भारत में प्राचीन योग,आयुर्वेद,खगोल,गणित विज्ञान की देन- सुरेश कुमार गौरव - Teachers of Bihar

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Wednesday 1 February 2023

भारत में प्राचीन योग,आयुर्वेद,खगोल,गणित विज्ञान की देन- सुरेश कुमार गौरव

वर्षों पहले कई प्रकार की वैज्ञानिक जानकारियों की खोज प्राचीन भारत में हो चुकीं थीं। विज्ञान और गणित बहुत अधिक विकसित थे एवं प्राचीन भारतीयों ने इस क्षेत्र में बहुत योगदान दिया था‌। चिकित्सा की आयुर्वेद पद्दति उस समय भी विकसित थी। यहाँ तक कि योग को आयुर्वेद के संबद्ध विज्ञान के रूप में विकसित किया गया  था। आज के वर्तमान आधुनिक काल में योग, आयुर्वेद, चिकित्सा, विज्ञान,खगोल, गणित सभी प्राचीन काल के नीचे दिए गए इन महान व्यक्तित्वों के योगदान को कुछ हद तक स्वीकार भी किया गया है। और कई जगहों पर इसके उपयोग और प्रयोग भी कि जाते रहे हैं।

.आर्यभट्ट

पहले हम शून्य के आविष्कारक और पाई का मान बताने वाले आर्यभट्ट के बारे में जानते हैं। आर्यभट्ट पांचवीं सदी के गणितज्ञ, खगोलशास्त्री, ज्योतिषी और भौतिक विज्ञानी थे। 23 वर्ष की उम्र में, इन्होंने आर्यभट्टिया की रचना की, जो उनके समय के गणित का सार है।

सबसे पहली बार उन्होंने ही पाई ( pi) का मान 3.1416 निकाला था।

शून्य के आविष्कार ने आर्यभट्ट को पृथ्वी और चंद्रमा के बीच सटीक दूरी पता लगाने में सक्षम बनाया था और शून्य की खोज से नकारात्मक अंकों के नए आयाम सामने आए.इनके द्वारा लिखित आर्यभट्टिया गणित की महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है।

इसके अलावा आर्यभट्ट का विज्ञान के  खगोलशास्त्र में बहुत योगदान रहा। उन्हें खगोलशास्त्र के जनक के रुप में भी जाना जाता है। वैसे देखा जाय तो प्राचीन भारत में खगोल शास्त्र का  विज्ञान बहुत उन्नत था। खगोल नालंदा, पटना  बिहार जहाँ आर्यभट्ट ने पढ़ाई की थी, में बना प्रसिद्ध खगोल वेधशाला था।वर्तमान में पटना के निकट तारेगना नामक स्थान पर आर्यभट्ट वेधशाला प्रयोगशाला बिहार सरकार द्वारा पुनर्स्थापित की गई है।

आर्यभट्टिया के अनुसार- हमारा ग्रह पृथ्वी 'अचल' यानि अगतिमान है, को भी खारिज कर दिया था। आर्यभट्ट ने अपने सिद्धांत में कहा कि ' पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर परिक्रमा करती है.आज पृथ्वी के घूर्णन,परिभ्रमण के बारे में जानकारी पुस्तकों द्वारा मिलती हैं।

उन्होंने सूर्य का पूर्व से पश्चिम की ओर जाते दिखने की बात को भी  गलत साबित किया.उदाहरण के तौर पर  जब कोई व्यक्ति नाव से यात्रा करता है, तो तट पर लगे वृक्ष दूसरी दिशा में चलते हुए दिखाई पड़ते हैं। सूर्य एवं चंद्र ग्रहण की वैज्ञानिक व्याख्या भी आर्यभट्ट ने ही  की थी। इन्हीं के नाम पर भारत द्वारा कक्षा में भेजे गए पहले उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा गया था।

.महावीराचार्य

 महावीराचार्य - जैन साहित्य में गणित का विस्तृत वर्णन मिलता है. (500 ई.पू. – 100 ई.पू.) . जैन गुरू महावीराचार्य द्विघात समीकरणों को हल करना जानते थे.बेहद रोचक ढंग से उन्होंने भिन्न, बीजगणितीय समीकरण, श्रृंखला, सेट सिद्धांत, लघुगणक और घातांकों का भी वर्णन किया है। महावीराचार्य 8वीं सदी के भारतीय गणितज्ञ (जैन) थे। ये गुलबर्गा के रहने वाले थे जिन्होंने बताया था कि नकारात्मक अंक का वर्गमूल नहीं होता।

850 ई.वीं में, जैन गुरु महावीराचार्य ने "गणित सार संग्रह" की रचना की थी। अंकगणित पर लिखा गया संभवतः यह पहला पाठ्य पुस्तक है.तेलुगु जानकार पवालुरी संगन्ना ने सार संग्रह गणितम् नाम से इसका तेलुगु में अनुवाद किया था। इन्होंने दी गई संख्याओं का लघुत्तम समापवर्त (एलसीएम– लीस्ट कॉमन मल्टिपल) निकालने का तरीका भी बताया था। दुनिया में जॉन नेपियर ने एलसीएम को हल करने का तरीका बताया लेकिन भारतीय इसे पहले से ही जानते थे।

इन्होंने अंकगणितीय अनुक्रम के वर्ग की श्रृंखला के जोड़ और दीर्घवृत्त (ellipse) के क्षेत्रफल एवं परिधि के लिए प्रयोगसिद्ध नियम भी दिए। महान राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्षा नरुपतुंगा ने इन्हें संरक्षण दिया था।

अद्भुत बात यह है कि अपने समय में उन्होंने समभुज, समद्विबाहु त्रिकोण, विषमकोण, वृत्त और अर्द्धवृत्त के कुछ नियम बताए थे और साथ ही चक्रीय चतुर्भुज के किनारों और विकर्ण के लिए समीकरण भी दिये थे।

वराहमिहिर

वराहमिह इन्होंने जल विज्ञान, भूविज्ञान, गणित और पारिस्थितिकी के क्षेत्र में महान योगदान दिए।

ये पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने दावा किया था कि दीमक और पौधे भूमिगत जल की उपस्थिति के संकेतक हो सकते हैं। दरअसल इन्होंने दीमकों (ऐसे कीड़े जो लकड़ी को बर्बाद कर देते हैं) के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी थी कि अपने घर की नमी बनाए रखने के लिए पानी लाने हेतु ये काफी गहराई में पानी के स्तर की सतह तक चले जाते हैं। अपने बृहत्संहिता में इन्होंने भूकंप बादल सिद्धांत दिया जिसने विज्ञान जगत को अपनी ओर आकर्षित किया था।

आर्यभट्ट और वराहमिहिर द्वारा ज्योतिष को विज्ञान के प्रकाश के तौर पर बेहद व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत किया गया था। विक्रमादित्य के दरबार के नौ रत्नों में से एक वराहमिहिर भी थे। वराहमिहिर द्वारा की जाने वाली भविष्यवाणियां इतनी सटीक होती थीं कि राजा विक्रमादित्य ने उन्हें ‘वराह’ की उपाधि से सम्मानित किया था।

विज्ञान के इतिहास में सबसे पहली बार इन्होंने ही दावा किया था कि कोई "बल" है जो गोलाकार पृथ्वी के वस्तुओं को आपस में बांधे रखता है। और अब इसे गुरुत्वाकर्षण कहते हैं। इन्होंने यह भी कहा था कि चंद्रमा और ग्रह अपनी खुद की रौशनी से नहीं बल्कि सूर्य की रौशनी की वजह से चमकते हैं। इनके गणितीय कार्य में त्रिकोणमितीय सूत्रों की खोज भी शामिल थी। इसके अलावा, ये पहले गणितज्ञ थे जिन्होंने एक ऐसे संस्करण की खोज की थी जिसे आज की तारीख में पास्कल का त्रिकोण कहा जाता है.ये द्विपद गुणांक की गणना किया करते थे। इन्होंने आज से 1500 वर्ष पूर्व इन्होंने मंगल ग्रह पर पानी की खोज किए जाने की भविष्यवाणी की थी?

  चरक

इन्हें प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान का जनक भी कहा जाता है. राजा कनिष्क के दरबार में ये राज वैद्य थे।चिकित्सा पर इनकी उल्लेखनीय किताब है "चरक संहिता" इसमें इन्होंने रोगों के विभिन्न विवरण के साथ उनके कारणों की पहचान एवं उपचार के तरीके बताए हैं। पाचन, चयापचय और प्रतिरक्षा के बारे में बताने वाले ये पहले व्यक्ति थे। इन्हें आनुवंशिकी की मूल बातें भी पता था.आज से हजारों वर्ष पहले भी भारत  में चिकित्सा विज्ञान इतने प्रगति की ओर था?

. महर्षि पतंजलि

महर्षि पतंजलि-  इन्हें योग के पिता के तौर पर जाना जाता है। इन्होंने योग के 195 सूत्रों का संकलन किया था।योग को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करने वाले ये पहले व्यक्ति थे। पतंजलि के योग सूत्र में, ओम को भगवान के प्रतीक के तौर पर बोला जाता है। इन्होंने ओम को लौकिक ध्वनि बताया था। इन्होंने चिकित्सा पर किए काम को एक पुस्तक में संकलित किया और पाणिनी के व्याकरण पर इनके काम को महाभाष्य के नाम से जाना जाता है।

पतंजलि आदि शेष– ऐसी किवदंती है कि अनंत लौकिक नाग जिस पर भगवान विष्णु लेटे हुए हैं, के अवतार थे?इस पर सबके विचार अलग-अलग भी हो सकते हैं। ऐसा कहा जाता रहा है कि पतंजलि एक कुशल निबंधकार थे। उन्होंने प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणाली यानि आयुर्वेद पर लिखा था. भारत के शास्त्रीय नर्तक उन्हें बुलावा भेजते और उनका सम्मान करते थे। ऐसा माना जाता है कि पतंजलि की जीव समाधि तिरुपट्टूर ब्रह्मपुरेश्वर मंदिर में है।

योग शब्द संस्कृत शब्द योक्त्र से बना है। हम योग को आयुर्वेद से जुडा़ हुआ विज्ञान कह सकते हैं। प्राचीन भारत में बिना दवाओं के शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर चिकित्सा करने हेतु इसे विकसित किया गया था। यह चित्त को भी परिभाषित करता है यानि किसी व्यक्ति की चेतना के विचारों, भावनाओं और इच्छाओं को मिलाना एवं संतुलन की स्थिति को प्राप्त करना। योग शारीरिक और मानसिक दोनों होता है शारीरिक योग को हठ योग एवं मानसिक योग को राजयोग कहते हैं।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इन महान व्यक्तित्वों ने भारत को ही नहीं विश्व को भी अपनी देन और योगदान से परिचय कराया और आज भी इनके योगदानों को स्वीकारा भी है।

आलेख विभिन्न श्रोतों से अध्ययन कर तैयार की गई है। हो सकता है इसमें कई महत्वपूर्ण और जानकारी योग्य बातें छुट भी गई हों। लेकिन प्राचीन पद्धति के हुए आविष्कार ने समय समय पर बाद के भौतिकवादी आविष्कारों में भी सहयोग की भूमिका निभाई है। ऐसा मेरा मानना है।




आलेखकर्ता : सुरेश कुमार गौरव,शिक्षक,पटना (बिहार)

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