ताउम्र सीखना - श्री विमल कुमार"विनोद" - Teachers of Bihar

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Thursday, 28 September 2023

ताउम्र सीखना - श्री विमल कुमार"विनोद"


जन्म लेने के बाद से शिशु का लगातार विकास होता रहता है।

इस विकास के अंतर्गत शारीरिक,मानसिक,शैक्षणिक,आर्थिक तथा सामाजिक विकास भी होता ही रहता है।इसी विकास के साथ- साथ बालक जीवन पर्यन्त सीखने का प्रयास करता है।

साधारणतः सीखने का अर्थ "व्यवहार में परिवर्तन को कहा जाता है"।परन्तु सभी व्यवहार में परिवर्तन को सीखना नहीं कहा जाता है।मनोविज्ञान में सीखने से तात्पर्य सिर्फ उन्हीं परिवर्तनों से होता है जो अभ्यास या अनुभव के फलस्वरूप होता है तथा जिसका उद्देश्य बालक को समायोजन में मदद करना होता है।

मेरा यह आलेख"ताउम्र सीखना" मानव के जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।व्यक्ति जन्म से ही सीखना प्रारंभ कर देता है तथा मृत्यु के पूर्व तक कुछ -न-कुछ सीखता ही रहता है।सीखना विकास की वैसी प्रक्रिया है जो सदैव व सर्वत्र चलती ही रहती है।

बहुत सारे शिक्षार्थी माध्यमिक या उससे उपर की कक्षाओं में उत्तीर्णता प्राप्त करने के बाद अपने जीवन से निराश होकर किताबी ज्ञान की बातों को सीखने की प्रवृत्ति से अपना ध्यान अलग कर लेते हैं तथा मानसिक रूप से किताबी ज्ञान प्राप्ति करने के लिये कथावट महसूस करने लगते हैं।बहुत सारे लोग यह कहते हुये मिलते हैं कि अब पढ़ने की इच्छा नहीं होती है,जो कि लोगों के जीवन का बहुत बड़ा भ्रम है।क्योंकि पढ़ने की कोई उम्र सीमा नहीं होती है,जो चाहे,जब चाहे जीवन में शिक्षा प्राप्त कर सकता है।जीवन में शिक्षा के क्षेत्र में लगातार अग्रसर होने के लिये सृजनशीलता,सकारात्मक सोच,समर्पण की भावना का होना जरूरी है,तभी लोग जीवन में अधिकाधिक शैक्षणिक ज्ञान को आगे बढ़ाने की सोच सकता है।इसके साथ-साथ व्यक्ति को जीवन में आशावान भी होना चाहिये।यदि लोगों के अंदर उच्च सोच तथा भविष्य में तरक्की करने की आशा न रहे तो मनुष्य जीवन में तरक्की नहीं कर सकता है।

इस आलेख का लेखक अपने जीवन में लगातार तरक्की करने की आशा लेकर मृत्यु के पूर्व तक शिक्षा प्राप्त करने की ललक को अपने जीवन में संजोये हुये है,

जिसके चलते जीवन में एक "सनक" उसके मन को उद्वेलित करती रहती है तथा जीवन के खाली समय को शिक्षा के क्षेत्र में समर्पित कर अपने जीवन के कल्याण की बात को सोचता है।

मैं अपनी आने वाली पीढ़ी के बच्चे-बच्चियों से उम्मीद के साथ-साथ पूर्ण विश्वास करता हूँ कि आप भी अपने जीवन में शिक्षा के क्षेत्र में।आगे बढ़ने के लिये लगातार "जीवन के प्रकाशमय पक्ष को देखने की कोशिश करते हुये लगातार तरक्की के चरम शिखर पर पहुँचने का प्रयास कीजिये क्योंकि लोग 98 वर्ष की उम्र में भी एम•ए• तथा पी•एच•डी• की उपाधि को प्राप्त करके अपने जीवन की वैतरनी को पार करते हुये लोगों को आगे बढ़ने की सौगात देने का प्रयास इस सुन्दर गीत के साथ कि"चल अकेला राही,चल अकेला,तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला के साथ पूरी जिंदगी शिक्षा प्राप्त करने को प्रेरित करते हुये लोगों को मानसिक रूप से प्रोत्साहित कर रहा है।


श्री विमल कुमार"विनोद"भलसुंधिया

गोड्डा(झारखंड)की लेखनी से।

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