अमर गीतकार--शकील बदायूँनी - हर्ष नारायण दास - Teachers of Bihar

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Sunday 4 August 2024

अमर गीतकार--शकील बदायूँनी - हर्ष नारायण दास


गीतों के सरताज शकील बदायूँनी का जन्म उत्तरप्रदेश के बदायूँ शहर में 3 अगस्त 1916 को हुआ था। उनके पिता मौलाना जमील अहमद शायर थे,जो "सोख्ता'' उपनाम से शायरी करते थे। घर का माहौल शायराना था,उन्हें शायरी पारिवारिक संस्कार से सहज में ही मिली थी। शकील जी शायर जियाउल कादरी बदायूँनी से बहुत प्रभावित थे।1942 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय से बी०ए०की।सन् 1940 में 24 वर्ष की आयु में उनका विवाह सलमा से हुआ। इसके बाद उन्होंने दिल्ली में सप्लाई विभाग में एक अधिकारी के रूप में नौकरी कर ली।

शकील का अर्थ होता है- सुन्दर। वे देखने में सचमुच बहुत सुन्दर थे। उनके मन में विचार आया कि तू सुन्दर है, अगर सत्य और शिव को भी अपने में समा ले तो तू भारतीय संस्कृति "सत्यम शिवम् सुंदरम'' की रचना कर अपने जीवन को सार्थक कर सकेगा। इस बात को शकील ने गाँठ बाँधली और अपनी शायरी और गीतों से हिन्दुस्तानी तहजीब के बिरबे को सींचने की ठान ली। ईश्वर ने उन्हें बहुत ही मधुर कंठ दिया था। जब वे मुशायरे में अपनी रचनाएँ सुनाते तो एक अद्भुत समां बाँध देते और श्रोता वाह वाह कर उठते। 

मुशायरे में उनके दबदबे पर मशहूर शायर निदा फाजली कहते हैं--"शकील खुशलिबासी और ताल सुर से सजी आवाज जब मंच पर जगमगाती थी तो अच्छे-अच्छों की रोशनियाँ बुझ जाती थीं। वह जिस मुशायरे में आते, कलाम पढ़ने के बाद पूरा मुशायरा अपने साथ ले जाते थे।''


साहिर लुधियानवी ने यूँ कहा--जिगर और फिराक के बाद आने वाली पीढ़ी में शकील बदायूँनी एकमात्र शायर हैं जिन्होंने अपनी कला के लिये गजल का क्षेत्र चुना है और इस प्राचीन किन्तु सुन्दर और पूर्ण काव्य रूप को, जिसमें हमारे अतीत की सर्वोत्तम साहित्यिक तथा सांस्कृतिक सामग्री सुरक्षित है, केवल अपनाया ही नहीं उसका जीवन के परिवर्तनशील मूल्यों और नए विचारों से समन्वय कर उसमें नए रंग भी भरे हैं।

शकील पर मोहब्बत का रंग इतना गहरा था कि वे इसे पूरी दुनिया में बिखेरना चाहते थे तभी तो उन्होंने लिखा-

हम दिल का अफसाना दुनिया को सुना देंगे।

हर दिल में मोहब्बत की इक आग लगा देंगे।। 

वे 50 -60 के दशक के सफलतम गीतकारों में एक थे। उन्होंने लगभग 89 फिल्मों में गीत रचे। शकील के अधिकतर गीतों को नौशाद ने ही संगीतबद्ध किया। ऐसा लगता है मानो शकील और नौशाद एक दूजे के लिये ही बने थे। इनके गीत संगीत का शरीर और प्राण जैसा अटूट सम्बन्ध है।अभिनय सम्राट दिलीप कुमार, सुर सम्राट मोहम्मद रफी और संगीत सम्राट नौशाद की पहली पसन्द थे गीत सम्राट शकील बदायूंँनी। इन सबने मिलकर जो फिल्मे दी हैं वे गीत , संगीत, गायकी और अदाकारी हर लिहाज से बेमिशाल हैं। मेला, अमर, दीदार, उड़नखटोला, दिल दिया दर्द लिया, कोहेनूर, आदमी, गंगा जमुना और मुग़ले-आजम वे अमर चित्र हैं जो भुलाए नहीं भूलते।

शकील बदायूँनी ने हर रंग के और हर छवि के गीत रचे हैं। ईश्वर भक्ति के लिये इन्साफ का मन्दिर है ये भगवान का घर है, मन तड़पत हरि दर्शन को आज, तो होड़ की कव्वाली तेरी महफ़िल में किस्मत आजमा कर हैम भी देखेंगे। श्रृंगार के गीतों में---हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं, चौदहवीं का चाँद हो तुम, आज मेरे मन में सखी बाँसुरी बजाए कोई, दो सितारों का जमीं पर है मिलन आज की रात, दूर कोई गाए, धुन ए सुनाए और प्यार किया तो डरना क्या'' प्रसिद्ध हंट दर्द भरे गीतों में- मेरी कहानी भूलने वाले तेरा जहाँ आबाद रहे, ओ दूर के मुसाफिर, बचपन की मोहब्बत को, जो मैं जानती बिसरत हैं सैयां और कोई सागर दिल को बहलाता नहीं बेमिशाल हैं।

बचपन को याद करते हुए-बचपन के दिन भूला न देना, अनूठा गीत हैं तो बेटी की बिदाई पर पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली, सुनकर सबकी आँखें नम हो जाती हैं। उनके गीत पहले अहसास में ढलते हैं, फिर दिल पर नक्श होते हैं और फिर कागज पर उतरते हैं। 

शकील बदायूँनी नेअपने गीतों में करोड़ों लोगों के जीवन में आशा और उमंग की मस्ती और उल्लास तथा भक्ति और संवेदना के रंग भर दिये हैं यदि उनके इन्द्रधनुषी छटा वाले गीत न होते तो जीवन में कितना सूनापन होता, कितनी उदासी होती, कितना अकेलापन होता। उनके गीतों की लोकप्रियता का यह आलम है कि उनके चले जाने के 50 वर्षों बाद भी उनके सदाबहार गीतों पर श्रोता झूमते हैं उनके गीत जीवन के रंग का सुरीला बयान हैं। वे हमारे जीवन की असली पहचान हैं और आम आदमी का सपना और अरमान हैं।

फिल्मों में तीन का बड़ा महत्व है।अदाकारी में त्रिदेव-देवानन्द दिलीपकुमार और राजकपूर बेजोड़ हैं।गायकों में-मुकेश, मोहम्मद रफी और किशोर कुमार अनुपम हैं तो गीतकारों में शकील, शैलेन्द्र और साहिर बेमिसाल हैं।

शकील के गीतों में कविता की कोमलता है, लोकगीतों-सा माधुर्य है और गाँव का सहज सौंदर्य।

उनके गीत उच्च कोटि के हैं तथा हमारे पूरे परिवेश, परिवार , पर्व और त्योहारों के गीत हैं जिन्हें हम पूरे परिवार के साथ देख सुन सकते हैं, गा सकते हैं।होली के गीतों में उनके लिए- होली आई रे कन्हाई रंग छलके, तन रंग लो जी आज मन रंग लो और खेलो रंग हमारे संग सर्वश्रेष्ठ गीतों में ऊँचे सोपान पर हैं। मेरे महबूब तुझे मेरी मोहब्बत की कसम'' श्रेष्ठ प्रेम गीत हैं।

रात के सन्नाटे में जब आप सुनते हैं-सुहानी रात ढल चुकी है, ना जाने तुम कब आओगे तो विरह की तड़प कितनी गहरी हो उठती है। प्यार करने पर पछतावा हाथ लगता है। शकील इसे यूँ कहते हैं- मोहब्बत की राहों में चलना सम्हल के, यहाँ जो भी आया, गया हाथ मल के। जिंदगी के फलसफे को कितनी आसानी से समझाया है-जीवन का गीत है, सुर में ना ताल में, उलझी है सारी दुनिया रोटी के जाल में।''

जीवन के यथार्थ को स्वीकार करते हुए वे कहते हैं-दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा, जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा।'' पर मुसीबत के आगे वे घुटने नहीं टेकते बल्कि हिम्मत से उसका मुकाबला करते हुए कहते हैं-" गिर गिर के मुसीबत में संभलते ही रहेंगे, जल जाएँ मगर आग पे चलते ही रहेंगे।"

उनके गीत कितने जीवंत हैं इसके लिये आप फ़िल्म 'मदर इंडिया' का वह दृश्य याद करें, जब होली आई रे कन्हाई रंग छलके'' गीत पर कुमकुम कंगन भरे हाथों को मोहक अंदाज में लहराकर नाचती है तो उनके संग गाँव का पूरा वातावरण फागुनी रंगों से सराबोर हो उठता है। कैसा सम्मोहन पैदा कर देता है वह गीत मानो पूरा ब्रज ही वहाँ उतर आया हो। ऐसे सदाबहार गीतकार थे शकील बदायूँनी।

उनके गीतों में लोकगीतों की मिठास और महक हैं। ऐसे गीतों में-ना बोल पी पी मोरे अँगना, करी बदरिया छाए रे, आज सखी री मोरे पिया घर आये रे, मोरे सैयां जी उतरेंगे पार हो नदिया धीरे बहो, पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली, ओ गाड़ी वाले गाड़ी धीरे हाँक रे, दुख भरे दिन बीते रे भैया, ढूँढो-ढूँढो रे साजना, नैन लड़ जैइहें तो मनवा मा खटक होइबे करी, छोड़ बाबुल का घर मोहे पी के नगर, दूर कोई गाये, धुन ये सुनाए और मोहे भूल गए साँवरिया अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं और देर तक मन में गूँजते रहते हैं।

ऐसे यादगार गीतों के रचनाकार शकील 20 अप्रैल 1970 को लगभग 55 वर्ष की आयु में अपनी पत्नी एक बेटी और एक बेटे को छोड़कर इस दुनिया से हमेशा के लिए रुख्सत हो गए। वे संगीत प्रेमियों के दिलों में अपने सुनहरे गीतों का अनमोल खजाना छोड़ गए हैं।

उनके अमर गीतों के लिये यह कहने का मन करता है-

जवानी बीत जाती है, फसाने याद रहते हैं

कहानी भूल जाते हैं तराने याद रहते हैं। जहाँ से लोग जाते हैं, जमाना भूल जाता है, मगर कुछ खास गीतों में जमाने याद रहते हैं।।


प्रेषक--हर्ष नारायण दास

प्रधानाध्यापक

मध्य विद्यालय घीवहा(फारबिसगंज)

अररिया।

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