कोविड 19 और अपनों से दूर होते रिस्ते-आकाश कुमार - Teachers of Bihar

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Wednesday 26 May 2021

कोविड 19 और अपनों से दूर होते रिस्ते-आकाश कुमार

कोविड 19 और अपनों से दूर होते रिस्ते

          जब व्यक्ति बीमार होता है और खासकर इस महामारी के दौर में तो उसे हमेशा यही महसूस होता है कि पता नहीं अगले पल क्या हो। ऐसी स्थिति में एक मरीज को सबसे ज्यादा अपनों के साथ और सहानुभूति की आवश्यकता होती है। उसे सबसे ज्यादा अपनों का साथ चाहिए होता है जो उसे भावनात्मक रूप से हमेशा यह विश्वास दिलाता रहे कि वह उसके साथ है और उसे कभी अकेला महसूस न करने दे। ऐसा इसलिए कि अकेलापन खुद में एक बीमारी है। जब व्यक्ति अकेलेपन का शिकार होता है तो उसके मन में हमेेशा नकारात्मकता का संचार होता है और वह धीरे-धीरे शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होता चला जाता है और बीमारी उस पर हावी होती चली जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारा मन और हमारा शरीर एक-दूसरे का पूरक हैै। यही कारण है कि यदि हम शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं तो हम मानसिक शांति का अनुभव करते हैं तथा शारीरिक रूप से कमजोर होने पर मानसिक अशांति का अनुभव करते हैंं। इसके विपरीत यदि हम मानसिक रूप से अशांत या कमजोर होने लगते हैं तो हम शारीरिक रूप से भी थका-थका और अस्वस्थ महसूस करते हैं और यदि हम मानसिक रूप से मजबूत रहते हैं तो बड़ी से बड़ी कठिनाइयों और बीमारियों को भी हंसते खेलते झेल लेते हैं। 
          कोविड-19 एक ऐसी बीमारी है जिसमें मरीज को या तो कुछ दिन या कभी-कभी कुछ लंबे समय तक आइसोलेशन में बिताना पड़ता है। ऐसे में व्यक्ति के अकेलेपन का शिकार होने से इनकार नहीं किया जा सकता। अकेलेपन के कारण व्यक्ति कई बार धीरे-धीरे डिप्रेशन का शिकार हो जाता है और यही कारण है कि डिप्रेशन में आने के बाद कई व्यक्ति आत्महत्या तक कर लेते हैं। इस महामारी के दौरान भी हमें कई ऐसे मामले देखने को मिले जिसमें कोविड के शिकार मरीज ने हॉस्पिटल के छत से कूदकर आत्महत्या कर ली। इस महामारी के दौरान जहां एक ओर कई ऐसी घटनाएं देखने को मिली जो हमारे रिश्तों की गहराई के लिए एक आदर्श मानक प्रस्तुत करता है तो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी घटनाएं भी देखने को मिली जिसने सारे रिस्ते नातों को तार-तार कर दिया। एक ऐसी ही घटना शायद जहानाबाद, बिहार (मुझे जगह का नाम ठीक से याद नहीं) का था जहां एक जज ने कोविड-19 से पीड़ित अपने पिता की मौत के बाद शव लेने से यह कहकर मना कर दिया कि मुझे पूरे परिवार को कोरोना का शिकार नहीं बनाना है तो वहीं दूसरी ओर एक ऐसी महिला की तस्वीर भी सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई थी जिसने अपनी जान की परवाह किये बिना कोविड से पीड़ित अपने पति को ऑक्सिजन की कमी होने पर अपने मुंह से उसे सांस देने का प्रयास करती रही परन्तु दुर्भाग्य से वह उन्हें बचा न सकी। यदि हम अपने व्यवहार पर गौर करें तो पता चलता है कि इस महामारी के दौरान हममें से अधिकांश व्यक्तियों का व्यवहार उस जज के व्यवहार के समान हो गया है जिसे जैसे ही पता चलता है कि उसके आस-पास, समाज का कोई व्यक्ति अथवा कोई रिस्तेदार कोविड से पीड़ित हो गया है तो वह उनसे शारीरिक दूरी के साथ-साथ मानसिक दूरी भी बना लेते हैं। वह मरीज के पास जाना तो दूर एक फोन कॉल करके भी मरीज का समाचार पूछने में काफी असहज महसूस करने लगते हैं। ऐसा लगता है मानो कोरोना निकट संपर्क से नहीं वरन दूर रहकर फोन पर बात करने से भी फैल सकता है। इस महामारी के दौरान हमारा यह व्यवहार दर्शाता है कि नैतिक रूप से हमारा कितना पतन हो चुका है। आज एक छोटे से जीव ने जिन्हें हम नंगी आँखों से देख भी नहीं सकते उसने हमें इतना बेबस और लाचार बना दिया कि हम अपनी सभ्यता, संस्कृति और संस्कार को भुला बैठे। कल तक जो मेरे अपने थे जिन्होंने हमें जन्म दिया, जिनके कंधे पर बैठकर हम घूमे, जिन्होंने हमें अपनी गोद में खिलाया, हमें उंगली पकड़कर चलना सिखाया आज हमने उन्हें ही पराया बना दिया। जरा उनकी जगह अपने आप को रखकर सोचिए कि यदि उनकी जगह आप होते और आपके साथ भी वही व्यवहार होता जो आज आप उनके साथ कर रहे हैं तो आप पर क्या बीतती। आज यह विचार करना अति आवश्यक है अन्यथा हम अनजाने में ही अपनी अगली पीढ़ी को एक ऐसा संस्कार दे रहे हैं जहां हो न हो कल यदि हम ऐसी परिस्थिति में पहुंचे तो हमारे बच्चे भी हमारे साथ ठीक ऐसा ही व्यवहार करेंगे जैसा आज हम अपनों के साथ कर रहे हैं। अतः इस विषम परिस्थिति में भी हमें अपने संस्कार और विशेषकर अपने कर्मपथ से मुँह नहीं मोड़ना चाहिए। यदि आज डॉक्टर अपने कर्तव्य से मुँह मोड़ ले तो क्या होगा। जान उन्हें भी उतनी ही प्यारी है जितनी हमारी जान हमें प्यारी है। इस महामारी में न जाने कितने डॉक्टरों को अपनी शहादत देनी पड़ी लेकिन इसके बावजूद भी वो अपनी जान की परवाह किए बिना अपने कर्तव्य-पथ पर डटे हैं। हमारे अपनों को बचाने के लिए दिन-रात एक किए हैं। 
          याद रखिये हमें बीमारी से घृणा करना है बीमार से नही। हमारा एक-एक शब्द जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हमारे अपनों में नई ऊर्जा का संचार कर सकता है। हमारा आत्मीय व्यवहार उन्हें मानसिक रूप से काफी मजबूत बना सकता है, उन्हें नया जीवन दे सकता है और वह फिर से हमारे बीच पहले की तरह हंसते और मुस्कुराते हुए वापस आ सकते हैं। 
          अतः आपसबों से नम्र निवेदन है कि इस महामारी के दौर में भी आत्मीयता बनाये रखें। सावधानी बरतते हुए अपने परिजनों और मरीजों की देखभाल करें। उन्हें शारीरिक रूप से स्वस्थ होने में मदद करने के साथ-साथ मानसिक रूप से मजबूत बनने में भी मदद करें। ऐसा कर न हम सिर्फ अपनों को बचाने में सफल हो सकते हैं वरण अपने भावी पीढ़ी के लिए भी नैतिकता और कर्तव्य का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं।


                      आकाश कुमार
               +2 शिक्षक (मनोविज्ञान)
   S.N.P.M + School, Madhepura

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