प्रदूषण एक गंभीर समस्या: नियंत्रण व उपाय: - Teachers of Bihar

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Sunday 20 October 2024

प्रदूषण एक गंभीर समस्या: नियंत्रण व उपाय:


आज विश्व प्रदूषण के दुष्चक्र में बुरी तरह से फँसता चला जा रहा है। जिन उपायों को इसके प्रभाव को कम करने के लिए लागू किया गया है, वह फिसड्डी साबित हो रहे हैं। अंधाधुंध बढ़ते बाजारीकरण के मद्देनजर वनों का क्षेत्रफल लगातार घटता जा रहा है। उद्योग धंधों के कारण भी वन के क्षेत्रफल में ह्रास होता दिख रहा है। इस कारण पूरे विश्व में ग्लोबल वार्मिंग का प्रकोप देखने को मिल रहा है।

हिमालय के ग्लेशियर समय से पूर्व ही पिघल रहे हैं, जिस कारण इसके आश्रित मोक्षदायिनी गंगा समेत अनेक नदियों के अस्तित्व पर गंभीर संकट उत्पन्न होता दिख रहा है। यह सब बढ़ते प्रदूषण के प्रभाव का ही दुष्परिणाम है।

प्रदूषण बढ़ने के कई आयाम दृष्टिगोचर होते हैं, जिनमें वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, थल प्रदूषण तथा जल प्रदूषण प्रमुख हैं। सभी जगहों के प्रदूषण में प्रदूषित पदार्थों की मात्रा में भारी इजाफा हुआ है, जिस वजह से आए दिन कई नई बीमारियाँ उत्पन्न हुई हैं। इससे समस्या विकराल रूप धारण करता जा रहा है।

 पिछले चार वर्ष पूर्व विश्व ने एक महामारी झेला था कोरोना, जिस कारण लाखों लोग अकाल काल कवलित हुए थे। वर्ष 2020 और 2021 में इस बीमारी ने प्रायः विश्व के हर कोने में मौत का तांडव ने तहलका मचा दिया था। संपूर्ण विश्व इस संकट के दुष्चक्र से घिर गया था। इस सबके लिए विश्व में बढ़ता प्रदूषण ही जिम्मेवार था और आज भी खतरा पूरी तरह से टला नहीं है।

वायु प्रदूषण- आज विश्व वायु प्रदूषण के चपेट में है। औद्योगिक क्रांति ने इस प्रदूषण को तेजी से बढ़ाया है। बेतहाशा वाहनों की बढ़ती संख्या से निकलनेवाली धुआँ भी प्रदूषण की समस्या को और गंभीर बना रही है। विश्व की बात छोड़ भी दें तो भारत में भी दिल्ली समेत अनेक शहर वाहनों और उद्योग धंधों से निकलनेवाली जहरीली धुआँ से बुरी तरह से परेशान है।

किसानों द्वारा पराली जलाए जाने से भी वातावरण में कार्बनडाइऑक्साइड की मात्रा में काफी इजाफा हुआ है, जिससे दम घुटने तक की शिकायत आने लगी है।

ध्वनि प्रदूषण- आज बढ़ते वाहनों के कारण सड़कों पर शोर अधिक मच रहा है। तरह तरह के ध्वनि विस्तारक यंत्रों ने भी इसमें भरपूर सहयोग किया है, जिससे ध्वनि प्रदूषण भी एक जटिल समस्या बनती जा रही है।

थल प्रदूषण- आज विकास के दौर ने विनाश के भी बीज छुपा रखे हैं। प्लास्टिक या प्लास्टिक जनित कचरा भी गंभीर बीमारियों को जन्म दे रही हैं। खुले में शौच तथा मरे जानवर से भी प्रदूषण में तेजी से वृद्धि देखने को मिल रही है। शहरों में कचरा प्रबंधन में कमी के कारण बजबजाती नालियाँ चीख- चीख कर प्रदूषण की गाथा गा रही हैं। सरकार का ध्यान इस ओर है लेकिन अभी भी इस मामले में और अधिक जागरूक होने की आवश्यकता आन पड़ी है।

जल प्रदूषण- आज जल प्रदूषण भी एक गंभीर समस्या बन चुकी है। औद्योगिक क्रांति ने नदियों को पूरी तरह से प्रदूषित कर दिया है। उससे निकलनेवाली कचरा को मूल रूप से निकटस्थ नदी में छोड़ दिया जाता है। इतनी विपुल मात्रा में कचरे को आत्मसात कर कोई नदी स्वच्छ कैसे रह सकती है, जिस कारण नदियों का जल स्नान के लायक भी नहीं रहा, जल पीने की बात तो अब दिवास्वप्न की तरह हो गई है। जीव- जंतुओं के मल, मरे जानवरों के शरीर तथा मृत व्यक्तियों के शरीर को भी नदी के जल में प्रवाहित कर दिया जाता है, जिससे जल प्रदूषण की समस्या विकट हो गई है। लेकिन जब कहीं समस्या पैदा होती है तब उसका समाधान भी कहीं न कहीं अवश्य छिपा होता है।

वायु प्रदूषण को कम करने के लिए औद्योगिक इकाइयों में निकलनेवाली धुआँ के लिए प्लांट लगाने की तुरंत आवश्यकता है।

किसान को पराली जलाने के बजाय खेतों में ही उसे मिला देना चाहिए , इससे खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी और वायु प्रदूषण को बहुत हद तक कम किया जा सकेगा। वाहनों को पेट्रोल तथा डीजल ईंधन से चलाने के बजाय इलेक्ट्रिक माध्यमों से चलाया जाना चाहिए, जिससे प्रदूषण के बढ़ते स्तर को बहुत हद तक नियंत्रित किया जा सकेगा ।

ध्वनि प्रदूषण- उद्योग धंधों से निकलनेवाली बेतरतीब आवाज को वहाँ प्लांट बैठाकर न्यूनतम किया जा सकता है। ध्वनि विस्तारक यंत्र की आवाज को कम कर तथा उपयोग में कमी लाकर इस प्रदूषण को निचले स्तर पर लाया जा सकता है।

जल प्रदूषण में कमी लाने के लिए औद्योगिक प्रतिष्ठानों में संयंत्र लगाकर नदियों के जल को दूषित होने से बचाया जा सकता है। इस तरफ प्रयास जारी है परंतु अभी उतनी कामयाबी नहीं मिल रही है। आशा है भविष्य में इस कार्य में सफलता मिलेगी। मृत व्यक्ति और मरे जानवरों और अन्य कूड़े कचरे को नदी में प्रवाहित नहीं किया जाए तो 

नदी के जल को प्रदूषित होने से बचाया जा सकेगा।

अपने छात्रों और उनके अभिभावकों से भी अपील है कि वे भी किसी भी प्रकार के प्रदूषण करने से बचें।अपशिष्ट पदार्थों को जलाने से बेहतर मिट्टी में गाड़ देना अधिक बेहतर होगा, इससे वायु प्रदूषण से बचा जा सकेगा, जमीन में गाड़ देने से कुछ समय पश्चात वह कंपोस्ट बन जाएगा जो खेत की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगा। अभिभावकों को भी पराली के जलाने से होनेवाले प्रदूषण और उससे गंभीर रोगों की उत्पत्ति के बारे में सजग और सचेष्ट करना होगा। इस प्रकार हम प्रदूषण पर नियंत्रण अवश्य रख सकते हैं।



अमरनाथ त्रिवेदी 

पूर्व प्रधानाध्यापक 

उत्क्रमित उच्चतर विद्यालय बैंगरा

प्रखंड- बंदरा, ज़िला-मुज़फ्फरपुर

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