कोरोना काल में बदलते सामाजिक मूल्य-देव कांत मिश्र 'दिव्य' - Teachers of Bihar

Recent

Thursday 20 May 2021

कोरोना काल में बदलते सामाजिक मूल्य-देव कांत मिश्र 'दिव्य'

 कोरोना काल में बदलते सामाजिक मूल्य

माना है संकट बड़ा पर रखना है धीर।
जो लड़ता वो जीतता कहलाता है वीर।।

          सच में, कोराना का नाम सुनते ही हमारे मानसपटल पर ऐसी घातक महामारी का नाम गूँजने लगता है जिसने समाज, प्रांत, राष्ट्र व सकल संसार में कहर मचा दिया। आज पूरी दुनिया कोविड-१९ महामारी से जूझ रहा है। सच पूछा जाए तो इसने विश्व के बड़े-बड़े देशों को अपने सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। संसार की महाशक्ति कहे जाने वाले अमरीका से लेकर जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, ब्राजील, रूस तथा आस्ट्रेलिया आदि ने इस महामारी का कहर झेला है। यों कहा जाए अभी तक हम सँभल भी न सके थे कि दूसरी लहर ने एक बार फिर सारी दुनिया को चिंता में डाल दिया है। दिन व दिन बढ़ रहे संक्रमण ने सभी को भयभीत कर दिया है। यथार्थ के धरातल पर देखा जाए तो इस संकट ने सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक गतिविधियों को हिलाकर रख दिया। यों तो कोविड-१९ से बचाव एवं सुरक्षा के दृष्टिगत लगाए गए लॉकडाउन के सकारात्मक परिणाम तो मिले, परन्तु विभिन्न औद्योगिक गतिविधियाँ  भी प्रायः ठप सी हो गईं। इसके चलते जहाँ विभिन्न क्षेत्रों की प्रगति बाधित रही वहीं दूसरी ओर समाज के लोगों में एक दूसरे के प्रति नकारात्मक व्यवहार भी परिलक्षित हुआ। यानि सामाजिक मूल्य भी बदल गये। यदि हम इतिहास के दृष्टिकोण से देखें तो पाएँगे कि वैश्विक महामारी तथा युद्ध जैसी परिस्थितियाँ समय-समय पर उत्पन्न होती रहती हैं। इसी प्रकार भूकंप, बाढ़, सूखा, चक्रवात तथा अन्य आपदाओं के कारण भी समस्याएँ सामने आती हैं।
ऐसी समस्या से हमें नहीं घबराना चाहिए अपितु मिलजुलकर सामना करना चाहिए।
कोरोना में बदलते सामाजिक मूल्य: 
आज कोरोना के फलस्वरूप सामाजिक मूल्यों में भी परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहा है। लोगों के विचार बदल रहे हैं तथा अपनापन का भाव खत्म होने के कगार पर है। खैर जो कुछ भी हो, सामाजिक मूल्यों के बारे में भी जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है।
         सामाजिक मूल्य वे आदर्श हैं जो सामाजिक जीवन में आचरण में अभिव्यक्त होते हैं। सहयोग, दान, सेवा, निवास, भूमि, समूह इत्यादि के निर्धारित मूल्यों को इस कोटि के अन्तर्गत रखा जाता है। सामाजिक मूल्य एक मानक है जिसके द्वारा हम किसी वस्तु, व्यवहार, लक्ष्य, साधन, गुण आदि को अच्छा या बुरा, उचित या अनुचित, वांछित या अवांछित ठहराते हैं। एक बात दीगर है कि सामाजिक मूल्यों से ही विभिन्न तरह की मनोवृत्तियों का निर्धारण होता है तथा व्यक्ति को उचित व अनुचित का ज्ञान होता है। जैसा कि विदित है कि समाज सामाजिक संबंधों का जाल है। सामाजिक मूल्य इस जाल को संतुलित करने व समाज के सदस्यों में सामंजस्य कायम  करता रखने में सहयोग प्रदान करता है। सामाजिक मूल्यों के अनुकूल व्यक्ति अपने आचरण को ढ़ालकर अपना जीवन व्यतीत करता है। कोरोना काल में अगर वर्तमान स्थिति पर गौर किया जाए तो निम्नलिखित सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन देखने मिलते हैं:
• व्यक्ति को शंका को दृष्टि से देखना- आज कोरोना के कारण एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से शंका करते हैं। थोड़ी सी छींक आने पर लोग वही बीमारी समझकर एवं कोरोना कहकर दूर भागने लगते हैं।
• अनावश्यक दुराव- प्रायः ऐसा देखा गया है कि कोरोना से ग्रसित होने के बाद जो लोग स्वस्थ हो जाते हैं फिर भी ऐसा जानकर उसके साथ दूरी बनाने लगते हैं। यहांँ तक कि बातचीत करना भी पसंद नहीं करते हैं।
• अपनापन में कमी- कोरोना ने न सिर्फ समाज के भीतर ही बल्कि परिवारों के भीतर भी एक नये किस्म का फासला खड़ा कर दिया है। अपने ही अपनों से किनारा करने लगे हैं। पहले लोग एक साथ बैठकर खान-पान, हुक्का बीड़ी, चाय-पान आदि करते थे। एक साथ चौपड़ खेलते थे लेकिन आज इस संकट के चलते मानवीय दूरी बढ़ गई है। चाहे शादी-विवाह में जाने की बात हो या अन्य समारोह लोग अपने संबंधी के यहाँ जाना नापसंद करते हैं।    
• दाह संस्कार हेतु चार कंधों का नहीं मिल पाना- कोरोना काल में यह देखने मिला कि अकेली बेटी ने अपने पिता या माँ को मुखाग्नि दिया। उसके साथ पास-पड़ोस के लोग नहीं थे। इसके पहले समाज के अधिकांश लोग श्मशान घाट तक जाते थे लेकिन आज काफी दूरियाँ बन गईं हैं।
• मानवीय मूल्यों में ह्रास- इस महामारी के चलते लोगों में परोपकार, सहयोग व दया की भावना इस कदर कम गई है कि बीमार पड़ने पर साथ नहीं जाते हैं बल्कि घृणा की दृष्टि से देखने लगते हैं। हालांकि आज के दौर में कुछ व्यक्ति जान की परवाह न करके आमजनों की हर तरह से मदद करते हैं। 
          खैर जो हो, इस विकराल संकट के कारण सामाजिक मूल्यों में आमूलचूल परिवर्तन दिख रहा है लेकिन एक बात और है कि इसने संयुक्त परिवार प्रथा की याद ताजा कर दी है। लोग अपने-अपने घरों में एक साथ रहने लगे हैं। एक साथ भोजन बना रहे हैं। दादा-दादी से पुरानी कथा सुन रहे हैं। दूसरी तरफ इसके चलते विद्यालय बंद रहने से समाज के बच्चों में शिक्षा प्रभावित हुई है। काम करने वाले मजदूरों पर भी काफी असर पड़ा है। साथ ही घर की चारदीवारी में रहना अब ज्यादातर लोगों को अवसाद, अकेलापन, प्रेरणा की कमी और थकान दे रहा है। परन्तु इस  संक्रमण काल को देखते हुए कुछ उपाय भी नहीं है। हमें आज प्रकृति से खिलवाड़ नहीं जुड़ाव की जरूरत है। संजीवनी देने वाले वृक्षों पीपल, नीम, बरगद तथा तुलसी के छोटे-छोटे पौधों को लगाने की जरूरत है।
          निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि इस महामारी के चलते सामाजिक दूरियाँ तो बनी हुई हैं लेकिन इसने लोगों का ध्यान स्वरोजगार की ओर आकर्षित किया है। हम खुद से प्यार करना सीखें। मोबाइल से अपने रिश्तेदारों को स्नेह के दो शब्द कहें और घर पर सुरक्षित, उत्साहित और आशान्वित रहें। महामारी से डरकर नहीं लड़कर समाप्त किया जा सकता है। संकल्प और धैर्य से हम इस संकट पर विजय पा सकते हैं।


देव कांत मिश्र 'दिव्य' 
भागलपुर, बिहार

No comments:

Post a Comment