Tuesday, 14 September 2021
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आओ हिन्दी दिवस मनाएं-राकेश कुमार
आओ हिन्दी दिवस मनाएं
एक सामान्य मान्यता है कि अपनी कोई भी चीज बहुत प्यारी होती चाहे रंग-रूप, वेश-भूषा या अपनी भाषा। चाहे आपकी भाषा कुछ भी हो हर भाषा का अपना सम्मान है। लेकिन एक तथ्य यह भी सर्वविदित है कि किसी भी चीज के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण का होना अति आवश्यक है अर्थात किसी भी चीज को आप दिल से अपनाइये। उसमें दिखवाटीपन का होना उसकी महता को कम करता है या कहें तो उसके अस्तित्व पर भी प्रश्नचिन्ह लग जाता है औऱ वो मात्र शोभा की वस्तु बन जाती है चाहे वो हमारी भाषा हीं क्यों न हो। एक सामान्य मान्यता को ध्यान में रखते हुए अगर मैं अपनी व्यक्तिगत दृष्टिकोण रखता हूँ तो मेरा ये मत है कि दिवस विशेष आलेख में उस दिवस से संबंधित नैतिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण की भी चर्चा अवश्य होनी चाहिए जो उस आलेख के उद्देश्यों को सशक्त बनाने में सहायक होता है एवं इसके सन्दर्भ में एक स्पष्ट समझ को विकसित करने में भी सहायक होती है।
सोचनीय है कि हमारे देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी को हिंदी दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई? मैंने पूर्व में चर्चा की कि किसी भी चीज को अगर दिल से नहीं अपनाते हैं तो उसकी महता कमतर होती जाती है। हम शिक्षक हैं और हमारा मूल कार्य है बच्चों को नैतिकतापूर्ण दृष्टिकोण प्रदान करने का, अपनी गौरवशाली अतीत, विरासत एवं अपनी भाषा के संदर्भ में ताकि वे एक स्पष्ट समझ के साथ आगे बढ़े कि हमारी भाषा सबसे बेहतर है एवं हमें इसी के साथ आगे बढ़ना है। हम सभी ( समस्त देशवासी ) प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाते हैं तो इसके इतिहास पर भी प्रकाश डालना जरूरी है-
हिन्दी 14 सितंबर 1949 को बनी राष्ट्र की आधिकारिक भाषा। 6 दिसंबर 1946 को आजाद भारत का संविधान तैयार करने के लिए संविधान सभा का गठन हुआ। सच्चिदानंद सिन्हा संविधान सभा के अंतरिम अध्यक्ष बनाए गए। इसके बाद डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को इसका अध्यक्ष चुना गया। डॉ. भीमराव अंबेडकर संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमिटी (संविधान का मसौदा तैयार करने वाली कमिटी) के चेयरमैन थे। संविधान में विभिन्न नियम-कानून के अलावा नए राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का मुद्दा भी अहम था क्योंकि भारत में सैकड़ों भाषाएं और हजारों बोलियां थीं। काफी विचार-विमर्श के बाद हिन्दी और अंग्रेजी को नए राष्ट्र की आधिकारिक भाषा चुना गया। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी को अंग्रेजी के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया। बाद में जवाहरलाल नेहरू सरकार ने इस ऐतिहासिक दिन के महत्व को देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। पहला आधिकारिक हिन्दी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था। किसी भी दिवस विशेष का इतिहास एवं उसकी पृष्ठभूमि को चंद शब्दों में व्यक्त करना सम्भव नहीं होता है इसलिए हमारा ऐसा प्रयास होता है कि उस दिवस विशेष से संबंधित गौरवशाली अतीत की चर्चा अवश्य करें। हिन्दी को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने हेतु भारत में अनेक लोगों ने कार्य किया। उन्हीं में से एक थे भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी। बात है 1977 की। उस समय के भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री वाजपेयी जी के द्वारा अंतराष्ट्रीय मंच संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिन्दी में दिया गया भाषण जो उनका हिन्दी के प्रति लगाव को दर्शाता है और उनके द्वारा दिया गया हिन्दी में भाषण उस वक्त बेहद लोकप्रिय हुआ था और पहली बार यू. एन. जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की राजभाषा गूंजी। वह यू. एन. में हिन्दी में भाषण देने वाले प्रथम व्यक्ति बने। इतना ही नहीं भाषण खत्म होने के बाद यू. एन. में आए सभी देश के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर अटल बिहारी वाजपेयी का तालियों से स्वागत किया।
आज हम सभी ( भारतीय ) का दायित्व है कि इस गौरवशाली संस्मरण को याद कर किसी भी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बिना किसी झिझक के अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रयोग कर माखनलाल चतुर्वेदी के कहे वाक्य- हिन्दी हमारे देश और भाषा की प्रभावशाली विरासत है को सार्थकता प्रदान करने में अपनी भूमिका का निर्वहन कर हिन्दी दिवस मनाएं।
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं के साथ-
राकेश कुमार
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर ( पटना )
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