Thursday, 23 September 2021
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जिंदगी की किताब-मो. जाहिद हुसैन
जिंदगी की किताब
आजकल न जाने क्यों किताबें पढ़ने वाले लोग जिंदगी पढ़ने वालों से कमतर दिखते हैं ? क्या किताबें पढ़ने वालों में नैतिकता नगण्य-सी दिखने नहीं लगी है ? काया सुंदर है पर मन मैला! जो जितना ज्ञानी है, वो उतना ही बड़ा विस्फोटक! आज ज्ञान के विस्फोट का युग है। लेकिन विस्फोट का प्रदूषण खतरनाक है। आज सबसे बड़ा रत्न आचरण है और सबसे बड़ा प्रदूषण वैचारिक प्रदूषण। फिलॉसफी आज केवल अंधेरी रात में काली बिल्ली ही ढूंढ रही है, ज्ञानानुराग तो दिखता ही नहीं। जीवन-दर्शन तो जिंदगी पढ़ने वालों के ही बस की बात है क्योंकि उनका दर्शन कार्यात्मक है और शिक्षा दर्शन का कार्यात्मक रुप ही तो है।
आज हाथों में पड़े जादुई बक्से केवल उंगलियां दिखाने भर से ही ज्ञान-विज्ञान उगलने लगते हैं। किताबी कीड़े किताबों में जीवन-शिक्षा खुर्दबीन से ढूंढ रहे हैं लेकिन जिंदगी पढ़ने वालों के लिए तो संपूर्ण जिंदगी ही जीवन-शिक्षा है। शिक्षा का अर्थ व्यापक है। किताबी कीड़ों की शिक्षा और जिंदगी पढ़ने वालों की शिक्षा, दोनों ही अंततः एक ही लक्ष्य की ओर जाती है।
एक निश्छल के दिल में होता जो है वही जुबान पर होता है लेकिन माप-तौलकर जो बोलते हैं वे अक्सर सच से परे होते हैं ? उनकी मासूमियत सिर्फ चेहरे पर ही होती है, जिसे जिंदगी पढ़ने वाले लोग बखूबी पढ़ लेते हैं। जिन्होंने किताबें पढ़ी वे सिद्धांत और अनुप्रयोग जानते हैं; लेकिन जिन्होंने जिंदगी पढ़ी है वे प्रयोग और अनुसंधान भी। अधिकांश लोग मुस्कुराने, हॅंसने, सहानुभूति दिखाने और दर्द बांटने का हमेशा झूठा नाटक करते हैं। किसी के दिल व दिमाग में क्या चल रहा है? 'काला अक्षर भैंस बराबर' के सिवाय दुनिया का कोई लाई डिटेक्टर पकड़ नहीं सकता। मानिए तो कुछ लोग समाज को अपसंस्कृति का प्रयोगशाला बना रखा है! आलीशान बांग्लों में रहने वालों के गेट पर ही लिखा होता है-"कुत्ते से सावधान रहें" (Beware of dog) जैसे वह घर नहीं, कुत्तों का कांजी हाउस हो।
जिंदगी पढ़ने वाले लोग वन्य प्राणियों के प्रति इतना संवेदनशील होते हैं कि वे उन्हें नुकसान पहुंचने पर मारने-मरने पर उतारू हो जाते हैं। एक नायक शूटिंग के दौरान हिरण और चिंकारे का शिकार करने की कुछ इसी तरह भूल की थी जिसका खामियाजा उन्हें काफी दिनों तक भुगतना पड़ा था। बिश्नोई, जो चिंकारे को बचाने के लिए गोलियां तक सीने पर खा लेते हैं। पेड़ को बचाने के लिए खेजड़ली गांव की अमृता विश्नोई पेड़ से चिपक गई थी। पूरे गांव के लोगों ने खेजड़ी के पेड़ों से लिपटना शुरू कर दिया और 363 लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। शायद उसी बच्ची से सुंदरलाल बहुगुणा को ठेकेदारों से पेड़ बचाने की 'चिपको आंदोलन' के लिए प्रेरणा मिली होगी ? बिहार के धरहरा गांव में बेटी पैदा होने पर 5 पेड़ लगाए जाते हैं। प्रकृति की पूजा करते हैं और वह हमेशा उसकी छटा को निहारते हैं।
सालिम अली कोई यूनिवर्सिटी नहीं गए, राज्यसभा के नामित सदस्य थे। वे पक्षियों की बोली समझ लेते और क्रियाकलाप से उनके मर्म को जान लेते। प्रतिभावानों की सूची में ऐसे-ऐसे 'काला अक्षर भैंस बराबर' भी हैं। दुनियां में बहुत से ऐसे लोग हुए जिन्होंने कभी स्कूल या कॉलेज का रुख नहीं किया लेकिन उनके पास व्यवहारिक ज्ञान काफी था। माइकल फैराडे किसी के दुकान में जिल्दसाजी किया करते थे और महान वैज्ञानिक जॉन डेवी के प्रयोगशाला में शीशी-बोतल, सामानों की देखभाल एवं रख-रखाव करते थे लेकिन वही माइकल फैराडे ने विद्युत उत्पन्न कर पूरी दुनिया में महान क्रांति ला दी एवं मानव के जीवन शैली ही बदल गई। बल्ब के आविष्कारक थॉमस एडिसन जिन्हें मंदबुद्धि कहकर विद्यालय से निकाल दिया गया था। दुनिया के अब तक के सबसे बड़े वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन की औपचारिक शिक्षा भी अधूरी थी। अमेरिका के मुक्तिदाता राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन जिन्होंने मात्र छः माह माध्यमिक विद्यालय में पढ़ा था। सूफी-संत साधना से अवचेतन मन को इतना जाग्रत कर लेते हैं कि उन्हें सत्यबोध हो जाता है।
अनपढ़ लोग धार्मिक विचार के होते हैं। ईश्वर के प्रकोप से हमेशा उन्हें डर लगता है। डर उन्हें पाप से दूर रखता है। धर्म से नैतिकता आती है। ईश्वर में विश्वास मुश्किल परिस्थितियों में भी उन्हें ढाढ़स बंधाता है। चलो, नैया पार लगाने वाला कोई तो है। ईश्वर के प्रति संपूर्ण आत्मसमर्पण, उन्हें अपने कार्य के प्रति ईमानदार बनाता है।
मानव ने यायावर जिंदगी से निकलकर बस्तियां बसायीं। कालांतर में शहरों में बस गए। आदि मानव की बर्बरता और हरकतें तो समझ में आती हैं लेकिन आज मानव अपने बोल-वचन, परिधान, पत्थरदिली और उच्छृंखल जीवन शैली से पुनः जंगलों में ही पहुंच गया है ? दरिंदगी ऐसी कि दरिंदे भी दहल जाएं!
मेहनत और अनुभव की जब भी बात होती है तो अनायास किसान की छवि मानस-पटल पर छा जाती है। वह अपराजित योद्धा की तरह अपने कर्म में लगा रहता है। वे अपने हल या ट्रैक्टर चलाकर धरती के सीने को चीरकर अन्न निकालते हैं। अन्न के खातिर धूप-बतास, पूस की रात (प्रेमचंद), सब कुछ बर्दाश्त करते हैं। किसान ऐसा मौसम-विज्ञानी है जिसे मौसम की भविष्यवाणी के लिए कोई सेटेलाइट की जरूरत नहीं पड़ती। जीव-जंतुओं की चाल, फूलों की महक, झींगुरों का संगीत और आकाश का दर्शन, बादल जैसे संबंधी तथा फसल जैसी संतान इन्हें मौसम का पता देते हैं लेकिन फिर भी किसान पर पड़े दुख का पहाड़ और
प्रकृति के कहर को स्वाति का पानी भी नहीं बचा पाता। पूंजी मारी जाती है और किसान पर दोहरी-तिहरी मार पड़ जाती है।
मो. जाहिद हुसैन
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