चलिए अपने महापुरुषों को याद करते हैं-राकेश कुमार - Teachers of Bihar

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Saturday 2 October 2021

चलिए अपने महापुरुषों को याद करते हैं-राकेश कुमार

चलिए अपने महापुरुषों को याद करते हैं

          आज वर्तमान परिदृश्य (समय) में अक्सर हम देखते हैं कि असफलता हमें तुरंत विचलित कर देता है, धैर्य रखने की क्षमता कम होती जा रही है और तुरंत किसी विषयवस्तु पर निष्कर्ष निकालने लगते हैं। हम कह सकते हैं कि बगैर मेहनत के सफलता की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है जो समाज के हित में नहीं है इसलिए आज की शिक्षण पद्धति में नैतिकतापूर्ण शिक्षा पर जोर दिया जाता है ताकि बच्चे गुणवत्तापूर्ण एवं नैतिकतापूर्ण शिक्षा ग्रहण कर सकें और आने वाले एक स्वस्थ एवं सजग समाज निर्माण के अगुआ बनें जो हमारे महापुरुषों का सपना था। अक्सर बहुत सारे प्रश्न जो उभरते हैं उसका जबाब बाल केंद्रित शिक्षा में मिल जाते हैं। सर्वविदित है कि वर्तमान शिक्षण पद्धति में शिक्षक एक सुगमकर्ता के रूप में बच्चों के सामने रहते हैं और उनका मुख्य कार्य बच्चों के अंदर छिपी जिज्ञासा को बाहर निकालना है। मैंने कक्षा के दौरान यह महसूस किया कि एक बच्चा कुछ जिज्ञासा अपने मन में लिए हुए है। मेरे प्रोत्साहित करने पर बोला सर पहले तो जयंती पर विद्यालय बंद रहता था अब खुला रहता है ऐसा क्यों ? कहते हैं न कि वर्तमान शिक्षा में इस बात पर जोर दिया जाता है कि बच्चों एवं शिक्षक के बीच परस्पर संवाद बना रहना चाहिए। इस परस्पर संवाद का प्रतिफल था कि मेरे बोलने से पहले एक बच्चा बोल पड़ा कि अगर विद्यालय बंद रहता तो हमलोग अपने देश के महापुरुषों के बारे में विस्तारपूर्वक कैसे जानते एवं उनके जीवन से प्रेरणा कैसे प्राप्त करते, है न सर? मैंने भी उसके कही गई बातों पर स्वकृति प्रदान की एवं मन में शिक्षक होने के नाते खुशी की अनुभूति भी हुई  कि बच्चे स्वयं प्रश्न का इंतजार कर रहे हैं एवं बेहतर ढंग से जबाब भी दे रहे हैं। आज का अवसर विशेष था क्योंकि 2 अक्टूबर भारत के लिए एक विशेष अवसर के रूप में आता है। आज के दिन पूरा भारतवर्ष अपने दो महापुरुषों महात्मा गांधी एवं लालबहादुर शास्त्री की जयंती मनाता है जिन्होंने पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल रखी कि अगर मन में संकल्पित इच्छाशक्ति हो तो कोई भी कार्य असम्भव नहीं है। असफलता को हम अपना शुभचिंतक मानते हैं जो हमें ये बताता है कि सफल होने में कौन सी चीज की कमी रह गई और कमी को दूर कर पुनः आगे बढ़ें सफलता अवश्य मिलेगी। इन दोनों ने हम सभी को यह मार्ग दिखाया कि सादगी, सच्चाई, धैर्य एवं ईमानदारी हमारा सबसे बड़ा मित्र है। इसके आगे अगर कोई बाधा आती भी है तो उसकी आयु ज्यादा लंबी नहीं होती है और हमारी सफलता निश्चित होती है। हमनें पूर्व के आलेख में इस बात की चर्चा की है कि अपने महापुरुषों की जीवन गाथा को कुछ शब्दों में समेटना  सम्भव नहीं जो उनके कार्यो एवं महानता को दर्शाता है। आज का ये आलेख दो महापुरुषों के जीवन पर आधारित है तो दोनों के जीवन के बारे संक्षिप्त परिचय आवश्यक है। इस कड़ी में सबसे पहले चर्चा अपने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की करते हैं-
          महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्तूबर 1869 को हुआ। इनको ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेता और 'राष्ट्रपिता' माना जाता है। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था। राजनीतिक और सामाजिक प्रगति की प्राप्ति हेतु अपने अहिंसक विरोध के सिद्धांत के लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई। मोहनदास करमचंद गाँधी भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनीतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। 'साबरमती आश्रम' से उनका अटूट रिश्ता था। इस आश्रम से महात्मा गाँधी आजीवन जुड़े रहे इसीलिए उन्हें 'साबरमती का संत' की उपाधि भी मिली। इनकी मृत्यु 30 जनवरी 1948 को हुई जिसने पूरी दुनिया को शोक में डुबो दिया लेकिन जाते-जाते इन्होंने पूरी दुनिया को सत्य और अहिंसा का जो संदेश दिया वो आज भी प्रासंगिक है।
अब चर्चा करते हैं जय जवान, जय किसान का नारा देने वाले अपने देश के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की--
          लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को हुआ। वह एक प्रसिद्ध भारतीय राजनेता, महान स्वतंत्रता सेनानी और जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। वे एक ऐसी हस्ती थे जिन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में देश को न सिर्फ सैन्य गौरव का तोहफा दिया बल्कि हरित क्रांति और औद्योगीकरण की राह भी दिखाई। शास्त्री जी किसानों को जहां देश का अन्नदाता मानते थे वहीं देश के सीमा प्रहरियों के प्रति भी उनके मन में अगाध प्रेम था जिसके चलते उन्होंने 'जय जवान, जय किसान' का नारा दिया। छोटे कद के महान व्यक्तित्व लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु 11 जनवरी 1966 को हुई।
          आज समय है इन दोनों महान व्यक्तित्वों के महान विचारों, उनके आदर्शों एवं इनके सपनों का भारत जो हमारे (शिक्षक) कंधों पर है अर्थात देश का भविष्य विद्यालय के कक्षाओं में है। अतः हमारा दायित्व है कि उनको सामाजिक भावना से लैस, नैतिक मूल्यों से लैस एवं सबसे महत्वपूर्ण हमारा राष्ट्र प्रथम इस भावना को विकसित कर अपने महापुरुषों की जयंती को सार्थकता प्रदान करें।


राकेश कुमार
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर (पटना)

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