सुख और दुख - गिरीन्द्र मोहन झा, - Teachers of Bihar

Recent

Saturday, 13 July 2024

सुख और दुख - गिरीन्द्र मोहन झा,


मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है,

मनुज दुग्ध से, दनुज रुधिर से, अमर सुधा से जीते हैं,

किन्तु हलाहल भवसागर का शिवशंकर ही पीते हैं,

जीवन में सुख-दुख निरंतर आते जाते रहते हैं,

सुख तो सभी भोग लेते हैं, दुख धीर ही सहते हैं ।

आरसी प्रसाद सिंह ने लिखा है, 'जीवन क्या है? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है, सुख-दुख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है।'

श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, सुखदुखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ। जो सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय में एक समान रहता है, वही स्थितप्रज्ञ है । 

वे कहते हैं-

       मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।

        आगमापायिनोनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।।

(हे कुन्तीपुत्र! शीत-उष्ण, आने वाले सुख-दुख अनित्य हैं, ये सब स्वभावत: उत्पन्न होते हैं, इसे सहन कर।)

सुख, प्रसन्नता या आनन्द यही प्रकृति का स्वभाव है ।

प्रकृति में हर चीज मुरझाते हुए भी अच्छा ही दिखता है। स्वयं परमेश्वर को सच्चिदानंद कहा गया है। अध्यात्म की दृष्टि से प्रत्येक प्राणी को सच्चिदानंदस्वरूप ही कहा गया है। सत् चित् आनन्द । जितने भी महापुरुष आए, वे दुख में भी हँसते-मुस्कुराते रहे। भगवान राम ने वन में प्रसन्नचित्त जीवन जीया। वीर सावरकर ने दस वर्ष कालापानी के विषय में कहा, यह मेरे लिए तीर्थ है । 

दुख या कष्ट दो तरह के हैं- एक, किसी न किसी प्रारब्ध का भोग और दूसरा, सच्चाई, ईमानदारी व परोपकार देशभक्ति के रास्ते पर। दूसरा दुख आनन्ददायी है। दूसरे दुख से आप हँसते-मुस्कुराते-डटते-सहते निरंतर आगे बढ़ रहे हैं तो वह दुख आपको समाज में एक श्रेष्ठ दृष्टांत बनाने वाला होता है। पहले प्रकार का दुख समय के साथ स्वयं कट जाता है। पहले प्रकार के दुख में भगवन्नाम स्मरण, भगवद्भजन, सुमिरन, धैर्य, धर्म, हिम्मत यह सब सहायक होता है। हर दुख, परेशानी व समस्या कोई न कोई सीख व अनुभव देकर जाता है । महर्षि वेदव्यास ने कहा है, 'दुख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है- मन से दुखों की चिंता न करना ।'

गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है- काहु न कोऊ सुख दुख कर दाता । निज कृत् करम भोग सबु भ्राता ।।(कोई किसी को सुख और दुख नहीं देता, सभी अपने-अपने कर्मों का फल भोगते हैं।) 



गिरीन्द्र मोहन झा, 

+2 शिक्षक, भागीरथ उच्च विद्यालय चैनपुर- पड़री, सहरसा

No comments:

Post a Comment