बरसात का मौसम और हम- श्री विमल कुमार "विनोद - Teachers of Bihar

Recent

Wednesday, 18 January 2023

बरसात का मौसम और हम- श्री विमल कुमार "विनोद

एक पर्यावरणीय लेख।

 साल में मुख्य रूप से तीन प्रकार की ऋतुयें होती है- जाड़ा, गर्मी और बरसात।ऐसे तो सभी ॠतुओं का पृथ्वी के सभी जीव जंतु पर प्रभाव पड़ता है तथा सभी ॠतु में जीवन जीने का अलग-अलग मजा आता है। लेकिन वर्षा ॠतु अन्य दोनों ॠतु से भिन्न है।मेरी लेखनी बरसात के खूबसूरत मौसम के खुशियों के सौगात को प्रस्तुत करने जा रही है कि"वर्षा सुहानी आयी रे,हाय वर्षा, खुशियों की सौगात लायी रे हाय वर्षा"। जैसा कि माना जाता है कि वर्षा का मौसम जून महीने से प्रारंभ होकर 15 अक्टूबर तक चलती रहती है।वर्षा ऋतु के नाम से ही  मान लीजिए की किसानों के साथ-साथ सभी लोगों के चेहरे खिल उठते हैं क्योंकि वर्षा ऋतु के बारे में ऐसा कहा जाता है कि"पानी रे  पानी तेरा रंग कैसा,भूखे की भूख और प्यासे की प्यास जैसा।हाय पानी,पानी रे पानी।"बरसात के मौसम में पानी बरसती है जिससे कृषि कार्य संपन्न होती है और यदि वर्षा न हो तो चारों ओर हाहाकार तबाही का मंजर फैल जाता है।बर्षा नहीं होने से चारों ओर तबाही ही तबाही भुखमरी का आलम पसरा हुआ रहता है। नदी,जलाशय,कूप,तालाब सूखे-सूखे नजर आते हैं।गर्म ऋतु के बाद पेड़-पौधों को जल की जरूरत होती है और जल नहीं होगा तो लोगों का कल बेकार हो जायेगा।

चूँकि देश की खाद्यान्न व्यवस्था  की उपज के लिये जल का पटवन होना जरूरी है।बरसात का मौसम जो कि विशेषकर धान,मक्का की खेती के लिये निहायत जरूरी है तथा आम,लीची,जामुन इत्यादि के पकने के लिये वर्षा जरूरी है।

   इसके अलावे वर्षा ऋतु के आद्रा नक्षत्र से वन,पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के द्वारा भारत सरकार की महत्वकांक्षी योजना,"वन-महोत्सव"कार्यक्रम का शुभारंभ होता है जो कि, "जुलाई महीने से प्रारंभ होकर सितंबर"माह तक चलती है जिसमें लगाये गये वृक्षों को जीवित रखने के लिये जल की आवश्यकता होती है,जिसकी  पूर्ति केवल वर्षा का जल ही कर सकती है।इसके अलावे सरकार की महत्वकांक्षी योजना "जल, जीवन और हरियाली"योजना को सरजमीं पर उतारने के लिये वर्षा का होना नितांत आवश्यक है।विश्व में जितने भी तरह की कृषि होगी सारे चीजों के लिये जल की आवश्यकता है जो कि बरसात के मौसम में ही प्राप्त हो सकती है।

बरसात की ऋतु-आषाढ़,सावन, भादो,आश्विन महीने तक चलती  रहती है,जिसके बदौलत ही लोगों को जल प्राप्त हो पाता है तथा इसी वर्षा का जल,नदी,नाला,कूप तालाब में जमा रहता है तथा मैदानी भाग एवं खेतों के द्वारा जमीन के अंदर चला जाता है। बरसात के सावन महीने में महिलायें हरे रंगों की चूड़ियों तथा  हरे रंग की साड़ियों तथा मेंहंदी से अपना श्रृंगार करके अपने साजन को रिझाने का काम करती है। साथ ही बोलबम की प्रसिद्ध श्रावणी मेला जिसमें कि शिव भक्त सुल्तानगंज के उत्तर वाहिनी गंगा से जल उठाकर अपने ईष्टदेव भोले नाथ को जलार्पण करने के लिये जाते हैं।सबसे बड़ी बात यह है कि वर्षा नहीं होने से जलसंकट की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

वर्षा ऋतु में ऐसा लगता है कि मानों जीवन में उमंगों की बहार आ जाती है।नदी का उन्मादी रूप देखने को मिलता है।गंगा,यमुना, सोन,सवर्णरेखा,गेरूआ,चानन जैसी भारत की अधिकांश नदियाँ रौद्र रूप धारण कर मानो अपना श्रृंगार कर रही है।धार्मिक रूप से यदि माना जाय तो यह कहा जा सकता है कि बरसात के मौसम में नदियों में बाढ़ आ जाती है,जिसमें गंदा जल बहने लगती है,जिसमें शास्त्र के अनुसार नहाने पर मनाही है ,क्योंकि बरसात के दिनों में नदियां रजस्वला होती है।

अंत में हम कह सकते हैं कि बरसात का मौसम लोगों के जिन्दगी में बहार ला देती है।यदि बरसात के मौसम में बारिश न हो तो चारों ओर हाहाकार मच जायेगी।किसान सुखाड़ की चपेट में आ जायेंगे तथा लोग भूखों मरने के लिये मजबूर हो जायेंगे। भयंकर जल संकट उत्पन्न हो जायेगी तथा जल के बिना जीवन जीना दूभर हो जायेगा।इसलिये किसी कवि ने महिलाओं के बियोग को अपनी कल्पना से प्रस्तुत करते हुये कहा है कि बरखा रानी जरा जमके बरसो , मेरा दिल कहता है।" वृक्ष है तो वर्षा है और वर्षा है तो खुशियों की सौगात है,और खुशियों की सौगात है तो हरियाली है।इस प्रकार वर्षा का मौसम लोगों की जीवनदायिनी है।आइये जम कर वर्षा के मौसम का मजा लीजिए अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाइये तथा अपने-अपने जीवन को मंगलमय बनाने की बहुत सारी शुभकामनायें।


आलेख साभार-श्री विमल कुमार 

"विनोद" शिक्षाविद,भलसुंधिया,गोड्डा 

(झारखंड)

No comments:

Post a Comment