[ गांधी जयंती और लालबहादुर शास्त्री जयंती 02 अक्टूबर विशेष ]
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आधुनिक भारत के निर्माण में शिक्षा की एक सशक्त भूमिका है और वो शिक्षा नैतिकता पूर्ण और मूल्यपरक हो ऐसा हम सभी का ध्येय है।अक्सर हम बच्चों के बीच विषयगत शिक्षा के बीच भी प्रेरणादायक प्रसंगों की चर्चा करते हैं जो वर्तमान शिक्षा के मानकों को पूर्ण करने हेतु जरूरी है। आज हम सभी महसूस करते हैं कि बच्चों को ऐसी शिक्षा प्रदान करें जो सैद्धांतिक के साथ-साथ व्यवहारिक हो जो उनके व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास हेतु नितांत आवश्यक है। शिक्षा के बदलते स्वरुप के साथ-साथ सामजिक दृष्टिकोण या कहें समाज के बदलते स्वरुप के बीच बच्चों को शिक्षित करने के अलावा उनमें बेहतर नैतिक गुणों का समावेश एक चुनौती के रूप में हमारे सामने हैं, मैं इस तथ्य का जिक्र इसलिए कर रहा हूँ कि आज [ वर्तमान ] हम सभी में एक प्रवृति तेजी से पनप रही है अपनी गलती न स्वीकर करने की प्रवृति और इससे बच्चे भी अछूते नहीं हैं। कहा जाता है कि बच्चे अवलोकन कर उसका अनुकरण बहुत तेजी से करते हैं, अतः हम सभी का भी दायित्व बनता है कि वैसा कोई भी कार्य न करें जिससे बच्चों पर प्रतिकूल असर पड़े मैं यहां पर इन सब तथ्यों का जिक्र इसलिए कर रहा हूँ कि क्योंकि यह आलेख महापुरुष विशेष पर आधारित है। वैसे महापुरुष जिन्होंने पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल रखी कि अगर आप मेहनत, ईमानदारी, सच्चाई को अपना साथी बना लो और दृढ़ संकल्प होकर कोई भी कार्य करोगे तो साधारण से महान बनने से कोई नहीं रोक सकता। आज मैं ऐसे ही दो महापुरुषों के बारे में चर्चा करने जा रहा हूँ जिन्होंने साधारण से असाधारण बन कर दिखाया । इस कड़ी में मैं सबसे पहले अपने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की चर्चा अपनी लेखनी के माध्यम से करने जा रहा हूँ--
महात्मा गांधी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था | इनके पिता का नाम करमचंद गांधी और माता का नाम पुतलीबाई था | ब्रिटिश हुकूमत में इनके पिता पोरबंदर और राजकोट के दीवान थे। महात्मा गांधी का असली नाम मोहनदास करमचंद गांधी था और यह अपने तीन भाइयों में सबसे छोटे थे। गांधी जी का सीधा-सरल जीवन इनकी मां से प्रेरित था। गांधी जी का पालन-पोषण वैष्णव मत को मानने वाले परिवार में हुआ, और उनके जीवन पर भारतीय जैन धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा, जिसके कारण वह सत्य और अहिंसा में अटूट विश्वास करते थे और आजीवन उसका अनुसरण भी किया।
उनके बचपन से जुड़ा एक प्रसंग है जिसमें वह शिक्षक के कहने पर भी नकल नहीं करते हैं और परीक्षा में सभी छात्र उत्तीर्ण कर जाते हैं और गांधीजी अनुत्तीर्ण हो जाते हैं, लेकिन उन्हें नकल कर उत्तीर्ण होना मंजूर नहीं था।यह प्रसंग हम सभी के लिए अनुकरणीय है। इन्होंने दुनिया को संदेश दिया कि शांति और अहिंसा के बल पर भी दुनिया में क्रांति लाई जा सकती है। इनके जीवन के पहलू को कुछ शब्दों में छुना सम्भव नहीं, लेकिन इनके दिए संदेश सत्य, अहिंसा और प्रेम की प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी। इनकी मृत्यु 30 जनवरी 1948 को हुई मरते समय इनके मुख पर अंतिम वाक्य हे राम था, जाते-जाते भी इन्होंने दुनिया को प्रेम का संदेश दिया।
लालबहादुर शास्त्री
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सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले शास्त्री जी एक शांत चित्त व्यक्तित्व के थे। शास्त्री जी का जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में 2 अक्टूबर 1904 को हुआ था। वह अपने घर में सबसे छोटे थे तो उन्हें प्यार से नन्हें बुलाया जाता था। उनकी माता का नाम राम दुलारी था और पिता का नाम मुंशी प्रसाद श्रीवास्तव था। शास्त्री जी की पत्नी का नाम ललिता देवी था।
मुश्किल परिस्थितियों में हासिल की शिक्षा-
बचपन में ही पिता की मौत होने के कारण नन्हें अपनी मां के साथ नाना के यहां मिर्जापुर चले गए। यहीं पर ही उनकी प्राथमिक शिक्षा हुई। उन्होंने विषम परिस्थितियों में शिक्षा हासिल की। कहा जाता है कि वह नदी तैरकर रोज स्कूल जाया करते थे। क्योंकि जब बहुत कम गांवों में ही स्कूल होते थे। लाल बहादुर शास्त्री जब काशी विद्यापीठ से संस्कृत की पढ़ाई करके निकले तो उन्हें शास्त्री की उपाधि दी गई। इसके बाद उन्होंने अपने नाम के आगे शास्त्री लगाने लगे। उनका जीवन हम सभी को यह संदेश देता है कि संघर्ष करने से हमें घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उसका सामना करें हमें सफ़लता अवश्य मिलेगी। शास्त्री जी आगे चलकर देश के दूसरे प्रधानमंत्री बनें उन्होंने जय जवान जय किसान का भी नारा दिया। इनकी मृत्यु 11 जनवरी 1966 को हुई।
महापुरुषों की जयंती मनाने का उद्देश्य: इनकी जयंती मनाने के साथ-साथ हम सभी को यह भी सोचना होगा कि या विचार करना होगा कि बच्चों को कैसे महापुरुषों के जीवन से जुड़े विविध पहलुओं की जानकारी मिले ताकि वे उनसे प्रेरणा ले सकें और उनके श्रेष्ठ जीवन मूल्यों को आत्मसात कर सकें। साथ ही साथ गांधीजी और शास्त्रीजी के सपनों का भारत बनाने में हम सभी अपना योगदान दे सकें।
आलेखकर्ता
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राकेश कुमार
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर [ पटना ]
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