही चलना है।

कंधे पर बैग लटकाए मैं इधर-उधर भी देख रहा था कि कहीं से कोई सहायता मिल जाए परंतु अब तक कोई सहायक नज़र नही आ रहा था।

बस स्टैंड से जब दो किलोमीटर आगे बढ़ा तब मैंने एक सज्जन पुरुष को देखा। उन्होंने जब मेरी ओर देखा तो देखते ही बोले आप कहाँ से आ रहे हैं। मैंने अपना हाल सुनाया तो उन्होंने बड़े आराम से मुझे बैठने को कहा 

और बिस्कुट आदि लाकर मेरे सामने रख दिए। मैं उनके अंतर्निहित भाव समझ कर उस आतिथ्य को स्वीकार कर लिया। मैं अब रास्ता देख रहा था कि अब उनका किस तरह का रुख होगा, तभी वे अपने कमरे से निकले और चलने का इशारा किया। उस समय उनके पास साइकिल थी और उनकी उम्र निश्चित रूप से पचास पार रही होगी। मुझे पीछे बैठने का इशारा किया। मैं कैरियर पर बैठ गया। अब हमारा एक नया सफर शुरू हो चुका था जहाँ से आत्मीयता की खुशबू मेरे मन में हिलोरें ले रही थी। परंतु दुर्भाग्य ने एक बार और धोखा दिया। पिछले चक्के की हवा लगभग निकल चुकी थी, तब पैदल चलने के अलावा कोई उपाय न था। कुछ दूर आगे बढ़ने पर साइकिल मिस्त्री द्वारा पंक्चर ठीक किया गया, तब हमलोग साइकिल से आगे बढ़ने लगे। बाढ़ का पानी अपना रास्ता ढूँढ रहा था परंतु उस सज्जन की दूरदर्शिता ने सूखे रास्ते से मुझे ढोली में बड़े स्नेह से छोड़ दिया । उन्होंने उस समय भी कहा कि कोई आपकी जरूरत हो तो मैं सहायता कर सकता हूँ पर मैंने विनम्रतापूर्वक कहा कि अब मुझे घर जाने में कोई दिक्कत न होगी। अब मेरे लिए घर पहुँचना आसान था। केवल बूढ़ी गंडक नदी पार कर मुझे घर पहुँचना था। जब घाट पर पहुँचा तो नाव भी उस पार जाने को तैयार थी। मैं नाव पर चढ़ा और कुछ देर में ही नाव से पार उतर गया। मैं घर जाने तक सोचता रहा कि ऐसे सज्जन तो भगवान की कृपा से ही मिलते हैं। मैं आज भी यह सोच रोमांचित हो जाता हूँ कि उन सज्जन की सदाशयता ने ही मेरे लिए घर जाना आसान कर दिया जो मेरे लिए दुरूह मालूम पड़ता था। सबसे बड़ी बात यह कि उन्होंने अपना नाम तक नहीं बताया। ऐसे उपकारी, विनम्रशील और व्यवहारकुशल इंसान को याद कर मेरे नेत्र अनायास ही सजल हो जाते हैं और कृतज्ञता से पूरा शरीर रोमांचित हो जाता है।

 अतः बालकों से भी इस संदर्भ में मैं अपील करता हूँ कि जब भी ऐसा सुअवसर आए तब दूसरे की सहायता अवश्य की जाए और जब किसी दूसरे के द्वारा सहायता मिले तो उसे आजीवन याद रखा जाए, यही मानवीय पहलू की मजबूत कड़ी सिद्ध होगी।


अमरनाथ त्रिवेदी 

पूर्व प्रधानाध्यापक 

उत्क्रमित उच्चतर विद्यालय बैंगरा 

प्रखंड-बंदरा, ज़िला- मुज़फ्फरपुर

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