अतीत से वर्तमान तक
भारत–भूमि का भौगौलिक स्वरुप समय– समय पर बदलता रहा है। कहते हैं कि इतिहास बदलता है, पर हमने अपना इतिहास के साथ– साथ भूगोल भी बदलते हुए देखा है। प्राचीन काल में जहां विशाल "जंबू द्वीप" का विस्तृत क्षेत्र हमारे पास था, वहीं वर्तमान में क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत, विश्व का सातवा सबसे बड़ा देश है।
विभिन्न विदेशी आक्रांताओं एवम शासकों के काल से गुजरने के बाद भी, प्राचीन काल से ही हमारा देश, एक कुशल पथ प्रदर्शक के रूप में विश्व को मार्गदर्शन देते आया है। तभी तो अलग पाकिस्तान बनाने वाले प्रमुख नेताओं में शामिल, प्रसिद्ध कवि मोहम्मद इकबाल ने अपनी कीर्ति "तराना ए हिंद" में स्वीकारा है की :–
यूनान ओ मिश्र ओ रोमा, सब मिट गए जहां से।
अब तक मगर है बाकी, नमो निशा हमारा।।
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन, गैरों जमा हमारा।।
सारे जहां से अच्छा, हिंदुस्ता हमारा।
प्रागैतिहासिक काल (5 लाख ईशा पूर्व से 2500 ईशा पूर्व तक)में देखें तो पुरा पाषाण काल में जहां कला के क्षेत्र में भीमबेटका गुफा चित्रकारी,भोपाल का वर्णन मिलता है, वही मध्य पाषाण काल में भारत भूमि पर पशुपालन आधारित समृद्धि जीवन शैली विकसित थी। इसी प्रकार नव पाषाण काल से ही भारत में सुव्यवस्थित कृषि आधारित जीवन शैली फल फूल रही है।
आध ऐतिहासिक काल (2500 ईशा पूर्व से 600 ईशा पूर्व) की चर्चा करें तो पाएंगे की, भारत भूमि पर सिंधु घाटी सभ्यता नामक एक गौरवशाली नगरीय सभ्यता विद्यमान थी। इसी प्रकार वैदिक काल में भारत भूमि पर ऋषि– मुनियों द्वारा महान ग्रंथो यथा ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद इत्यादि की रचना की गई। वेद ने समाज को,मानव जाति को सन्मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित किया वहीं कला के क्षेत्र में विश्व को संगीत के "सात सुरो" से परिचय कराया एवम चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में विश्व को आयुर्वेद का दर्शन कराया। आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व विश्व के प्रथम शल्य–चिकित्सक "महर्षि सुश्रुत" ने अपने महान ग्रंथ "सुश्रुत– संहिता" के द्वारा मानव जाति को चिकित्सा पद्धति के विभिन्न स्वरूपों से अवगत कराया।
ऐतिहासिक काल ( 600 ईसा पूर्व से 712 ई तक) में जहां भगवान बुद्ध एवं भगवान महावीर ने विश्व को सत्य–अहिंसा का पाठ पढ़ाया,वही कलिंग युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात अशोक ने "अहिंसा परमो धर्म:" का मार्ग अपनाया और मानव– जाति को हिंसा के दुष्परिणामों से अवगत कराया। इसी प्रकार दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व महर्षि पतंजलि ने स्वास्थ्य एवं शांतचित जीवन जीने हेतु मानव जाति को योग दर्शन दिया।आज संयुक्त राष्ट्र भी योग के महत्व को देखते हुए ,प्रत्येक वर्ष 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन करती है।
476 इश्वी में जन्मे महान गणितज्ञ,ज्योति शास्त्री आर्यभट्ट ने "आर्यभट्टीय" नामक ग्रंथ के माध्यम से विश्व को ज्योतिष विद्या, गणित एवं खगोल विज्ञान के विभिन्न नियमों से अवगत कराया वहीं छठी शताब्दी में वराह मिहिर ने पंच– सिद्धांतिका के माध्यम से लोगों को खगोलीय नियमों से परिचय कराया।
मध्यकाल (712 ई से 1707 ई तक) आठवीं शताब्दी में जहां शंकराचार्य ने मानव जाति के उत्थान हेतु विश्व को अद्वैतवाद का सिद्धांत दिया, वहीं 1206 से 1707 ई के सांप्रदायिक, संकीर्ण मानसिकता वाले शासकों के काल में महाकवि विद्यापति , रामानंद, कबीर, रविदास, रसखान, रहीम, गुरु नानक देव, तुलसीदास, चैतन्य महाप्रभु इत्यादि ने अपनी उदारवादी भक्ति रचना, प्रेम गीत, एवं उपदेश के माध्यम से मानव– जाति को विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्यपूर्वक रहने की प्रेरणा दी।
कालांतर में 1707 ई से 1947 ई तक के काल को भारत भूमि पर "लूट का काल" कह सकते हैं। 1707 ईस्वी में औरंगजेब के मरने के बाद मुगल साम्राज्य कमजोर हो गई, और तब तक भारत भूमि पर "ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी" का व्यापक फैलाव हो चुका था। मुगलों के सांप्रदायिक नीतियों के खिलाफ जहां औरंगजेब के समय से ही दक्षिण पश्चिम में वीर शिवाजी एवम उनके पेशवा के नेतृत्व में, मराठा आक्रमकता से लड़ रहे थे वहीं 1707 के कुछ समय बाद ही अवध, बंगाल, हैदराबाद इत्यादि के सुबेदारों ने स्वयं को मुगलों से स्वतंत्र घोषित कर लिया। स्थिति को भांपते हुए अंग्रेजों ने "फूट डालो राज करो" की नीति अपनाई और और 23 जून 1757 को पलासी के युद्ध में सिराजुद्दौला को हराया, पुनः 23 अक्टूबर 1764 ई को बक्सर का युद्ध जीतने के बाद ,12 अगस्त 1765 ई को हुए "इलाहाबाद की संधि" के तहत अंग्रेजों को बिहार बंगाल और उड़ीसा का दीवानी अधिकार मिल गया। इसी क्रम में 1769 से 1770 के बीच में बंगाल में चेचक एवं भयंकर सूखा पड़ा, लगभग एक करोड़ लोग भूख से मर गए। परंतु अंग्रेजों ने 1770 में भी कर में इजाफा करते हुए पिछले सभी वित्तीय वर्ष की तुलना में सबसे अधिक कर वसुला। आर्थिक इतिहासकार उत्सा पटनायक के मुताबिक 1765 ई से 1938 ई तक अंग्रेजों ने भारत में 3000 लाख करोड रुपए की लूट की। हालांकि अंग्रेजों का, उस कालखंड में भी "भारत– भूमि" पर ,सर्व समाज के लोगों के द्वारा डटकर विरोध किया गया।
सन 1765 ई से प्रारंभ सन्यासी विद्रोह ने जहां केना सरकार और द्विज नारायण के नेतृत्व में लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ जागरूक किया, वहीं 1765 ई से ही बिहार के सारण क्षेत्र के हुस्सेपुर राज के महाराज फतेह बहादुर शाही ने अंग्रेजों से लोहा लिया। इसी प्रकार काशी नरेश चेत सिंह ने भी अंग्रेजों से युद्ध किया और अपनी शहादत दी, वहीं भागलपुर में तिलका मांझी ने 13 जनवरी 1784 को कलेक्टर क्लीवलैंड की हत्या कर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का आगाज किया।
19 वीं शताब्दी में जहां छुआछूत, अंधविश्वास, सामाजिक– कुरीति, एवं महिलाओं के अधिकार के लिए जहां राजाराम मोहन राय, द्वारकानाथ टैगोर, देवेंद्र नाथ ठाकुर, ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, महादेव गोविंद रानाडे,स्वामी दयानंद, केशवचंद्र सेन, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद इत्यादि ने आवाज उठाई एवम शिक्षा को प्रोत्साहित करने पर स्वयं को केंद्रित रखा।
वही इस सदी में ही बिहार– बंगाल में, सदियों से शोषित ,पीड़ित आदिवासी समाज ने चुआर विद्रोह, भूमिज विद्रोह, कोल विद्रोह के रूप में सफल जनजातीय विद्रोह कर अंग्रेजों के छक्के छुड़ाएं। इसी प्रकार 1855– 56 ईस्वी में सिद्धू, कान्हो , चांद ,भैरव, फूलों और झानो नामक छह भाई– बहनों ने अंग्रेजों के खिलाफ संथाल विद्रोह का आगाज किया और सभी ने हंसते– हंसते अपनी शहादत दी।
29 मार्च 1857 ई को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम लड़ाई का शंखनाद सिपाही मंगल पांडे ने बैरकपुर छावनी में प्रारंभ किया, परिणामस्वरुप 8 अप्रैल 1857 ई को मंगल पांडे को फांसी हुई। फलस्वरुप 10 मई 1857 ई को मेरठ में सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया, जिसे हम इतिहास में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम लड़ाई यानी "सिपाही विद्रोह" अथवा "1857 की क्रांति" के नाम से भी जानते हैं, जिसका नेतृत्व रानी लक्ष्मी बाई, बहादुर शाह जफर, बेगम हजरत महल, तात्या टोपे,नाना साहब ,बाबू वीर कुंवर सिंह, लिकायत अली, मौलवी अहमदुल्लाह, पीर अली इत्यादि ने विभिन्न क्षेत्रों में किया और अपने प्राणों की बाजी लगाई। इसी प्रकार बिहार के छोटानागपुर क्षेत्र में बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ "उलगुलान आंदोलन" का सफल नेतृत्व किया और अपने प्राणों की आहुति दी।
20 वीं सदी में भी अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते ना जाने कितनी माताओं के गोद सुने हो गए, कितनी बहनों की सिंदूर मिट गई और असंख्य भाइयों ने यातनाएं सही एवं हजारों ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया।
इस दौड़ में सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, खुदीराम बोस,भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, बैकुंठ शुक्ल, रामप्रसाद बिस्मिल्ल ,अशफाकउल्ला खान, सावरकर,जुब्बा सहनी, जयप्रकाश नारायण, रामवृक्ष बेनीपुरी, सरदार पटेल, पण्डित नेहरू इत्यादि ने लोगों के मन से ब्रिटिश– खौफ को निकालने का कार्य किया।
तिलक ने जहां 6 साल के कारावास के दौरान मांडले जेल में गीता रहस्य की रचना की एवं मानव जाति को सत्कर्म की ओर प्रेरित किया, वहीं इस हिंसात्मक युग में, विश्व युद्ध के दौर में भी भारत में महात्मा गांधी ने सत्य अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए, हिंसक ब्रिटिश को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। आज गांधी जी के विचारों का अनुकरण करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने प्रत्येक वर्ष, गांधी जयंती के अवसर पर, 2 अक्टूबर को "विश्व अहिंसा दिवस" का आयोजन करती है।
शोषितों–पीड़ितों के उत्थान के लिए संकल्पित डॉक्टर बी आर अंबेडकर ने जहां डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में "विश्व की सबसे बड़ी जनतंत्र" का संविधान सृजन किया एवं विश्व को "समता का अधिकार" के प्रति सजग किया वहीं पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने मानव जाति को एकात्म मानववाद पर चलने को प्रेरित किया। इसी प्रकार स्वामी सहजानंद सरस्वती ने किसान कल्याण हेतु अपने जीवन को समर्पित कर दिया।
आज हमारे देश की अर्थव्यवस्था ,ब्रिटेन को पीछे छोड़कर विश्व का पांचवा सबसे बड़ा अर्थव्यवस्था बन गया है।भारत ने कोरोना महामारी के समय में कोरोना का स्व– निर्मित टीका विकसित कर,भारत ही नहीं अपितु अन्य देशों को भी टीका आपूर्ति कर मदद किया है।
आज हमारा देश चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला प्रथम देश बन गया है।
अतः यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारत भूमि, अतीत काल से ही विभिन्न आक्रमण, विदेशी शासको का दंश, झेलते हुए भी सदा– सर्वदा से विश्व के समस्त मानव जाति को, समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों में, कुशल मार्गदर्शन करते आया है।
सतानंद चौधरी
पंचायत शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय जटमलपुर ढाब, कहार टोली
प्रखण्ड– कल्याणपुर, जिला– समस्तीपुर
मोबाइल नम्बर – 9576119262, 6205590125
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